हरि शंकर गोयल

Comedy Romance Fantasy

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हरि शंकर गोयल

Comedy Romance Fantasy

कोरोना से पहले

कोरोना से पहले

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आज रात को सोते सोते अचानक बेचैनी सी होने लगी। शायद कोई भयानक सपना देख लिया था। सपना क्या था यह तो याद नहीं है लेकिन था बड़ा भयानक। लाशों के झुंड, चारों ओर हाहाकार, चीखते चिल्लाते लोग, अस्पतालों के आगे लंबी लंबी पंक्तियां। इतनी लंबी पंक्तियां तो नोटबंदी के समय ATM के बाहर भी नहीं लगी थी। हो सकता है कि यह सपना कोविड का रहा हो। अब उससे ज्यादा भयानक सपना और क्या हो सकता है भला ? 

मैं घबराया हुआ उठा और पानी पीने के लिए किचिन में जाने लगा। खुसुर पुसुर की कुछ आवाजें सुनकर मेरे पैर वहीं पर ठिठक गये। मैंने खिड़की में से हौले से झांका तो देखा कि कुछ बर्तन जैसे कढ़ाई, कलछी, परात, थाली, कटोरी, चालनी वगैरह एक साथ बैठकर मुंह से मुंह जोड़कर बातें कर रहे हैं। कुछ कुछ वैसे ही जैसे किसी चौपाल पर गांव की महिलाएं आपस में कानाफूसी करती रहती हैं। मैं चुपके चुपके उनकी बातें सुनने लगा। 

कढ़ाई कहने लगी "ऐ परात बहन, सुन ना। जबसे ये निगोड़ा कोरोना आया है मेरी तो मौज सी हो गई है। अब तो रोज रोज हलवा, पूरी, खीर और पकवान सजने लगे हैं मुझ में। मैं तरह तरह का खाना खाते खाते अघा गई हूँ। और देख, फूलकर कैसी कुप्पा भी हो गई हूँ। कोरोना से पहले कैसी स्लिम थी मैं। तब ये तवा, कुकर, बेलन, चिमटा सब लोग लाइन मारा करते थे मुझ पर, सीटी बजाते रहते थे। मगर मैं इनको भाव ही नहीं देती थी। ये लोग बस आहें भरकर रह जाते थे। अब तो रोज रोज ही चूल्हे पर चढ़ती हूँ मैं। पहले तो कभी कभार ही निकाली जाती थी। अब खा खाकर इतनी मोटी हो गई हूँ कि ये मुआ सिलबट्टा तक भाव नहीं देता है आजकल मुझे। निखट्टू कहीं का। और तू बता, तेरे क्या हालचाल हैं" ? कढ़ाई थोड़ी हताश सी हो गई। 

परात की आदत थी कि वह हमेशा हाथ नचा नचा कर बोलती थी। हाथ नचाने के पीछे भी एक राज था। दरअसल उसे गहने पहनने का बहुत शौक है। वह रोज रोज शॉपिंग करके कभी अंगूठी कभी छल्ला कभी कंगन कभी चूड़ी कभी हथफूल वगैरह लाती रहती थी और पहनती भी थी। जब भी वह हाथ नचा नचाकर बात करती तब किसी न किसी की निगाह उन गहनों पर पड़ ही जाती और वह आश्चर्य के साथ पूछती "ऐ पारो, अरे ये कंगन तू कहां से लाई रे ? बड़े सोणे सोणे लग रहे हैं यार"। और बस, परात का हाथ नचाकर बातें करने का तरीका सफल हो जाता था। अंधा क्या चाहे दो आंखें उसी तरह औरतें क्या चाहें थोड़ी सी तारीफ, बस। परात का इससे दो बूंद खून बढ़ जाता था। हालांकि उसने अपना फिगर मेनटेन किया हुआ है और वह एकदम स्लिम नजर आती है मगर इसके लिए वह क्या क्या वर्कआउट करती है, बता नहीं सकती है। और बताना भी नहीं चाहती है वह। वो इसलिए कि यदि और किसी को इस नुस्खे का पता चल गया तो फिर परात यानी पारो को कौन पूछेगा ? 

