लम्हें, जिंदगी के
लम्हें, जिंदगी के
काफी जद्दो-जहद पश्चात इम्फाल,मणिपुर विश्वविद्यालय में आयोजित "भारतीय गणितीय विरासत" के राष्ट्रीय अधिवेशन के लिए हम अपनी पत्नी पूनम और बेटे राहुल के साथ अपनी मंजिल की ओर अपने निवास से निकल पडे। हम सभी पूर्वी तट रेल खण्ड के किरंदुल स्टेशन से विशाखापट्टनम, दक्षिण-पूर्व रेलखंड से हावड़ा होते हुए गोहाटी, दीमापुर (नागालैंड) तक और अंत में टाटा सुमो की टैक्सी से इम्फाल (मणिपुर विश्वविद्यालय कैम्पस)मणिपुर यात्रा बहुत रोमांचकारी और अनिश्चितताओं से भरी रही ,पहले तो गोहाटी (आसाम) स्टेशन उतरने पर पता लगा कि स्थानीय हड़ताल के कारण इम्फाल की ओर जाने वाली बसें अभी तक बंद थीं अभी अभी राज्य परिवहन की एक बस जा रही है। हम लोगों ने जब उस बस को देखा तो वह यात्रियों से खचाखच भरी थी, काफी यात्री खड़े खड़े सफर करने को तैयार थे यह नजारा देखकर उस बस से यात्रा करने की हम सभी की हिम्मत नहीं पड़ी । तभी किसी स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि मरियानी एक्सप्रेस दीमापुर होते हुए जायेगी आप सभी लोग वहां इसी ट्रेन से चले जायें तो वहां से अन्य विकल्प मिल सकते हैं ,हम इस अनिश्चितता में थे कि आगे की यात्रा कैसी होगी क्योंकि इस उत्तरी पूर्वी क्षेत्र में सीमावर्ती राज्यों के बीच सीमाओं का विवाद अक्सर होता है । खैर हम सभी ने ट्रेन में बैठकर दीमापुर (नागालैंड) तक यात्रा की । उस स्टेशन पर उतरकर हम लोगों ने पुनः वहीं नजारा देखा,लगा कि हम सभी को अधूरी यात्रा से लौटना पड़ेगा । इस स्थिति से अस्थाई निजात पाने और कुछ भोजन करने के लिए पास के हम सभी पंजाबी ढाबा चले गये। भोजन करने के उपरांत हमने संभावनाओं को तलाशने के उद्देश्य से ढाबा संचालक से पूछा कि बस के अलावा और कोई साधन मिल सकता है। उसने प्राइवेट टैक्सी के पूछताछ का हवाला दिया। तदनुसार हमने पूछताछ की पर सभी बुकिंग हो जाने से उपलब्धता से इन्कार किया। अब हम सभी बेबस होकर सड़क के किनारे खड़े थे । पर मन में आत्मविश्वास था कि हम एक अच्छे उद्देश्य के लिए चले हैं तो ईश्वर अवश्य मदद करेगा। हम ऐसा सोच ही रहे थे कि तभी कहीं से कोई एक टैक्सी ड्राइवर हम लोगों के पास आया और बोला कि मेरे टाटा सुमो में कुछ सीटें उपलब्ध हैं और सेनापति (मणिपुर) तक जायेगी, आशा की किरण आती देख हमने ईश्वर को आत्मीय धन्यवाद दिया और हम सभी उस टैक्सी में बैठ गये। दीमापुर रेलवे स्टेशन पर हमें कुछ लोगों ने हिदायत दी थी कि आप सभी इधर उधर घूमने की चेष्टा मत कीजिएगा, नागा लोग आप सभी से दुर्व्यवहार कर सकते हैं यही नहीं, आपके जान माल पर भी आ सकती है। दैवयोग से हमें टाटा सुमो टैक्सी में सारे नागा लोगों की फेमिली बैठी थी पर सब आफीसर कैडर के थे। हम सभी को डर लग रहा था इस लिए चुपचाप बैठे रहे । हमारे पास पब्लिक सेक्टर और यूनिवर्सिटी के कान्फ्रेंस का पत्र था, सो रास्ते की नाके की चेकिंग में पेश करते रहे । पर हम सभी के साथ उन लोगों ने कोई दुर्व्यवहार नहीं किया, हमसे तो सभी सभ्यता से पेश आ रहे थे। सफर में दूर से चारों ओर पहाड़ों और ऊपर से बह रहे झरने और उसमें से उठ रहे फांग का आनन्द ले रहे थे।