Vaishnavi Mishra

Inspirational

4.0  

Vaishnavi Mishra

Inspirational

बदलाव की चाह

बदलाव की चाह

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मैं जिस चीज़ से बचपन से सबसे ज्यादा नफ़रत करती हूँ पता नहीं सबको वहीं करने में क्या मज़ा आती है। अगर मैं हमारे देश, हमारी दुनिया में कोई बदलाव चाहती हूँ तो वो यह है कि हर इंसान दूसरे इंसान को अपने भाई -बहन समझे, अपनी दृष्टि से ही देखें। उससे भी अपने जैसा एक इंसान समझे न की उससे उसके जाति या धर्म के संदर्भ में भेद करें। उससे यह कहकर न बुलाया जाए कि वह हिन्दु है, मुसलमान है या ईसाई है। कानून ने लोगों की बीच की दूरियों को तो कम कर दिया है परंतु दिलों के बीच की दूरियों को न कल कम कर पाए थे, न आज। बहुत से बदलाव हुए हैं पर आज भी कोई ये नहीं मानता कि हम सब बिल्कुल समान हैं। कोई नहीं मानता कि हम सब में कोई अंतर नहीं है । स्कूल में हम लोगों को एकता का संदेश दिया जाता है वहीं घर पर जाति और धर्म के विषय में भेद करना सिखाया जाता है , बताया जाता है कि वो दूसरे धर्म या जाति का है। सब पढ़ते तो हैं इतिहास में की दो धर्मों की लड़ाई में कितने निर्दोष लोगों की जान जाती है जिनका उस विवाद से कुछ लेना देना नहीं होता, यहाँ तक की उन्हें कारण भी नहीं पता होता । इतना सब ज्ञात होने के बाद भी कोई ये नहीं सोचता कि उसमें सुधार कैसे लाया जाए। कोई यह नहीं सोचता कि ये गलत है । कोई ये नहीं सोचता कि यदि सब समानता से रहें तो कितने लोगों की जान बच सकती है। हमारे देश और पूरी दुनिया में जाने कितने ऐसे विवाद होते हैं जिनका मुख्य कारण सिर्फ धर्म होता है। जो ज्यादा जरूरी चीज़ें हैं उनपर सरकार कभी ध्यान ही नहीं दे पाती। सब अपने धर्म की प्रशंसा तथा दूसरे धर्मों की बुराई करते रहते हैं। यहाँ तक की अपने बच्चों को भी यही सिखाते हैं। उनके मासूम दिमाग में बचपन से ही दुश्मनी के दाने बो देते हैं। कभी उन्हें दूसरे धर्मों की अच्छी बातें नहीं बताते। यदि कोई समानता का साथ देता है तो ये लोग उससे "धर्म विरोधी" कहने में ज़रा भी संकोच नहीं करते। सब बड़े अपने आप को ही सही समझते हैं और बच्चों की बात हमेशा उन्हें गलत लगती है। कोई धर्म पता नहीं समानता का साथ क्यों नहीं देना चाहता जबकि सब जानते हैं कि वह सही है पर कोई अपनी रूढ़िवादी मानसिकता से भी पीछे नहीं हटना चाहता।

सब के मन में जो एक दूसरे के खिलाफ नफ़रत है, जो उन्हें बचपन से सिखाई गई है वह उसका विरोध नहीं करना चाहते। हम यह भी कहते हैं कि "ऑलवेज नेक्स्ट जनरेशन इस बैटर थान प्रीवियस जनरेशन" और अपने बच्चों की बात भी नहीं सुनना चाहते। ज़रूरी नहीं है बड़े हमेशा सही है हो, छोटे भी सही हो सकते हैं और मेरे अनुसार बच्चों को अपनी आधुनिक सोच बड़ों के सामने रखनी चाहिए और उनकी रूढ़िवादी मानसिकता बदलनी चाहिए ताकि जो गलत है उसका शिकार अगली पीढ़ी को न बनना पड़े। न की उनकी रूढ़िवादी मानसिकता का समर्थन करना चाहिए क्योंकि गलत चीज़ का समर्थन करना भी गलत ही होता है। हमें यह भी बताया जाता है कि हमेशा सच्चाई का साथ देना चाहिए और यदि कोई किसी अपने की गलती पर उससे सज़ा दिलवाये तो उसे बुरा और निर्मोही कहा जाता है। यदि सभी डॉक्टर और वकील परिवार और अपनों के मोह में ही काम करने लगे तो हमें न अच्छे वकील मिलेंगे जो निष्पक्ष होकर अपना फैसला सुना सके और न अच्छे डॉक्टर जो निस्वार्थ भाव से सबकी सेवा कर सकें। हकीकत से सब वाकिफ हैं पर कोई उससे मानना नहीं चाहता। भगवान, अल्लाह, ईश्वर सब एक हैं ये भी सिखाया जाता है और वहीं दूसरी तरफ हम मस्जिद और मंदिर के लिए लड़ते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है "राम मंदिर फैसला" जो केस इतने दिनों, इतने सालों के लिए चला। सभी लोग एक बार दिल पर हाथ रखकर, निष्पक्ष होकर सोचिए कि क्या यह इतना महत्वपूर्ण मुकदमा था? क्या यह बेहतर न होता कि वहाँ एक अस्पताल या विद्यालय खोला जाता जो सभी इस्तेमाल कर सकते। मंदिर हो या मस्जिद या गुरुद्वारा हैं तो सब ईश्वर की इबादत के स्थान तो कोई इन्हें एक क्यों नहीं मानता? आजकल की पीढ़ी भी इस बात पर ध्यान नहीं देती और बिना सोचे समझे सिर्फ उसी राह पर चलती है जो उनके माता -पिता उन्हें दिखाते हैं, वह यह नहीं समझते की माता पिता भी गलत हो सकते हैं और उनकी सोच को बदलना आज की जनरेशन की जिम्मेदारी है। आज के युवा ही हमारे देश के भविष्य हैं और यदि वो ही रूढ़िवादी विचारधारा रखेंगे , धर्म और जाति में भेद करेंगे तो हमारे देश की प्रगति में अपना योगदान कैसे देंगे। युवा पीढ़ी ही हमारे देश में बदलाव ला सकती है। यदि हम सही हैं तो हमें कभी भी चुप नहीं रहना चाहिए और अपने विचार दूसरों के सामने प्रकट करने चाहिए। यदि कुछ गलत है रहा हो तो हमें उसका विरोध करना चाहिए बिना यह सोचे की सामने कौन है। यदि सब लोग एक दूसरे को समानता की दृष्टि से देखें तो हमारा देश प्रगति की उस मुकाम पर पहुँच सकता है जिसका सपना भी हमने कभी नहीं देखा । मैं सबसे सिर्फ इतना अनुरोध करना चाहती हूँ कि 2021 में 1921 की सोच न रखें जिससे इतिहास दोहराया न जाए। सभी एक दूसरे को मनुष्य की दृष्टि से देखें न की धर्म या जाति की दृष्टि से। हम सब एक हैं और हमें एक ही भगवान ने बनाया है इसलिये मेरे अनुसार धर्म जाति जैसा कुछ होना नहीं चाहिए क्योंकि यह बटवारा तो इंसान की देन है, ईश्वर ने तो सभी को दो आँखें, दो कान ,एक मुँह, एक नाक अर्थात सबको बिल्कुल एक सामान बनाया है। सभी के जन्म एक ही प्रकार होता है और मृत्यु भी इसलिये हमें भी धार्मिक कुरीतियों का साथ न देते हुए देश के विकास और प्रगति की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।


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