Jayshanker Dwivedi Vishwabandhu

Inspirational Others

3.8  

Jayshanker Dwivedi Vishwabandhu

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माँ

माँ

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माता ममता की दिव्य मूर्ति है,

सारे  जग से   न्यारी   है।

जिसके आँचल में निधि सारी है,

गोद  स्वर्ग  से  प्यारी   है।

हम  गीली  मिट्टी  जैसे  थे,

माँ ने आकार प्रदान किया।

खाने - पीने  बोली  भाषा,

चलने रहने का ज्ञान  दिया।

जिसके स्नेहमय  वचनों से,

सारी पीड़ा  मिट जाती है।

वह खुद  गीले में सोती है,

सूखे  में  हमें सुलाती है।

हम पौध जहाँ विकसित होते,

माँ  ऐसी पावन क्यारी  है।

माता ममता की दिव्य मूर्ति है,

सारे जग से न्यारी है ।।१।।


कहने  से  पहले  ही माता,

मन की सब बात समझ लेती।

माँ का आशीष रहे सर पर,

बाधाएँ पास  नही आतीं।

जिसका दर्शन हो  जाते ही,

सोई  आशाएँ   जग जातीं।

दुःख की रजनी में माता की,

ममता  बनती  उजियारी है।

माता ममता की दिव्य मूर्ति है,

सारे  जग से न्यारी है ।।२।।


जिसके आँचल में निधि सारी-

-है गोद स्वर्ग से प्यारी है।

जिसके आँचल में छिप करके,

अनमोल सुधा रस पीते हैं।

करती है उबटन तेल स्वस्थ,

निर्भय हो जीवन जीते हैं।

ऋषियों मनीषियों एका चरित्र,

माता  हममें  भर देती है।

वीरों की गाथा सुना - सुना कर,

धीर - वीर  कर  देती  है।

उससे बढ़कर इस दुनिया में,

कोई न कहीं हितकारी है।

माता ममता की दिव्य मूर्ति है,

सारे जग से न्यारी है ।।३।।


माँ की ममता देखो जा करके,

दूध  पिलाती  गैया   में।

बच्चे को चुन -चुन कर लाकर,

दाना   देती   गौरैया में।

क्या  देखा नही पीठ पर,

बच्चा लादे हुए बनरिया को।

मज़बूरी में मज़दूरी करती,

बच्चा लिए गुजरिया को।

चन्दन से बढ़कर शीतल जो,

अमृत से भी गुणकारी है।

धरती से बढ़कर सहनशील,

वह ‘विश्वबंधु’ महतारी है।

माता ममता की दिव्यमूर्ति है,

सारे जग से न्यारी है।।४।।


वह स्वयं वर्तिका सी जलकर,

हमको प्रकाश दिखलाती है।

अपने हिस्से का भी भोजन,

वह हमें खिला हर्षाती है।

मेरी कविता उस महा त्यागिनी,

माता  के  गुण  गाती है।

लेखनी आज हो गई धन्य,

माता को शीश नवाती है।

माता के पाँचों रूपों को,

सर झुकता बारी - बारी है।

माता ममता की दिव्य मूर्ति है,

सारे जग से न्यारी है।।५।।



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