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Om Prakash Gupta

Inspirational

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Om Prakash Gupta

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मानो तो देश, नहीं तो पत्थर

मानो तो देश, नहीं तो पत्थर

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  यह सही है कि बीते वक्त के बारे में केवल सोचने से कोई नहीं बदलाव होगा और न ही कुछ हासिल होगा , परन्तु अतीत की घटनाओं व अनुभवों  जो सीख मिली, उसे आज सावधानी और समझ से कुछ अच्छा कर जीवन का आनन्द अवश्य उठाया जा सकता है I वर्तमान हमारी अनमोल संपत्ति है जिससे हम अपना भविष्य और अधिक संपन्न बना सकते हैं I अतीत के पल गुजर जाते हैं पर स्मृति ताउम्र जिंदा रहती है, इसके तेल से जले चिंतन दीपक के प्रकाश से वर्तमान की अनेक साहस भरी पगडंडियाँ आलोकित हुई हैं I स्मृति और परम्परा में गहरा सम्बन्ध हैI अत: अतीत से लाभान्वित होने के लिए परम्परा को अपनाना हम आवश्यक समझते हैं I हाँ अगर परिपाटी में कहीं दोष है तो उसका परिष्कृत होना आवश्यक है I

     हमारा ऐसा मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति के अतीत के भावनाओं का प्रथम भंडार विद्यालय होता है, यह पत्थरों या ईंटों का भवन जरूर दिखता है पर भावुकता से सोचे तो इनमें समाई मिट्टी, भरी वायु और नमी और बसी आत्माओं की जिंदादिली इसे देवतुल्य बना देती हैं I माँ की गोद रुपी पाठशाला से इस भवन तक जो पगडंडी बनती है, उसमें पिता के उत्कर्ष भावों का सम्मिश्रण अवश्य रहता है I यह एक सपना सा है पर सत्य होता है, सोचो तो सही कैसे बड़े हौसले से माँ स्कूल जाने से पहले ड्रेस और जूता पहनाकर मुंह पकड़ कर बाल काढ़ती थी, पिता किताब कापियों का बस्ता अपने कन्धों पर टाँगकर हमारी अंगुलियों को अपने हाथ में लेकर एक निर्धारित पगडंडी पर पैदल ही चलकर स्कूल तक छोड़ने जाते थे और कुछ देर खड़े होकर इंतजार करते थे शायद हमें निर्धारित कक्षा में पहुंचने को सुनिश्चित करते होंगे I    

     देवतुल्य वह स्कूल, माँ और पिता के किए कृत्यों के यादों को कभी नहीं भुलाया जा सकता I हम चाहे कितना धनवान हो जाए या कहीं भी चले जाए, पर वापस उस स्कूल की याद जरूर आती है I ऐसा लगता है कि भले कुछ दिन के लिए सही एक बार फिर वो हसीन पल मिल जाए और उन पलों को खुलकर जी लूँ I और उन मस्ती भरे बीते दिनों को अपने जेहन में समा लूँ, मुझे याद आता है कि जब हम गलती से किसी दूसरे कक्षा में चले जाया करते थे तो सभी साथी ऐसे देखते थे जैसे कोई दूसरी दुनिया से कोई अजूबा प्राणी आ गया हो I हमें याद आता है के बोर्ड की परीक्षा के दौरान परीक्षा केंद्र में पहुँचने के पहले हम सभी साथियों को हमारे कक्षा शिक्षक के पास जाना होता था वहाँ वे हम सभी को दही पेड़ा खिलाकर सफलता का आशीर्वाद देते थे तत्पश्चात हमारे लीडर बनकर परीक्षा केंद्र तक छोड़ते थे, यही नहीं परीक्षा समाप्त होने पर पुन: वहाँ उपस्थित होकर हमारे सही उत्तरों पर उत्साहित होते थे और उत्साह बढ़ाते थे I ऐसा लगता है कि वो अतीत के पल खास थे, अब इन आधे अधूरे भावनाओं और कुछ आधे अधूरे सपनों से कहीं उस स्कूल में गुजारे दिनों की मीठी यादें हमारे जेहन को सदा याद और सुकून देते रहेंगे I हमें याद आता है कि स्कूल का पहला और अंतिम पल एक जैसा होता था, दोनों बार आँखों में आँसू होते थे पर रोने की वजह अलग थी I

      वास्तव में प्राथमिक शाला एक ऐसा स्वर्ग तुल्य उपवन होता है जहाँ शिक्षक  साक्षात देवतातुल्य रूप में माली बनकर बचपन जैसे फूलों की मासूमियत को भाँपकर पौधों को ऐसी ऐसी क्यारियों में रोपता है जहाँ उन्हें पर्याप्त पानी, उपजाऊ मिट्टी और तदनुसार खाद मिल सके और मस्तिष्क को सदैव तरोताजा और नये विचार को स्फुरित करने वाली ठंडी ठंडी बयार पर्याप्त रूप से मिल सकेI इसी उपवन के नीम की ठंडी छाँव तले बचपने में कुछ सपने बोये गये जो अब समझदारी के दलदल कहीं चले गये I 

      स्कूल पत्थर की इमारत के रूप में वह देवता है जो हमें ऐसा समय प्रदान करता है जब हमें जिंदगी में सबसे ज्यादा सीखने की आवश्यकता होती है और हम सबसे अच्छे और भरोसेमंद दोस्त बनाते हैं I  



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