कसाई
कसाई
वह कसाई नहीं था...पर पेट की आग-ने उसे कसाई बनने पर मजबूर कर दिया था। वह कसाई-घर में बैठ, बकरे-सुअर-बड़े आदि का मांस कसाई से ख़रीद कर बेचा करता था...कि मैं हत्या तो नहीं कर रहा हूँ, यही-सोच उसे तसल्ली देती थी...
पर कसाई का धंधा करते हुए उसने अपने बच्चों के लिए एक दुधारू-गाय घर में पाल रखी थी...। और कुछ-लोग उसे टांट कसते थे- आगे जाकर बूढ़ापे-में इस गाय को-भी काटकर बड़े-का-मांस बेच देगा...!
सुनकर वह नाराज़ हो जाता और कहता- यह गाय मेरी माँ है...और बातें आई-गई हो जातीं थीं...
समय बीतता गया...और 21 वीं सदी में उसका लड़का बड़ा हो गया...और बाप-का कार्य संभालने लगा था...
बूढ़ा होने के कारण वह कभी-कभी कसाई-घर नहीं जाता था...। और एकदिन उसने घर में देखा- कि उसकी बूढ़ी-गाय घर में नहीं है !! तो पूछने पर विदित हुआ कि सुबह उसका लड़का कहीं ले गया था...
जब गाय घर नहीं लौटी...तो वह लड़के के पास कसाई-घर गया, तो पूछने पर लड़के ने बताया कि मैंने कसाई से कटवाकर बेच दी...
सुनकर... उसने अपनी-दुकान में टंगे माँस को देखा तो उसे चक्कर आने लगा था...ऊपर हवा में लटकते उसकी बूढ़ी-गाय के मांस से लाल लाल-खून बहकर ज़मीन पर बह रहा था...और जब स्वयं को नीचे गिरने से संभलने, गौ-माँ के लटकते-माँस को पकड़ने की कोशिश की तो खून-के चिकनेपन से मांस वह पकड़ न सका था...और उसके हाथ हलाल कर हत्या- की गई गाय के खून-से रंग चुके थे...और वह जमीन पर गिरकर मर चुका था...
