कर्मा इज अ बिच
कर्मा इज अ बिच
ज़िन्दगी और कुछ भी नहीं तेरी में री कहानी है। मशहूर गाने की ये लाइन मुझे बेहद पसंद है। जीवन में कहानियाँ और कहानियों में जीवन ढूँढना ही एक लेखक का काम होता है। में री इस कहानी में किसी को अपने जीवन की एक झलक दिख सकती है या फिर किसी के जीवन में मुझे यह कहानी बिखरी मिली कह नहीं सकती। मैने तो बस बिखरे हुए भावों को समें ट दिया है शब्दों में। में रे शब्द किरदारों के साथ कितना न्याय कर सके यह भी जान पाना में रे लिए मुमकिन नहीं क्योंकि इस जीवन में हम सिर्फ़ स्वयं को जान लें तो काफी बड़ी उपलब्धि मानी जायेगी। दूसरों के विषय में तो सिर्फ अवधारणा ही बन सकती है। फिर बात जब मनुष्य के हृदय में ताक - झाँक करने की हो तो सारी सावधानियाँ और ज्ञान व्यर्थ सिद्ध होते हैं। हृदय की गहराई की थाह लेने में तो बड़े बड़े मनीषियों ने भी हाथ खड़े कर दिए फिर हम साधारण मनुष्यों की क्या औकात है। विज्ञान भी अभी तक मनुष्य हृदय में ंचार प्रकोष्ठों की ही जानकारी दे पाया है लेकिन हमारी कल्पना में एक सीक्रेट रूम भी कही न कहीं अवश्य है जिसकी एक खिड़की हम यत्नपूर्वक की गई लापरवाही से खुला छोड़ देते हैं। वैसे मुझे ईश्वर से भी एक शिकायत है। दिल जैसे महत्वपूर्ण विषय पर उन्होंने बड़ी लापरवाही से काम लिया है । जैसे मुँह खोलकर दाँत गिने जा वैसे ही दिन में एक बार दिल को खोल कर देखे जाने का प्रावधान जरूरी था ताकि किसी के आने जाने का पता चल सके। कम से कम पत्नियों को इससे बड़ी सुविधा हो जाती। बहरहाल कहानी अभय और शालिनी की है। एक आम से हिंदुस्तानी पति- पत्नी। वही जिन्हें शादी की रात एक दूसरे से प्यार हो जाता है और फिर वो ताउम्र एक दूसरे को 'आई लव यू ' नहीं बोलते। आज जबकि सोशल मीडिया का दवाब हमें यंत्र बनाने पर आमादा है अगल बगल बैठे पति- पत्नी एक दूसरे को फेसबुक पर 'आई लव यू ' कहने में ज्यादा सहज हैं। अब क्या करें जब पड़ोस वाले शर्माजी ने सुबह सुबह मिसेज़ शर्मा को गुलदस्ता देते हुए' हैप्पी बर्थडे माइ लव' लिखा हुआ फ़ोटो को प्रोफाइल पिक बनाया तो इधर वाले वर्मा जी का भी तो कोई फर्ज़ बनता है ना और फिर फर्ज़ निभाते निभाते हम सभी पूरे ही फर्जी बन गये।
दरअसल हथेली में समा जाने वाली इस बला जिसे स्मार्टफोन कहते हैं के ईजाद होने से पहले दुनिया के सभी पति - पत्नी अपनी- अपनी संतुष्टि असंतुष्टि सुख दुख आशा निराशा के साथ ठीक ठाक ही जीवन बिता रहे थे कि उनके जीवन में फेसबुक का प्रवेश हुआ। जब तक शालिनी को यह पता चलता कि फेसबुक उसके जीवन में कहाँ तक सेंध लगा चुका है अभय के महिला मित्रों की सूची लंबी हो चली थी और उनसे संपर्क बनाए रखना उसका प्रिय शगल बन चुका था। दरअसल अस्सी के दशक में युवा होने वाले भारतीय मर्दों को औरतों से घुलने मिलने का कोई मौका ही नहीं मिला। उन्होंने सोशल मीडिया पर मिले इस स्वर्णिम अवसर को हाथोंहाथ लिया।
