Vaishnavi Mishra

Inspirational

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Vaishnavi Mishra

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मानवता की भावना

मानवता की भावना

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हर इंसान जानता है कि दूसरों को सताने से बड़ा कोई पाप नहीं होता और किसी को खुश करने से बड़ा कोई पुण्य नहीं होता। हर धर्म यही चीज़ सिखाता है पर इसे ज्यादातर लोग सुनकर भी अनसुना कर देते हैं। कमज़ोर जीवों पर अपना बल दिखा कर खुद को बहुत ताकतवर समझते हैं। वैसे तो हिन्दू धर्म में गाय को माता का स्थान दिया गया है। उसकी पूजा की जाती है। उसको साक्षात ईश्वर कहा जाता है परंतु क्या सिर्फ ये सब करने से हमें मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी? क्या हम सारे पापों से मुक्त हो जाएँगे? इसका जवाब है नहीं क्योंकि एक तरफ तो हम गाय को माता का स्वरूप कहते हैं वहीं दूसरी तरफ उसे अपने दरवाजे से भगाते हैं, उसे मारते हैं और उसे घर का बचा हुआ जूठा खाना खाने को देते हैं। कोई नहीं सोचता कि सभी जीवों के जान होती है, उनके अंदर भी दिल होता है। उनको भी मारने से दर्द होता है और दवाइयों से आराम मिलता है। उन्हें भी प्रेम की ज़रूरत होती है। आजकल हर मनुष्य सिर्फ अपने बारे में सोचता है। सिर्फ अपनी सुख सुविधायें जुटाने में लगा रहता है। वह ये भूल गया है कि उसे "मनुष्य" नाम क्यों दिया गया है। मानव को मानव अर्थात मनुष्य इसलिए कहा जाता है क्योकि उसमें मनुष्यता की भावना होती है अर्थात जो लोगों से प्रेम करे तथा उनकी सहायता करे परंतु आज के युग में मनुष्य अपने नाम के अर्थ के बिल्कुल विपरीत हो गए हैं। मनुष्य इतना मतलबी और स्वार्थी हो गए हैं कि उसे अपने अलावा कोई दिखता ही नहीं। सब यही सोचते हैं कि बस दूसरों के सामने अच्छा बनने के दिखावा करने से सब उन्हें अच्छा समझेंगे पर ऊपरी आवरण बदल कर योगी का रूप धारण कर लेने से उनकी बुराइयां कम नहीं हो जाती। पूजा पाठ करने से या धार्मिक स्थानों के दर्शन करने से किसी के पाप कम नहीं हो जाते। हर धर्म में कर्म को सर्व प्रथम स्थान दिया गया है। कर्म को ही सबसे बड़ी पूजा कहा गया है।

हमें हर इंसान को समानता की नज़र से देखना चाहिए। सबकी सहायता करनी चाहिए क्योंकि इंसान जो भी करता है उसकाे उसी के अनुसार फल मिलता है। यदि हम किसी की सहायता करते हैं या कोई अच्छा काम करते हैं तो हमारे मन में एक अलग संतोष का भाव जागृत हो जाता है वहीं दूसरी तरफ यदि हम कुछ गलत करते हैं तो हमारे मन में बेचैनी और डर की भावना होती है। कोई भी व्यक्ति अपनी गलती सुनने को तैयार नहीं होता क्योंकि वह सिर्फ अपने आप को ही सही मानता है। वह ये नहीं सोचता कि ये उसकी सबसे बड़ी गलती है। क्योंकि गलती को तभी सुधारा जा सकता है जब उसके विषय में ज्ञात हो और अपनी गलतियों को सुधार कर हम एक बेहतर इंसान बन सकते हैं। इस दुनिया में कोई भी चीज़ , कोई भी इंसान परफेक्ट नहीं होता पर हम अच्छे बनने का प्रयास भी न करें ये तो गलत होगा न! यदि कोई हमारे साथ कुछ गलत करता है तो हमें दुःख होता है परंतु हमें यह भी याद रखना चाहिए कि इसका फल अवश्य ही उसे मिलेगा। हमें उसके साथ उतना गलत तो नहीं करना चाहिए पर उसे उसकी गलती का एहसास ज़रूर दिलाना चाहिए। ईश्वर हर जगह होते हैं, हर जीव के हृदय में होते हैं और हमारे सारे कार्य देखते हैं, अच्छे या बुरे इसलिए हमें यह सोच मिटा देनी चाहिए कि सिर्फ पूजा पाठ या व्रत से हम ईश्वर को प्रसन्न कर सकते हैं क्योंकि उनसे ज्यादा न कोई हमें जनता है और न जान सकता है। हमें हर कार्य यह स्मरण करके करना चाहिए कि ईश्वर हमें देख रहे हैं और हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि गलती माफ़ की जा सकती है परंतु जानबूझ के की गई गलती, अर्थात पाप, उसका सिर्फ दंड होता है। ईश्वर ने मनुष्य को सबसे समझदार प्राणी बनाया है ताकि वह दूसरों की सहायता करे, उनका दर्द समझे न की कमज़ोर जीवों पर और जरूरतमन्द लोगों पर अपना बल प्रयोग करें। हमें अपने धर्म के खिलाफ जाने से भी संकोच नहीं करना चाहिए यदि उसकी किसी भी रीति से किसी को परेशानी हो रही हो क्योंकि यह धर्म, जाति और उनके नियम इंसान ने ही बनाए हैं और मनुष्यों से गलती होना स्वाभाविक है। इसीलिए हमें सिर्फ समानता और मानवता के मार्ग पर चलना चाहिए और हर धर्म से सिर्फ वही बातें माननी चाहिए जिसमें हर मनुष्य, हर जीव का हित हो। परिवर्तन में कोई बुराई नहीं है और हमें यह बात पूरी दुनिया को समझानी होगी क्योंकि अच्छे कामों के लिए किया गया परिवर्तन सिर्फ खुशियां और प्रकाश ही लाता है। हमें हर जीव के प्रति दया और प्रेम की भावना रखनी चाहिए जो अपने दर्द को प्रकाशित नहीं कर पाते। यदि दुनिया का हर मनुष्य इन अनमोल विचारों को अपना ले तो इस धरती को भी स्वर्ग बनाया जा सकता है।


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