क्या खोया? क्या पाया?
क्या खोया? क्या पाया?
जीवन में रिश्तों की गरिमा को नकारा नहीं जा सकता। रिश्तों के बिना जिंदगी बेरंग हो जाती ये रिश्ते संबल बनकर राह दिखा देते हैं खून के हो या धर्म के। हर रिश्ता प्रेम,
त्याग,समर्पण,विश्वास,निष्ठा,अपनेपन की नींव पर खड़ा होता है और दिन प्रतिदिन पनपते इन्ही भावों से किसी भी तूफान से लड़ा जा सकता है।यह कोरोना महामारी से उत्पन्न तूफान हो या कोई अन्य .. ...
रामदेव और सुखदेव अच्छे दोस्त थे। दोनों शहर में लगने वाली हाटों में जाकर कपड़ों की दुकान लगाकर अपनी जीविका चलाते थे। दोनों परिवार आस पास के घरों में
मिलजुल कर रहते थे। रामदीन के पांच और सात साल की दो बेटियां थी। वह पढ़ा लिखा कर दोनों बेटियों को योग्य बनाना चाहता था ।
दिन रात मेहनत करता था। सुरेश के कोई संतान नहीं थी। अचानक आई कोरोना महामारी ने विकराल रूप धारण कर लिया। दुर्भाग्यवश रामदीन को महामारी ने अपने जवड़ों में जकड़ लिया। सुरेश ने दोस्त रामदीन को अस्पताल में भर्ती कराया रामदीन के फेफड़ों में संक्रमण बढ़ता गया और उसे बचाया न जा सका।चार दिन बाद पत्नी को भी संक्रमण ने धर दबोचा वह भी दुनिया छोड़ चल बसी। दो मासूम बच्चियों की जिम्मेदारी लेने से सभी रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ लिया। पत्नी की सहमति से दोनों बेटियों को कानूनी तौर पर गोद ले लिया। अपने घर आंगन को खुशी खुशी
खुशियों से सजा लिया।
इस तरह सुरेश ने अपनी घर बगिया को दो सुंदर कलियों से सुसज्जित कर मानवता का परिचय तो दिया ही... साथ ही साथ अपने दोस्ती के रिश्ते को भी आदर्श बना दिया और
बता दिया कि कभी कभी दोस्ती के रिश्ते खून के रिश्तों से भी ज्यादा फर्ज़ को निभाने की ताकत रखते हैं।
आज सुरेश की आंखों में अश्रु की धाराएं बह निकली जिसमें कुछ खोने कुछ पाने की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी एक ओर अपने जिगरी दोस्त को खोने का दर्द तो दूसरी ओर दो बेटियों को पाने की खुशी।