सोशल मीडिया पर सुंदर महिलाओं को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजना मेंसेंजर पर चैट करना ये सारे काम वो बड़े ही तटस्थ भाव से किया करता था। जो जवाब दे उसका भी भला जो न दे उसका भी भला। औरतों से किसी भी प्रकार के व्यवहार में उसका अहम या आत्मसम्मान कभी आड़े नहीं आया। वैसे अभय की सबसे बड़ी खूबी यही थी उसका चरित्र कभी दोहरा नहीं रहा। उसने किसी से कोई बात छुपाई नहीं, बस उसे यह बात कभी समझ नहीं आयी कि प्रेयसी को कहे गए मधुर वचनों से पत्नी के अधिकारों का हनन कैसे हो जाता है। अब ये बात तो आज तक किसी पति को नहीं समझ आयी। खैर तो जैसे कोई दुकानदार दुकान खोलने के बाद सबसे पहले लक्ष्मी पूजन करता है वैसे ही ऑफिस के रास्ते में सभी देवियों को गुड मॉर्निंग के संदेश भेजकर अपने दिन की शुरुआत करना अभय को अच्छा लगता था, सामान्य हिंदुस्तानी मर्दों की तरह अभय की भी यही सोच थी कि हाथ बढ़ाना मर्दों का काम है और खुद को बचाना औरतों का काम। सामान्यतः चालीस पैतालीस की उम्र औरतों को एक अलग प्रकार की आज़ादी दे देती है। छुपने छुपाने बचने बचाने के आदिम खेल से आज़ादी।अभय का टारगेट ऐसी ही औरतें होती थी, अब थोड़ी बातें शालिनी की भी हो जायें। बचपन से ही हृदय रोग से जूझती शालिनी थोड़ी अंतर्मुखी और ईर्ष्यालु सी हो गयी थी। डगमगाते आत्मविश्वास के साथ बड़े होने के क्रम में उसने अपनी बीमारी को हथियार बनाकर अपनी बात मनवाने का हुनर अच्छी तरह सीख लिया था। शादी के बाद बहुत दिनों तक तो सब कुछ ठीक चलता रहा या यूं कहें कि घर और बच्चों की फिक्र ने पति की तरफ ध्यान देने का मौका नहीं दिया अभय के साथ एक छोटे से टाऊनशिप में रहते जीवन का खासा बड़ा हिस्सा निकल गया था जहाँ सब कुछ शालिनी के कंट्रोल में था। वही पुराने जाने पहचाने लोग। लेकिन मुम्बई जैसे महानगर में अभय का तबादला होते ही उसकी जिंदगी जैसे उथल पुथल हो गयी थी।
ऐसे ही किसी एक दिन अभय का फोन खंगालती शालिनी को शिखा दिखी थी।अभय का फर्स्ट क्रश जिससे कभी अभय की अकेले में बात तक नहीं हुई थी। शिखा के बारे में अभय ने ही उसे बताया था कभी पिछले पच्चीस सालों से किसी प्रकार का कोई संपर्क नहीं था दोनों के बीच। उसे देखते ही शालिनी की ऑंखें अंगारे बरसाने लगी थीं। तेज आवाज़ में चीखतीे हुए बोली "इसका नंबर कहाँ से आया तुम्हारे पास? कलमुँही को रास रचाने के लिए पूरी दुनिया में एक में मेरा ही पति मिला था।" दहाड़ें मार कर रोती हुई बीवी को चुप कराने में और अपनी सफाई देने में अभय को खासी मशक्कत करनी पड़ी। बात कुछ समय के लिए आई गयी तो हो गयी। लेकिन शालिनी के मन में 'शक का भूत' अच्छी तरह डेरा जमा चुका था। वैसे भी पति पत्नी का पूरा रिश्ता ही विश्वास पर टिका होता है। शालिनी तरह तरह के पैंतरे इस्तेमाल करती और हर बार कोई न कोई सुराग उसके हाथ लग ही जाता। फिर तो दो चार दिनों का अबोलाप, आत्महंता धमकियाँ ये सब आम बातें हो गयी। शालिनी जितना ही पति को नियंत्रण में रखने की कोशिश करती वह उसे मुट्ठी से रेत की तरह फिसलता प्रतीत होता। इन सब फिजूल के कामों में शालिनी जिस एक काम को भूल गयी थी वो था एक पत्नी का प्यार। अभय को खुद से दूर रखने में उसे एक अजीब आनंद आने लगा था। अब सारे सुखों से वंचित पति बाहर ही प्रेम तलाशता है।
