मैं नौकरानी नहीं
मैं नौकरानी नहीं
सरला थकी हारी बैंक से लौटी और घर की बेल बजा रही थी। दो बार बजाने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला तो उन्हें लगा आज बाहर ही न रहना पड़े। तीसरी बार में जाकर कहीं दरवाजा धड़ाम से खुला और उनकी इकलौती बेटी स्नेहा ने यूं घूर कर देखा जैसे उन्होंने कोई गलती कर दी हो।
सोफे पर पसरती हुई वह बोली "पानी ला दो स्नेहा।"
"मैं आपकी नौकरानी नहीं, दरवाजा खोलने के कारण वैसे भी मुझे अपना काम बीच में छोड़ना पड़ा है, मैं और समय बर्बाद नहीं कर सकती" यह बोलते हुए उनकी 18 वर्षीय बेटी अपने कमरे में चली गई।
सरला के मन में आया कि एक थप्पड़ रसीद कर दे मगर घर आते ही कोई बवाल वह नहीं चाहती थी तो बिना कुछ बोले थोड़ी देर सोफे पर ही आंख बंद कर बैठी रही सोचते हुए
"क्या लड़की है? अपनी थकी मां को पानी देना उसे नौकरानी बनना लगता है। एक हम थे जब भी पापा ऑफिस से आते थे मेरे और भैया में प्रतिद्वंद्विता होती कौन पापा को पहले पानी देता है?"
"घर में नियम सा था, कोई भी आगंतुक हो पानी पूछना अनिवार्य था। चाहे वह कोई प्लंबर हो इलेक्ट्रिशियन हो या बढ़ई हो या चंदा लेने वाला ही क्यों ना हो!"
"हां कितने सुहाने थे वह दिन!" एक ठंडी सांस लेते हुए सोचा "चलो, पानी मैं खुद ही पी लेती हूं और मांजी को चाय भी बना कर दे देती हूं।"
पहले पानी पिया फिर चाय चढ़ाई और कपड़े बदलकर चाय बिस्किट लेकर मां जी के कमरे में पहुंची। मांजी उसे देख कर मुस्कुरा दी और बोली, "देखो कमला 1 हफ्ते तक नहीं आएगी, तुम अकेले क्या क्या करोगी, सब्जी मुझे दे देना मैं काट दूंगी।"
"ठीक है मां, पहले चाय पी लीजिए। आपने दवाइयां समय पर ले ली थी?"
"हां, तुम चिंता मत करो मेरी।"
जब से कमला, उनके घर की बाई 1 हफ्ते के लिए गांव गई है, तब से सरला महसूस कर रही है कि घर के छोटे-मोटे काम भी कोई नहीं कर रहा। घर तभी घर होता है जब सदस्यों में प्रेम व समर्पण की भावना हो। एक दूसरे की परवाह, ख्याल व चिंता हो, जहां मैं तुम्हारा नौकर या नौकरानी वाली बात न हो, प्रेम वहां कैसे हो सकता है?
दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर सरला ने सारे काम कर दिए। आज उनके पति, राज को भी 3 दिन के लिए मैसूर जाना था। सुबह की फ्लाइट से वह निकल गए। फिर उन्हें ध्यान आया कि स्नेहा अभी तक कॉलेज नहीं गई "क्या कर रही हो स्नेहा? कॉलेज के लिए देर नहीं हो रही क्या?"
"ओ मां ! मेरा सफेद कुर्ता नहीं मिल रहा, आज वही पहन कर जाना है कॉलेज में नुक्कड़ नाटक है। मैंने उसमें भाग लिया है, यही ड्रेस कोड है सफेद कुर्ता व ब्लू जींस। प्लीज़ ढूंढ दो ना मां।"
"देखो मैं तुम्हारी नौकरानी नहीं" सरला ने बोला, फिर धीरे से स्नेहा को गले लगाते हुए कहा।
"मैं तुम्हारी मां हूं और तुमसे बहुत प्यार करती हूं, तुम्हें हैरान परेशान नहीं देख सकती। इसलिए चलो मिलकर अलमारी लगाते हैं, कुर्ता जरूर मिल जाएगा।"
थोड़ी देर में ही कुर्ता हाथ में था। सरला ने कुर्ता प्रेस करके स्नेहा को दिया तो वह काफी लज्जित महसूस कर रही थी। फिर सरला ऑफिस और स्नेहा कॉलेज निकल गई।
करीब 1:00 बजे सरला का ध्यान अपने फोन पर गया तो वहां स्नेहा के 20 मिसकॉल पड़े थे "क्या हो सकता है?" घबरा कर वापस फोन किया "मम्मा दादी के पेट में तेज दर्द हो रहा है, जल्दी घर आ जाइए।"
"अच्छा बेटा मैं आती हूं, तुम तब तक गर्म पानी की सिकाई करो।"
सरला फॉरेन घर पहुंच गई, मांजी को तुरंत अस्पताल लेकर गई। स्नेहा को घर पर ही रहने दिया। उनका पूरा दिन अस्पताल में बीता, न जाने कितने टेस्ट करवाए व मांजी को भर्ती भी कर लिया था। सरला ने रात में अस्पताल में ही रुकने का मन बनाया, शाम के 6:00 बज रहे थे। स्नेहा एक बड़े से बैग के साथ उनके सामने खड़ी थी।
"तुम! तुम यहां कैसे?"
"मां आप यहां रुकेंगी तो खाना, पानी व कपड़ों की आपको जरूरत होगी। वही लेकर आई हूं और हां, आपके लिए रोटी सब्जी व दादी के लिए खिचड़ी बनाई है।"
"तुमने बनाई? तुम्हें किसने सिखाया?"
"क्या मां! आजकल गूगल मां हर समय उपलब्ध है, वहीं से सीखा" हंसते हुए स्नेहा बोली।
सरला की आंखें छलकने को उतावली होने लगी, मगर फिर धीरे से बोली, पर तुम तो मेरी नौकरानी नहीं"!
"हां, हां मैं आपकी नौकरानी नहीं, मैं आपकी जिम्मेदार बेटी हूं" स्नेहा ने गर्व से कहा।