परात कढ़ाई की हां में हां मिलाते हुए कहने लगी "सही कह रही हो जिज्जी। हमऊ भी ऐसन ही लागत है। जबसे ई कोरोना मुस्टंडो आयो है, हमऊ भी चैन नाय लेन देत है ससुरा। हम भी दिन रात खटत ही रहत हैं रसोई मा। और ऊ सुसर का नाती चकला भी हमाय पीछे पड़त रहत है। ना जाने ऊ नासपीटे ने हममें का देख लियो है"। परात ऊपर ऊपर से तो गाली दे रही थी मगर चकला किया साथ नैन मटक्का भी कर रही थी और मन ही मन खुश भी हो रही थी। कढ़ाई जैसी बूढ़ी बड़ी का ध्यान परात के नैन मटक्का पर नहीं गया मगर कलछी की पैनी निगाहों से ऐसी बातें छिप नहीं सकती थीं। उसने फौरन पकड़ लिया। कलछी ने परात के कान में फुसफुसा कर कहा "रहने दो बुआजी। हमने सब देख लिया है। हमारे सामने होशियारी मत दिखाओ। हमने तो आपका और चकले का वो नैन मटक्का वाला वीडियो भी बना लिया है, कहो तो वायरल कर दू " ? तब घबराकर परात बोली "बेशरम, अपनी बुआ का वीडियो बनाते हुये तोय नैकऊ सरम नई आयी ? बड़ी कुंटांट है री तू" ? परात कलछी की पीठ पर एक धौल जमाते हुए बोली। "चल चुप कर, शैतान"। 

इतने में एक बूढ़ी बड़ी जानजुगारी ताई चालनी थोड़ा और आगे खिसक आई। चालनी को सब लोग जानती थी। उसमें सौ छेद होने के बाद भी उपदेश देने में सबसे आगे रहती थी। कहने लगी "आजकल की छोरियों के नखरे बहुत ज्यादा हो गये हैं। घर में तो दीदे लगते नहीं हैं इसलिए छोटे छोटे कपड़े पहनकर तितलियों की तरह उड़ती फिरती हैं। एक साथ ही कई शोहदों से इश्क के पेंच लड़ाती रहती हैं और मुंह भी काला कर आती हैं निगोड़ी। चूंकि कोरोना के कारण इनका कॉलेज में आना जाना बंद हो गया है इसलिए ये अपने आशिकों से मिल नहीं पा रही हैं इसलिए इन्हें भड़भड़ी छूट रही है। अरी बेहयाओ, तनिक लाज शरम बची है कि सब बेच खाई" ? चालनी ताई ने अपना ब्रहास्त्र छोड़ दिया था। बड़ा धमाका हुआ। 

कटोरी बड़ी तेज तर्रार थी। कभी चम्मच के साथ नाम जुड़ा था उसका तो कभी गिलास के साथ। थाल के साथ तो वह अक्सर देखी जाती थी। और तो और थाल की गोद में बैठकर जन्नत की सैर भी करती थी। अलग अलग बर्तनों से इश्क लड़ाने का साहस कटोरी हैं कर सकती थी और किसी की मजाल नहीं थी कि कोई कटोरी को कुछ कह सके। क्योंकि वह आधुनिक नारी थी। उसे कानून का पता था और कानून को कैसे तोड़ मरोड़कर अपने पक्ष में किया जा सकता है यह उसे भलीभांति ज्ञात था। कानूनों का दुरुपयोग करके उसने कइयों को नाकों चने भी चबवा दिये थे। इसलिए सब लोग उससे डरते थे। वह कहने लगी " रहने दे अम्मा। हमें सब पता है कि तुम कितनी खाई खेली हुई हो। सौ सौ छेद होने के बावजूद उपदेश देने की बेशर्मी आप ही कर सकती हो, और किसी की हिम्मत नहीं है। हम तो आपकी उम्र का खयाल करके कुछ कहती नहीं हैं नहीं तो वो "सूप" अंकल से आपका जो टांका भिड़ा हुआ है ना वह सबको पता है। मेरा मुंह मत खुलवाओ,हां।" गुस्से से चेहरा लाल हो गया था कटोरी का। सबने बड़ी मुश्किल से शांत करवाया उसे। 

शेष अगले अंक में 


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