अभय अब एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में प्रबंध निदेशक था। व्यस्त दिनचर्या लंबे वर्किंग आवर्स ऑफिसियल दौरे। शालिनी अभय को दिन में पाँच बार फ़ोन करती अगर फ़ोन उठाने में दस सेकंड की भी देरी होती तो अभय की खैर नही "किससे बातें कर रहे थे? " सारे दिन ऑनलाइन क्यों रहते हो
किससे चैटिंग हो रही थी? फ़ोन एंगेज क्यों था इत्यादि इत्यादि कभी न खत्म होने वाली प्रश्नों की झड़ी। वैसे इस दुनिया में शायद ही कोई पत्नी होगी जिसे पति के हृदय का एकछत्र साम्राज्य नहीं चाहिए। काश किसी इंजीनियर ने एक ऐसे झांगर का निर्माण किया होता जिससे पति के हृदय तल की गहराई में धँसी एक एक स्मृति को खींच कर खुरच कर बाहर निकाला जा सकता, इन सारे तनावों ,झगड़ों, मनमुटावों और बहसों का परिणाम था उसका निरंतर गिरता स्वास्थ्य। खुद को आईने में देखती तो बेतरह झुंझलाती। ऐसे में युवा दिखता खुशमिजाज पति उसे जन्म जन्मांतर का दुश्मन नजर आता जिसका जन्म ही उसके जीवन को नर्क बनाने के लिए हुआ था। दिन भर सोशल मीडिया पर पति की जासूसी करती और कुढ़ती रहती। अगर कभी भूले से भी अभय किसी महिला-मित्र की तस्वीर पर कुछ टिप्पणी कर देता तो उसकी शामत आ जाती फिर वह महिला चाहे रिश्ते में उसकी बहन, चाची, दूर की बहू या भाभी ही क्यों न हो, दुर्भाग्य से भरी एक घनघोर काली रात को किसी 'मैसेज' से शुरू हुए बहस ने इतना भयानक रूप अख्तियार कर लिया कि हृदयाघात की शिकार शालिनी को बचाया नहीं जा सका। वो जा चुकी थी अपने असल गंतव्य की ओर जहाँ इंसान अपनी सभी पीड़ाओं से मुक्त हो जाता है और रह जाते हैं स्मृतियों के कुछ पीड़ादायी दंश उनके लिए जो पीछे छूट जाते हैं।
यह सब इतना आकस्मिक और अप्रत्याशित था कि अभय को संभलने में काफी वक्त लग गया।कभी कभी हमें कुछ ऐसी गलतियों की भी सजा भुगतनी पड़ती है जो हमने कभी की ही नही।ये सब समझना समझाना इनसान के वश में कहाँ होता है । हमें तो बस घटनाओं को ईश्वर की मर्जी समझकर स्वीकारने की इजाज़त है। जीवन को पटरी पर वापस लाने की कोशिशों में लगे अभय को सोशल मीडिया की उन्हीं भूल भुलैयो वाली गलियों में अपर्णा मिली। अपर्णा एक बारह साल की बच्ची की तलाक़शुदा माँ। दूर दराज से जानता था अभय उसे लेकिन अब हालात कुछ अलग से थे। मैसेंजर और व्हाट्सअप के एकान्त में अपने अपने जीवन के दुख और अकेलेपन को बाँटते हुए दोनों की नजदीकियां कुछ ज्यादा तेजी से बढ़ीं और बाकी का जीवन एक दूसरे के साथ ही बाँटने का निर्णय लेने में दोनों ने देर नहीं लगाई।
