Anju Tripathi

Inspirational

5.0  

Anju Tripathi

Inspirational

माहवारी

माहवारी

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14 वर्ष की उम्र जब चक्र चला शारीरिक जैविक क्रिया का कितना दर्द कितनी तड़पन अंग का पुर्जा-पुर्जा ढीला हुआ "मासिक धर्म" क्या आया। मानो पाबंदियों की सुनामी आ गयी।

मंदिर न जाना खाना न बनाना अचार सड़ जाएगा छूना नहीं ब्रह्महत्या का पाप है! अपवित्र हो गयी ! पड़ी रहो कमरे में। समझ थी इस विषय में पर खुलकर किसी को उस समय बताया नहीं बस सलाह मिल गयी कपड़ा प्रयोग की वही कपड़ा जो पहले भी इस्तेमाल हो चुका था।

टीवी पर ऐड आ रहा था..

"सैनिटरी पैड" महीने के उन खास दिनों के लिए।

खुश हुई पर थोड़ी शर्म के मारे किसी से बोल न सकी। माँ से तो बात करने में शर्म आ रही थी..किसी से बाजार से मंगवाऊँ? अरे! ना बाबा ना जान ही निकल जाएगी। चुप रही.. वही गंदा कपड़ा इस्तेमाल करती रही । पहने हुए कपड़ों में भी दाग आ गया।

कभी ऐड के बारे में सोचती कभी पीछे मुड़कर कपड़े देखती ..खड़ी भी नहीं रह सकती न बैठ सकती । माँ ने कमरे से बाहर जाने को मना किया है रहा नहीं गया कदम बढ़ा दिया कमरे के बाहर

माँ से बोलने के लिए आगे बढ़ी पर माँ तो भाई से बातें कर रही थी। कुछ सोचकर फिर कदम आगे बढ़ाया।

अपने दुपट्टे से उस दाग को ढँककर बोली- माँ इधर थोड़ा आना ना कुछ बात करनी है, माँ हड़ककर बोली क्या है ?

तू कमरे से बाहर कैसे आ गयी ? जा चुपचाप चली जा कमरे में। मैं घबरा गयी और पलटकर जैसे ही कमरे में जाने को चली। दुपट्टा थोड़ा सरक सा गया। जल्दी से सुधारकर दौड़कर कमरे में घुस गयी और दरवाजा बंद कर लिया। इस दौड़ा दौड़ी में माँ ने वो दाग देख लिया था और शायद भाई ने भी।

माँ पास में आई और दूसरा कपड़ा दे दिया, ऊपर से डांट भी लगाई, बाहर क्यों आई ?

कोई देख लेता तो ? अब रहा न गया, शर्म के बंधनों को तोड़ चिल्लाकर बोली।

कब तक ये गंदे कपड़े इस्तेमाल करूँगी? कब तक इन पाबंदियों में जकड़ी रहूँगी? संक्रमण हो जाएगा तो मर जाऊँगी.. अरे! खून ही तो है इसमें अपवित्रता कैसी ?

मासिक धर्म कोई श्राप नहीं। बल्कि वरदान है पढ़ा है मैंने किताबों में। ये बस क्रिया है जो शरीर में होती है कैसे समझाऊँ माँ आपको

आप भ्रांतियों में फंसी हैं आप हमें जन्म दे पाईं उसकी वजह "माहवारी" है ये न होता तो हम न होते आपने झेल लिया पर अब सोंच बदलने का समय है "सैनिटरी पैड्स" बिलकुल सुरक्षित हैं।

बाजार में कम दामों में उपलब्ध हैं। न दाग का डर न कोई हंस पाएगा

हम ही मौका देते दूसरों को खुद पर हंसने के लिए..समझो माँ।

इसके बारे में बात करने में भी शर्म कैसी? माहवारी। हमें और पवित्र बनाता है।

माँ चुप थीं..सोंच रहीं थीं। तभी अचानक दरवाजे की कुंडी खटकी।

माँ ने दरवाजा खोला तो भाई बाहर खड़ा था हाथ में उसने एक थैला लिया था माँ को थैला दिया और बोला छोटी को दे दो।

और भाई चला गया। माँ ने मुझे थैला दिया मैंने खोलकर देखा तो।

ये क्या? ये तो वही "पैड" था जो टीवी पर देखा था समझते देर न लगी

भाई ने सबकुछ देख सुन लिया था। भाई जागरुक था। इसके बारे में उसने भी पढ़ा था।

मैं माँ से कुछ कहती पर माँ पहले ही बोल पड़ीं सही बोली तू

शर्म कैसी ? पुरानी सोंच से बाहर आने का वक्त है। एक मैं जिसे तू समझा समझाकर थक गयी और एक तेरा भाई बिन बोले ही सब समझ गया। नयी पीढ़ी जागरुक हो रही और पुरानी पीढ़ी उन्हीं भ्रांतियों में जकड़ी है।

वक्त है उनसे छुटकारा पाने का और एक स्वस्थ, स्वच्छ और खुशहाल भारत बनाने का।


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