Noor N Sahir

Tragedy

2.5  

Noor N Sahir

Tragedy

मैं एक औरत हूँ

मैं एक औरत हूँ

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एक बे-पनाह ख़ूबसूरत औरत जो अपने बॉयफ़्रेंड के साथ हमबिस्तरी करते हुए गिरफ़्तार की गई थी। मैं थानेदार से इजाज़त लेकर उस औरत से मिला। 

मैंने उसे बताया; "कि मैं एक लिखारी हूँ, मैं तुम्हारी बात को दुनिया तक पहुंचा सकता हूँ।"

तब उस ने मुझ से कहा; " लिखिए।"

मैं लिखने लगा।

"मैं अपने शौहर से बहुत मोहब्बत करती हूँ लेकिन मैं अपने बॉयफ़्रेंड को नहीं छोड़ सकती, क्यूँकि मेरे शौहर से मेरा रिश्ता दो सालों से जुड़ा है और मेरे बॉयफ़्रेंड से मेरा रिश्ता दस सालों का है।"

'मैं एक औरत हूँ और एक औरत की ज़िम्मेदारी मैं ख़ूब समझती हूँ, हमारे समाज में औरत को घुट-घुट के जीना पड़ता है, हमारे समाज में औरत को अपनी ज़िन्दगी अपने मुताबिक़ जीने का कोई हक़ नहीं है। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ, करोड़ों औरतों के साथ हो चुका है और हो रहा है। मैंने क्लास आठ से एक लड़के से प्यार किया, मैं उस के साथ ग्रेजुएशन तक रही और फिर ग्रेजुएशन के बाद मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ मेरी शादी एक अमीरज़ादे से करदी गई। मैंने अपने पापा से बहुत कहा; "मैं जिस से प्यार करती हूँ उसी से शादी करूंगी" लेकिन मेरे पापा ने मेरी एक न मानी और क्यूँ न मानी ? क्यूँकि जिस से मैं प्यार करती थी, उस के पास अच्छा रोज़गार नहीं था, उस का ख़ानदान अमीर न था। ये मेरी ही परेशानी नहीं है बल्कि हर उस औरत की परेशानी है जो दौलत की भेंट चढ़ जाती है। किसी के माँ-बाप अपनी औलाद के बारे में बुरा नहीं सोचते लेकिन शादी के वक़्त वो शायद बुरा फ़ैसला ही लेते हैं।

माँ-बाप सोचते हैं कि हमारी बेटी दौलतमंद के यहां ख़ुश रहेगी। वो अपनी जगह बिलकुल ठीक हैं, लेकिन ऐसा नहीं है।

कोई गारण्टी नहीं है कि बेटी दौलतमन्द के यहाँ ख़ुश रहे। कोई भी लड़की दौलत से नहीं बल्कि मोहब्बत से ख़ुश रहती है। ये बात हमारे समाज को पता नहीं कब समझ में आएगी ? मोहब्बत हर किसी की ज़रूरत है।

माँ-बाप शादी के वक़्त ये नहीं सोचते कि दौलत से सिर्फ़ ज़ेब-ओ-ज़ीनत की जाती है, दौलत से सिर्फ़ ख़रीदा और बेचा जाता है, लेकिन ज़िन्दगी की ख़ुशियाँ मोहब्बत से मिलती हैं। 

मेरी शादी मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ हुई है उस के बावुजूद मैं अपने शौहर से बहुत मोहब्बत करती हूँ क्यूँकि मेरा शौहर मेरे और मेरे बच्चों के लिए दौलत जमा करने में लगा हुआ है, मेरा शौहर मेरी खुशी के लिए हर चीज़ मुहय्या करता है, इसी लिए मैं अपने शौहर से बहुत मोहब्बत करती हूँ लेकिन मैं अपने बॉयफ़्रेंड को नहीं छोड़ सकती, क्यूँकि मेरा शौहर सिर्फ़ मुझ से हमबिस्तर होता है, और जब वो मुझ से हमबिस्तर होता है तो मुझे लगता है कि जैसे वो एक रस्म निभा रहा है। जैसे वो अपनी हवस बुझा रहा है लेकिन जब मेरा बॉयफ़्रेंड मुझ से हमबिस्तर होता है तो मुझे लगता है कि जैसे काइनात की हर ख़ुशी मेरी बाँहों है। जैसे ये चाँद सितारे सब मेरे माथे पे सजे हुए हैं।

शायद यही दौलत और मोहब्बत में फ़र्क़ है जिसे हमारा कमसमझ समाज कभी नहीं समझ सकता।'

जब उस ने ये सब मुझे बताया तो मेरे ज़हन में कई सवालात गर्दिश करने लगे, मैं सोचने लगा कि; क्या वाक़ई हमारा समाज मोहब्बत छोड़ कर दौलत पकड़ने लगा है ? क्या वाक़ई हमारा समाज कमसमझ है ?

क्या वाक़ई हमारे समाज में लड़कियों की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ शादी की जाती है ?

क्या वाक़ई शादी करते वक़्त माँ-बाप मोहब्बत नहीं दौलत देखते हैं ?

क्या वाक़ई माँ-बाप अपनी बेटी के लिए अच्छा करने के बावजूद बुरा कर जाते हैं ?


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