प्रेम में पड़े हुए युगल की उम्र से प्रेम का कोई लेना देना नहीं होता। प्रेम तो सदैव युवा रहता है और अपनी गिरफ्त में फंसे जोड़ियों को भी युवा होने का अहसास कराता रहता है। इसी प्रेम के इशारे पर नाचते हुए दो युवा पुत्रियों के पिता अभय ने परिवार की खुली नाराज़गी और दोस्तों की सांकेतिक चेतावनी को धुएँ की तरह फूँक मार कर उड़ा दिया, अपर्णा बहुत सारे बच्चों वाले एक निम्नमध्यवर्गीय परिवार से आती थी। पति से अलगाव सहती,समाज का दंश झेलती और अकेलेपन को झेलती एक अकेली माँ। आज भी हमारा समाज में तलाकशुदा औरतों के माथे पर 'उपलब्ध' होने का ठप्पा लगा ही देता है। फिर छोटे से कस्बानुमा शहर में तो लोगों की फुसफुसाहट, इशारे, हँसी झेलते हुए रहना प्रतिदिन किसी युद्ध लड़ने से कम नहीं होता है। अपने बूढ़े माँ बाप के साथ समय काटती हुई अपर्णा को अभय के रूप में एक मसीहा नजर आया था जो उसकी बेटी को एक सुरक्षित भविष्य दे सकता था। वैसे भी एक माँ के भविष्य की योजनाओं में उसके बच्चे का हित सर्वोपरि होता है। अपर्णा के अभी तक के जीवन ने उसे सारे संबंधों की सच्चाई समझने का कड़वा अनुभव दे डाला था। जब अपना ही वक़्त बुरा हो तो कहतें हैं कि साया भी साथ नहीं देता फिर क्या सगे भाई बहन क्या दोस्त। उम्र भी हाथों से फिसलता जा रहा था।ऐसे में उसके रूखे सूखे जीवन में अभय ख़ुशियों की झमाझम बारिश लेकर आया था।अपने से उम्र में पंद्रह साल बड़े अभय में जीवन से निराश अपर्णा को उम्मीद की एक आख़िरी लौ जलती दिखी थी और उसे इस लौ को हर कीमत पर बचाना था ।दुनिया की सभी शादियों का तो पता नहीं लेकिन यह शादी अवश्य ही एक अनुबन्ध थी। अपर्णा अभय का वर्तमान संभालेगी और अभय दोनों माँ बेटी का भविष्य।
अपर्णा से शादी करने उसके घर तक जाना भी अनावश्यक सी बात समझते हुए उसने मुम्बई तक की फ्लाइट की दो टिकटें भेज दी थी। कस्बे की घुटन भरी जिंदगी से निकलते हुए अपर्णा ने मन ही मन प्रण कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाये यहां वापस नहीं आना है। उसे अंततः टेलीफोन आँफिस के काउंटर नंबर 6 से मुक्ति मिल ही गयी थी।
रजिस्ट्रार ऑफिस में अपने अपने हस्ताक्षर करने के बाद अभय के घर को जाते अपर्णा को अपनी किस्मत पर रश्क हो आया था। सारी बहनों में उसका ओहदा अचानक बहुत ही ऊपर उठ गया था। हम चाहें कितनी भी दलीलें दें लेकिन हिंदुस्तानी समाज में अभी भी स्त्री का स्थान उसके पति के रुतबे पर निर्भर करता है इस सच्चाई को अपर्णा से ज्यादा कौन समझ सकता था। शादी के लिए अभय की बस एक ही शर्त थी- अपर्णा को अपने परिवार–माँ बाप भाई बहन सबसे दूरी बनानी होगी। उसने सिर्फ अपर्णा को स्वीकार किया है उससे जुड़े रिश्ते नाते अभय के लिए कोई मायने नहीं रखते हैं। अभय ने अपर्णा की बेटी का दाख़िला एक महँगे इंटरनेशनल स्कूल में करवा दिया। एडमिशन फॉर्म पर पिता के नाम वाली जगह पर अभय का नाम देख कर अपर्णा ने उस ईश्वर को धन्यवाद दिया जिसकी सत्ता को वह बरसों पहले नकार चुकी थी। यह शादी दोनों के जीवन में ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ लेकर आयी थी। आपसी सहमति से बना स्त्री पुरुष का मेल चाहे जैसी भी परिस्थिति में हो तन मन दोनों को नए रस में सराबोर कर ही डालता है।काश मैं इस कहानी को यहीं समाप्त कर पाती।
लेकिन कर्मा का क्या?