इस चरम आनन्द को सभी ने दिल से अनुभव किया। तीन दिनों का गणित विषय पर राष्ट्रीय अधिवेशन खत्म होने पर हम सभी प्रतिभागियों के सम्मान में स्थानीय विधायक की ओर से विशेष भोज, वहां के विशेष ऐतिहासिक वाद्ययंत्र पीना (PINA) पर पुस्तक प्रदाय की गई इसके अतिरिक्त यूनिवर्सिटी के आडिटोरियम में मणिपुरी छात्र छात्राओं का कल्चरल प्रोग्राम रखा गया , इसमें छात्रों का तलवारबाजी,ढोल की थाप पर कलाबाजी और छात्राओं का मणिपुरी डांस मनमोहक रहे। पूरी टीम के लिए एक शैक्षिक ट्रिप का प्रबन्ध किया गया।हम परिवार सहित सभी टीम के साथ तैयार होकर मोइरांग ,लोकटक झील और एस्काॅन टेम्पल चलने के लिए बस में बैठ गये।सभी लोग मोइरांग में ऐतिहासिक स्थल देखने हेतु "आजाद हिंद फौज के संग्रहालय" अतिरेक से भरपूर थे। यह स्मारक ब्रिटिश, जापान और सुभाष चन्द्र बोस की फौज से युद्ध के दौरान आई0एन0ए0 के वीर गति को प्राप्त शहीदों की स्मृति में1944 में निर्मित की गई थी। यह स्थल मणिपुर के विष्णुपुर जिले में स्थित है। यह युद्ध "कोहिमा इम्फाल युद्ध" के नाम से प्रसिद्ध है। यह युद्ध 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लगभग तीन महीने लड़ा गया था। कोहिमा के गैरीसन हिल पर इस युद्ध में शहीद सैनिकों को दफनाया गया।
यहाँ पर जाॅन मैक्सवेल एडमंड ने एक स्मारक पट्टिका भी लगाई जिस पर लिखे वाक्य अभी भी हम लोगों के जेहन से अभी तक न उतरी , टीम के साथ हम सभी उस बात को अपने जीवन के अमिट लम्हे के नाम से अपने जेहन में समा रखा है ।पट्टिका पर लिखी संवेदनशील इबारत इस प्रकार है:"जब तुम घर जाओ तो हमारे बारे में सबको बताना और यह कहना कि उनके भविष्य के लिए हमने अपना वर्तमान बलिदान कर दिया"। तत्पश्चात लोकटक झील प्रस्थान किया,यह झील "कुंदी" के लिये प्रसिद्ध है वहाँ के मनोहर दृश्य सब पर अमिट छाप छोड़ते है। मणिपुर की यह शैक्षणिक यात्रा आज भी हमारे जीवन में एक विशेष स्थान रखती है ,हम सभी को उस स्थान का प्राकृतिक वातावरण, वहां के लोगों की सरल जीवन शैली बहुत भायी। इम्फाल से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर म्यांमार की सीमा है, हम लोगों ने वहां जाकर उस स्थान का लुत्फ उठाया। वापसी यात्रा में हम लोगों ने गोहाटी उतरकर पहाड़ी पर स्थित कामरूप, कामाख्या मन्दिर के दर्शन करने के पश्चात ब्रह्मपुत्र नद गये । नद की विशालता और विकरालता का सहज अंदाजा लग रहा था । गौरतलब बात यह है कि हमारे देश में नदियां बहुत है ,पर नद केवल तीन है वह हैं,सिन्धु,सतलज और ब्रह्मपुत्र। तत्पश्चात वहां की बाजार से स्थानीय वस्तुएं खरीद कर लौटती ट्रेन से अपने निवास आ गये। इस यात्रा के की वर्ष बीत गये, यही नहीं इस जीवन में अनेकों यात्राएं की ,पर इसका अनोखा पन निराला ही है जिसमें बीते लम्हे कभी भुलाये नहीं भूलते।
