Devendra Singh

Comedy Others

4.9  

Devendra Singh

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मैं चना हूँ

मैं चना हूँ

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 हुज़ूर! 

पहचाने मुझे...? मैं चना। बड़े काम की चीज हूँ साब जी! देखा नहीं क्रांति फ़िल्म में जब मनोज कुमार और दिलीप कुमार के पास कोई चारा नहीं बचा था, तो मैं ही काम आया था..... हाँ! हाँ! वही वाला गाना याद करो - "चना जोर गरम बाबू, मुलायम मज़ेदार" अब आया न याद..! मैं देशभक्त भी हूँ साब जी! मुझे खा के सब अंग्रेज सोते रह गए, और क्रांतिकारी जेल से भाग निकले..! 

  साब जी! मैं धार्मिक कहानियों में भी हूँ, मेरी चोरी करने से एक विद्वान ब्राह्मण गरीब हो गया। सुदामा ने मुझे अकेले-अकेले चाब लिया, फिर कितना खामियाजा भुगतना पड़ा, बेचारे को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। वो तो भला हो उस समय के वैज्ञानिक श्री कृष्ण जी की कि उन्होंने मुझ चने का एन्टीडॉट चावल के रूप में खोज लिया, और चावल की वैक्सीन से गरीबी की बीमारी से सुदामा को छुटकारा दिया। हम अभी भी उस तकनीकी पे पहुंचे नही है साब जी! देखो न! गरीबी की बीमारी सुदामा को हुई थी, चावल वैक्सीन श्री कृष्ण जी ने लिया और बीमारी रफूचक्कर साब जी!

साब जी! किस्से बहुत हैं मेरे....! लेकिन कुछ जलनखोर लोग मुझे घोड़े का भोजन कहकर भी चिढाते हैं... याद है न फ़िल्म - "करन-अर्जुन" उसमे ठाकुर का मुनीम कहता है - "पिछले जनम में घोड़ो थो के, जो चनों खाये जा रियो है, खाये जा रियो है"

साब जी! ये सब फिल्मों की बातें हैं, लेकिन मैं बहुत काम की चीज हूँ, आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद, हरित क्रांति के पूर्व समय तक मैं भारतीयों का मुख्य भोजन रहा हूं, क्योकि मैं ही सबसे ज्यादा उगाया जाता था, कारण कई थे - मैं बिना किसी तकनीकि प्रयोग के उगाया जा सकता हूँ, मुझे रासायनिक खादों की जरूरत नहीं होती, यहां तक कि मैं तो प्यासा रहकर भी जिंदा रहना जानता हूँ, बस इतना जरूर हो जाता है, मेरी पत्तियां थोड़ी खट्टी हो जाती हैं, अच्छा ! उसमे भी आपका अपना ही फायदा है साब जी! आप मेरी पत्तियों का साग भी तो बना लेते हो, गरीबों को ज़िंदा रखने में मेरा बहुत बड़ा हाथ रहा है, उतना बड़ा हाथ तो आज तक कानून का नहीं हो पाया। अच्छा सुनो साब जी! ये जो सब कहते हैं न कि कानून के हाथ लंबे होते हैं, ई सब गलत है साब जी! सारे भ्रष्टाचार करने वाले आराम से घूम रहे हैं तो काहे के लंबे हाथ..?

अच्छा साब जी! मेरी एक विनती है, उ जो नेपाली प्रधानमंत्री है न उसकी बात मत मान लेना, काहे से की उसका कोई भरोसा नहीं वो कब बोल दे कि - चना तो नेपाली है। साब जी! मैं विशुध्द भारतीय हूँ... मैं आपको प्रमाण भी दे सकता हूँ..!

साब जी! मैं आपकी कहावतों तक मे घुस चुका हूँ। लेकिन वो बात अलग है आपका देश प्रतिभा का दुरुपयोग करना खूब जानता है, आपके यहाँ डॉक्टरी पढ़कर लोग पार्टियों के प्रवक्ता हो जाते हैं, इतिहास पढ़ने वाला सबसे बड़े बैंक का हेड हो जाता है, साब जी! ऐसा ही मेरे साथ हुआ है। आप कहते हैं - "अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।" ये गलत है साब जी! सामने देख लो एक अकेले आदमी ने पूरे देश की अर्थव्यवस्था फोड़ दी, फिर ज़रा सा भाड़ का चीज है साब जी?

मैं तो कहता हूँ सारे मुहावरे गलत हैं, एक वो आप का कहते हैं- "नाकों चने चबाना" साब जी! मुझे नाक से नही चबा सकते साब जी! काहे से कि नाक में दांत नही होते न साब जी! वो अलग बात है आपके यहाँ एक बउआ नेता जी हैं, वो मुझे अपने मुंह मे डालकर अपने दांतों को तपलीक नहीं देना चाहते, तो ट्विटर रूपी नाक में डाल के इधर उधर हिलाते रहते हैं।

एक और है साब जी! आप "लोहे के चने चबाना" भी कहते हैं। ओ साब जी! मैं लोहे का नही होता, मुझमे भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, मैग्नीशियम और दूसरे मिनरल्स होते हैं, उ अलग बात है, दो गुजरातियों ने पूरी कांग्रेस को जो चने दिए हैं, वो लोहे से भी ज्यादा कठोर हैं। 

"चने के झाड पे चढ़ाना" ई कुछ ज्यादा ही हो जाता है साब जी! वैसे ये आजकल का फैशन हो गया है, लोगों को मेरे झाड पे चढ़ने में बहुत मज़ा आता है, सो ज्यादातर तो जानबूझकर चढ़ते हैं, और कुछ अनभिज्ञ, कूटनीति से भरे बौद्धिक लोगों के बहकाबे में आकर चढ़ जाते हैं, अच्छा साब जी! मैं ठहरा चना, मैं चढ़ने के तो विरोध नही करता लेकिन उसके बाद मैं ऐसा पटकता हूँ, कि चढ़ने वाले कि तीन पुस्ते सही से चल भी नहीं पाती। मेरे झाड पे चढ़ने वाला अक्सर घमंडी और अज्ञानी होता है, लेकिन चढ़ाने वाला सदैव तीक्ष्ण बुद्धि का कुटिल मानव होता है, मेरे झाड पर चढ़ाने के लिए आपको बेहतरीन लच्छेदार बातों के साथ साथ चापलूसी की चासनी लगाना अनिवार्य है। साब जी! उत्तर प्रदेश में एक पार्टी है, उस पार्टी के नेता अपने बड़े नेता को मेरे झाड पे चढ़ाने में कोई कसर नही रखते, मुझे क्या मैं तो तमाशा देखता रहता हूँ, वो बड़ा वाला नेता भी, आधी दूर चढ़कर उतर जाता है, लेकिन मेरा तना पकड़े सदैव खड़ा रहता है, कि कोई आये और उसे सहारा देकर मेरे झाड पे चढ़ा देवे। अरे साब जी! उस नादान को मालूम नहीं कि मेरे झाड पे चढ़ने वाले का मैं क्या हश्र करता हूँ, आप समझा दो उसको साब जी! वरना अगर सही से चढ़ गया मेरे झाड पे, तो ऐसा पटकूंगा, तीन पुस्ते संभलकर चल नहीं पाएगी...!

बता देना सबको... मैं चना हूँ, साब जी!


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