कुछ बातें
कुछ बातें
कुछ सालों पहले जब यूं ही चल रही बात विवाद में Joy Acharya दादा ने एक बात कही थी की religion कुछ लोगों की बनाई नीति के अलावा और कुछ नहीं जो तब के समय के लिए उचित थी और कुछ हद तक प्रैक्टिकल भी थी , पर आज के समय में हमें religion पर नहीं बल्कि spiritual होने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। क्योंकि दोनों अलग है और दोनों इंसान को अलग गंतव्य तक ले जा सकते हैं ,, मुझे यह तब उचित लग तो रही थी पर तब मैं एक ही बात पर अड़ा था कि नियमों की उत्पत्ति विचार से होती है और धर्म की उत्पत्ति आध्यात्म से और साधारण जीवन में सब विचार के अधीन नहीं हो सकते इसलिए वह उस विचार से बंधे नियमों को पालन कर उसको श्रद्धा करते हैं , इस तुक से विचार और उसके नियम भिन्न तो नहीं अर्थात religion और spirituality भिन्न तो नहीं । शायद उस समय joy acharya दा मुझे इस विषय पर और चिंतन करने को कहना चाहते थे पर उन्होंने ज्यादा कुछ बोला नहीं था बस इतना कहा था शिव ही शुरू है और शिव ही अंत है।
कल रात से ही यह बातचीत दिमाग में चल रही थी इसका यह कारण हो सकता है शायद कि कुछ दिन पहले ही मैंने Partho दा को भी एक ही बात कही थी कि अब हमें नियमों पर ध्यान न लगाकर आध्यात्म पर विचार करना चाहिए यह बात मैंने अफगान में चल रहे स्त्री विरोधी कानूनों के खिलाफ में बोली थी यह वाक्य मेरे मुख से निकली तो थी पर बात या विचार मेरे नहीं थे तब यह घटना याद आ गई और मैं मनन करने लगा सच ही तो है लगभग सारे क्षेत्रों की यही कहानी रही है कला के क्षेत्र में भी उसका दर्शन ही है जो उसे बांधे रखता है बाकी नए नियम विधा नए तरीके यह वक्त के साथ-साथ जुड़ते रहते हैं और कलाकार को भी नियमों से पहले कला के दर्शन और आध्यात्म से जुड़ना ज्यादा अनिवार्य होता है यह बात जितनी सरल है उतनी ही सच और कठिन , नियम किसी बड़े बूढ़े विचार का एक छोटा अंश है जो वक्त के साथ बदलता रहता है जो सनातन है वह विचार है धर्म के मामले में भी यही बात है तब मैं भैया के वाक्य का अर्थ समझ नहीं पाया था पर अब कुछ कुछ समझ पा रहा हूं
दरअसल विचार और अध्यात्म ही शुरू है और जीवन में उसी को बांधे रखना जरूरी है चिन्हों पर विचार करने वाले सिर्फ दंगों में ही खत्म होंगे, हमें अपने जीवन में झांकने की आवश्यकता है अध्यात्म को विचारने की आवश्यकता है।
