लाडली
लाडली
संजना अब 15 साल की हो चुकी थी। और अपने जन्मदिन पर बहुत ही ज्यादा खुश थी।
घर में परिवार वाले भी खुश थे। और आपस में कह रहे थे ।हमारी "संजू" भी अब सयानी हो रही है।
संजना को भी अपना नाम संजू ही अच्छा लगता था।
संजू के घर में उसके अलावा उसके दो भाई और उसकी मां थी। पिता का साया और प्यार संजू को कुछ ज्यादा नहीं मिल पाया । उसके जन्म के 2 साल बाद ही उसके पिता का हृदयाघात से निधन हो गया था। उसके भाई जो की जुड़वा थे,वंश और विवेक, संजना से करीब 5 वर्ष बड़े थे, जिन्होंने कभी संजना को पिता के प्यार की कभी कमी नहीं होने दी।
वे दोनो बहुत ही ज्यादा विवेकवान और समझदार थे, पिता के निधन के समय वे करीब 7 वर्ष के थे, और उनके निधन के बाद से उनकी मां जो दिन रात रोया करती थी। ज्यादा रोने से उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी। जिससे दोनों भाइयों ने ही उतनी छोटी सी उम्र से ही अपनी बहन की बड़े प्यार के साथ परवरिश के साथ ही अपनी मां का भी भरपूर ख्याल रखा था। पढ़ना-लिखना शायद उनकी किस्मत में नहीं था। पर वो अपनी बहन की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने देते थे। उन्होंने गांव में दूसरो के खेत में मजदूरी कर कर अपने परिवार का गुजारा किया और कर रहे थे।
पर शायद संजू अब तक अपने भाइयों का परिश्रम और त्याग नहीं समझ पाई थी।
एक तरफ जहां उसके भाई इतने कर्मठ थे वहीं संजू उनकी एकदम विपरीत। जहां उसके भाई परिवार के बारे में ही सोचा करते थे । जिससे जो अपना बचपन तक भूल गए थे,
पर संजू को घर की छोड़कर पूरी दुनिया की ख़बर थी। वो घर का एक तिनका तक का काम नहीं करती थी। उसे मतलब था थी सिर्फ अपने दोस्तों से। उसकी नज़र में दोस्त ही सब कुछ थे। घर में मां की डांट पर अपनी मां को ही डांट देना अब उसे आने लगा था। क्योंकि ऐसा उसके दोस्त करते थे। भाइयों की सलाह उसे चुभने लगी थी।
जिससे दोनों भाई बहुत परेशान रहते थे । शाम को काम से घर आने पर संजू को पढ़ने को कहते तो संजू कुछ न कुछ बहाने लगा ही देती थी।
ऐसा नहीं था की संजू पूरी तरह बिगड़ गई थी पर शायद ज्यादा घरवालों के प्रेम ने उसे उनकी स्थिति नहीं समझने दी।
उसके लिए दोस्तों के साथ खेलना, हंसाना,घूमना ही जिंदगी बन चुका था। या कहे तो दोस्त ही उसके लिए सब कुछ हो गए थे।
एक दिन संजू का खेलते समय बायां हाथ फ्रैक्चर हो जाता है। उसकी मां ने उसे मना किया था की आज बारिश हुई है खेलने मत जा ।पर वो कहां मानने वाली थी वो चली गई थी।
भाइयों ने अपने मालिक से जैसे तैसे पैसे कर्ज में लेके बहन का इलाज कराया।
अब उसके हाथ में लग गया प्लास्टर और हो गया आराम एक महीने का घर के बिस्तर में।
करीब 5 7 दिन बीत जाने के बाद वो देख रही थी की और सोच रही थी की " मेरा कोई दोस्त मुझसे मिलने नहीं आ रहा और न ही कोई फोन ही कर रहे हैं।"
वो करते भी क्यूं वो मिलते भी क्यूं। क्योंकि थे तो वो भी संजू की प्रवृत्ति के उन्हें भी तो वो ही पसंद था जो संजू को था। उनके लिए भी तो किसी का सुख दुख से कोई मतलब नहीं था।
और दिन बीते संजू के घर में पर कोई दोस्त के न फोन और न ही कोई अब तक मिलने आया।
घरवाले तो घरवाले होते हैं वो तो उतने ही प्यार से संजू की देखरेख कर रहे थे । विवेक आजकल घर पर ही रहता था ।और संजू की देखरेख करता था।
ऐसा करते करीब 20 दिन हो गए थे।
और विवेक, संजू से पूछता है कि तेरा तो एक भी दोस्त तुझसे मिलने ही नहीं आया।
और थोड़े गुस्से से कहती है भैया सब मतलबी हैं।
और उस समय विवेक थोड़ा हंस देता है।
संजू को अब धीरे धीरे समझ आने लगी थी अपने परिवार वालों की बातें।
और वो अपने भाइयों के बारे में सोचने लगी थी। उसके भी दिमाग में अब आ रहा था अपने भाइयों का त्याग और परिश्रम।
शाम को जब वंश काम से घर आता है तो संजू उसके लिए अपने एक हाथ से पानी ले जाती है। और कहती है _ भैया लीजिए पानी।
वंश एक बार उसका चेहरा देखता है और उसको देखते हुए ही पानी पी जाता है। और कहता है _ तू ठीक तो है? कुछ चाहिए क्या तुझे?
संजू रुहांसे मुंह से कहती है नही और वंश के गले लगकर रोने लगती है और कहती है _"भैया मुझे माफ कर दो और यही कहते वो विवेक के भी गले लगकर रोती है।
और फिर अपनी मां के पैरो को छूकर उसे गले लगाकर रोती है।
दोनो भाई उसे पास बुलाकर समझते है और कहते है.
"संजू जिंदगी में लगभग सब जरूरी है पर हद तक" और हमें पता है की तू बहुत होनहार है और तू बहुत करेगी।
संजू फिर मुस्कुराके कहती है आपसे ही सीखा है।
और फिर सब खुश होकर खाना खाने लगते है।
संजू भी अब जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण पाठ समझ चुकी थी।
कहते हैं ना जिसकी कुंडली में सर्प कुंडली मारकर बैठा हो वहा सिर्फ जहर ही होता है,
एक दिन जब.....
