कोहरा
कोहरा
सुधीर के घर में चहल-पहल है। मेहंदी, संगीत, मेहमानों के शोर से घर में आवाजें गूंज रही हैं, जो सुधीर को बिल्कुल रास नहीं आ रही। माँ की कसम के आगे सुधीर ने शादी के लिए हाँ कर दी।
लड़की को बगैर मिले ही माँ के कहने से विवाह के लिए तैयार हो गया। थोड़ी हिम्मत करके ताऊजी से कहने लगा "मेरे से पहले साक्षी की शादी होती तो अच्छा होता" सुधीर चाहता कि उससे पहले उसकी बहन साक्षी की शादी कर दी जाए। लेकिन ताऊजी ने कहा "तेरे शादी में जो दहेज और रकम आएगी उसी से साक्षी का विवाह करेंगे।
सुधीर को बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा था कि लड़की वालों से दहेज और रकम ली जाए। उसकी चचेरी बहनें और जवाई उसे गाड़ी, कार आदि की मांग करने के लिए जिद्द रहे थे। सुधीर को लड़की वालों पर दया आ रही थी।
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बारात के दिन माँ को छोड़ सारे रिश्तेदार सुधीर को घेरे खड़े थे। ताईजी सुधीर को तिलक की रस्म के लिए बुला भेजती है मगर सुधीर की निगाहें अपनी मां को खोज रही हैं। सारे रिती रिवाज निभाए जा रहे हैं मगर उसकी सूनी निगाहें मां को तलाश रही है। विधवा होने के कारण मां को रस्मों से दूर रहने को कहा गया है।
सब उसे घोड़ी पर चढ़ने का आग्रह कर रहे हैं। पर उसका मन मां के बगैर नहीं मान रहा। सुधीर मां का आशीर्वाद चाहता है। सुधीर सोचता है मां ने हमें पिता का भी प्यार दिया कभी उनकी कमी महसूस नहीं होने दी। सबके ना चाहते हुए भी वो पूजा की थाली लिए मां के पास आता है और तिलक लगा कर आशिष ले घोड़ी पर जा बैठता है। आज वो बहुत प्रसन्न हैं। मां से तिलक लगाकर और आशीर्वाद लें उसने अंधविश्वास के कोहरे को अपने जीवन से सदा के लिए हटा दिया।
रेशम