अच्छी जीवनशैली, तनाव मुक्त जीवन और अभय के प्रेम ने जैसे कोई जादू सा कर दिया था अपर्णा के ऊपर । एक अजीब सी आभा से भर गई थी अपर्णा।उसका रूप नए ही निखार से दमक उठा था। अभय की दोनों बेटियों की नफरत को उसने अपने मौन के हथियार से साध लिया था। माँ का दर्जा तो दूर की बात दोनों ने कभी उसे इंसान का भी दर्जा नहीं दिया।
अपनी पुरानी दिनचर्या में वापस लौट आये अभय को एक नई बीमारी लग गयी थी। अपर्णा का फ़ोन बार बार चेक करने की बीमारी। सोशल मीडिया के उन्हीं गलियों में भटकते हुए कुछ सुनी सुनाई बातें परेशान करने लगीं। किसी को अप्प्रोच करते हुए उसकी अंगुलियाँ थरथराने लगतीं, दिमाग के तंतु झनझनाने लगते क्या कर रही होगी घर में बैठ कर इस वक़्त अपर्णा उम्र के जिस पड़ाव पर लोग कार की चाभी चश्मा खोने लगते हैं अभय दिमागी सुकून खोने लगा था। ऐसे ही किसी एक दिन सामने रखे अपर्णा के महँगे फ़ोन को जिसे उसी ने कुछ दिनों पहले बर्थडे गिफ्ट के तौर पर दिया था उठाकर देखते हुए कुछ ही सेकंड बीते थे कि मैसेंजर पर लगातार आते संदेशों ने अभय का ध्यान पूरी तरह से अपनी ओर कर लिया। लेकिन फ़ोन अपर्णा ने पासवर्ड प्रोटेक्ट कर रखा था। अपना फ़ोन उसके हाथों से लेते हुए अपर्णा ने अभय को गहरी नज़रों से देखा था। उन आँखों में काउंटर नंबर 6 पर बैठनेवाली पुरानी अपर्णा का कोई नामोनिशान नहीं था।
ऑफिस में बैठे बैठे अभय को अचानक अपर्णा का पासवर्ड याद आ गया था। कुणाल, कहीं कुछ कौंध गया था।
कल के सारे मैसेज कुणाल के भेजे हुए थे। एकदम से उठ कर घर आये अभय के लिए दरवाज़ा खोलते हुए अपर्णा मुस्कुरा रही थी और उसके पीछे खड़ा था कुणाल उसका एक्स हसबैंड जिसके हाथों में था कोर्ट का वो आर्डर जिसके अनुसार कुणाल अपनी बेटी से मिलने सप्ताह में किसी भी दिन आ सकता था। आफ्टर आल कर्मा इज अ बिच। पांचवी मंजिल से नीचे गिर कर कुछ टूटा था उस दिन जिसकी आवाज़ किसी ने नहीं सुनी।
आज अभय को शालिनी की बहुत याद आ रही थी।
