मानवता ही धर्म
मानवता ही धर्म


यह कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जिसने मानव सेवा को ही असली धर्म समझा यह उस व्यक्ति की कहानी है जिसने अपने बचपन से ही गरीबी का दौर देखा। उनके 4 बेटे थे, उन्होने अपने चारों बेटों को भी मेहनत करना सिखाया। चारों ही बेटे अलग - अलग जगह नौकरी करते थे और जो घर में होता था वहीं खा लेते थे, धीरे-धीरे समय गुजर रहा था उनके बेटों की भी शादियाँ हो गयी और देखते ही देखते उनका संयुक्त परिवार हो गया उनके पोते - पोती हो गये अब धीरे-धीरे उनकी स्थिति भी सुधर रही थी। समय गुजर रहा था, वह बुजुर्ग हुए उनके पोते - पोतियों से उनका बहुत प्रेम था।
अब उनका परिवार सक्षम था सभी लोग घर में मिलजुल रहते थे। एक ऐसा समय आया जब उनके करीबी रिश्तेदार ने गरीबी की स्थिति देखी वह जानते थे उस दौर को इसलिए वह उनके करीबी रिश्तेदार के यहां खाने की चीजें रख आते थे उनके बच्चों को जरूरत का सामना किताबें भी दिलाते थे अब उनके रिश्तेदार के बच्चे भी बडे़ हो रहे थे, वह देख र
हे थे किस तरह मुश्किल दौर में उनके संबंधी उनकी मदद कर रहे थे, कई बार ऐसा होता था वे अपने परिवार वालों को बताते भी नहीं थे और अपने रिश्तेदार के घर जरूरत का सामान रख आते। धीरे-धीरे उनके रिश्तेदार भी सक्षम हो रहे थे। उनके लिए परिवार की सेवा ही असली धर्म था। उन्होंने यह साबित कर दिया था मानवता ही असली धर्म है आज हम किसी की मदद करेंगे तो वह हमे दुआ ही देगा और वह दुआ किस जगह किस रूप में आपको लगती है यह आप नहीं जानते यही सीख वे अपने परिवार को भी देते थे।
समय और गुजारा अब वे बुजुर्ग हो रहे थे शुगर की बीमारी होने के कारण वे और कमजोर हो गये एक दिन ऐसा आया जब उनकी सांसे थम गई और वह देवलोक को चले गए, उनके परिवार में जैसे दुख के बादल छाए गये।
उनके अंतिम समय में सब के कुछ न कुछ शब्द थे पर उनके संबंधी जिनकी उन्होंने मदद की उनके शब्द कुछ इस तरह थे-
सब के दिलो को जीतकर भी कोई इस तरह जाता है
आज उपर वाला भी खूब मुस्कुराया होगा
जब उसने आपको परलोक बुलाया होगा।