मानव जीवन का उद्देश्य
मानव जीवन का उद्देश्य
एक गांव था, जहां का एक नियम था, वहां गाव के किसी व्यक्ति को 5 वर्ष के लिए सरपंच चुना जाता था, उसके बाद उस गांव के पास एक नदी बहती थी उस नदी के उस पार एक घना जंगल था, वहां उस व्यक्ति को छोड़ दिया जाता था। जो भी व्यक्ति सरपंच बनता था, उन्हें मालूम रहता था कि 5 वर्ष बाद उसे जंगल में छोड़ दिया जाएगा और उसकी मृत्यु निश्चित है, ये सोचकर 5 वर्ष तक सिर्फ पैसा इकट्ठा करने, भीग विलास और आनंद लेने में मदमस्त रहते थे। और 5 वर्ष बाद उसकी जंगल में छोड़ देने पर जंगली जानवरों के द्वारा उन्हें खा लेने से मौत हो जाती थी। इसी प्रकार कई वर्षों तक चलता रहा । गांव में लोगों की संख्या कम होने लगी। और लोग मौत के भय से सरपंच बनना नहीं चाहते थे। एक बार उस गांव में एक ऋषि आया। गांव वालों ने सोचा कि इस ऋषि का न तो कोई परिवार वाले है और न ही इनकी मृत्यु पर कोई रोने वाला है, ऐसा सोचकर उस ऋषि से गांव का सरपंच बनने के लिए बोले। साथ ही इस ऋषि को गांव का नियम भी बता दिया कि 5 वर्ष पश्चात किस प्रकार से उन को जंगल में छोड़ दिया जाएगा। ऋषि सरपंच बनने को तैयार हो गया। जैसे ही सरपंच बना उन्होंने सबसे पहला काम कराया उस नदी में पुल बनवाने का जिसमें 2 वर्ष का समय बीत गया। उसके पश्चात अगले 2 वर्षों में उन्होंने नदी के उस पार के जंगल को कटवा कर समतल करवा दिया तथा अंतिम के 1 वर्ष में उन्होंने वहां एक सुंदर बहुत बड़ा सर्व सुविधा युक्त आश्रम का निर्माण करवा दिया। जैसे ही उस ऋषि के 5 वर्ष पूर्ण हुए उन्होंने ग्राम वासियों को बोला कि जैसे आपके गांव का नियम है वैसा आप कीजिए। गांव वालों ने उसे ऋषि को नदी के उस पार ले जाकर छोड़ दिया। ऋषि नदी पुष्पा के आश्रम में रह कर धार्मिक कार्य यज्ञ अनुष्ठान करने लगा और अपनी पूरी जिंदगी सुख पूर्वक व्यतीत किया। काश अन्य लोग जो पूर्व में सरपंच बनते थे वह भी अपने भविष्य को ध्यान में रखते हुए कार्य करते तो शायद उनमें से किसी की भी मृत्यु नहीं होती।
सीख: गांव का सरपंच हर एक मानव है, 5 वर्षों का समय हमारा जीवन काल है, जंगली जानवर काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकार हैं, जंगल हमारा जीवन स्थल है। हम सभी को यदि मनुष्य शरीर प्राप्त हुआ है तो हमें इसका उद्देश्य नहीं भूलना चाहिए। क्योंकि कबीर दास जी ने कहा है की-
मानुष जनम अमोल है, मिले न दूजी बार ।
पके पात जो गिरत हि, बहुरि न लागे डार।।
क्योंकि हम सब को एक न एक दिन यह मानव शरीर त्याग करके परमधाम को जाना है । इसलिए जब तक हम जीवित हैं तब तक ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे हमारा अंत सुधरे। अन्य पूर्व के सरपंच जैसा मोह, माया में हमें लिप्त नहीं रहना चाहिए। भगवत भक्ति भजन कीर्तन जैसे धार्मिक कार्य, परोपकार एवं मानवता संबंधी जन कल्याण के कार्य हमें करते रहना चाहिए। यही हमारे मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य है।
