कलम से

कलम से

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दीवार पर लगी एक तस्वीर की तरफ़ देखकर सुरीली रोए जा रही थी और कह रही थी ,सब उसे की गलती है,जहाँ एक सच्चे और अच्छे लेखक की कदर नहीं,वहाँ एक नन्ही सी कलम का रूदन कौन सुनें ?

अख़बारों के मुताबिक़ कल रात को  किसी ने  श्याम बाबू को गोली मार दी, बस यही सुनकर सुरीली ग़मगिन है,क्यूँकि श्याम बाबू ही उसके सबकुछ थे।

श्याम बाबू एक अख़बार मे पत्रकार और लेखक थे,उनका काम बड़ा सच्चा और निष्ठापूर्ण होता था।

मुझे वो दिन याद है जब वो मुझे लेकर आए,अपनी बड़ी से  मेज़ पर मुझे एक दवात में रख दिया। मै सदा से चाहती थी कि श्याम बाबू अपने हर विचार मुझसे साझा करे।

एक बार वे किसी मधुर संगीत को सुनते- सुनते लिख रहे थे,तो मैंने भी उनके सुर में सुर मिला दिया,बस तब से मुझे पहचान मिल गयी।श्याम बाबू हमेशा समाज के उन पहलुओं के बारे मे लिखते या मुझसे साझा करते जिसे आज की रफ्तार भरी  पीढ़ी समझने में नाकाम रही है, जैसे:आत्मज्ञान,विश्वास,कर्म,और अनेक मानवीय संस्कारों की बातें करते थे।वे हर वो पहलुओं  पर बहुत श्रेष्ठ ज्ञान रखते थे।

मैंने भी देखा है हमारी बिरादरी को सिर्फ़ आज का कचरा फैलाने तक सीमित रखा है,जैसे बचपन से बच्चों को सृजन नहीं केवल रटना सिखाया जाता है और वो रटी -रटाई बातें यूँ ही चलती रहती है।मुझे श्याम बाबू का लिखा एक संदर्भ याद है :

'बचपन में मास्टरजी ने सलेट पर बरते से जो लकीरें खिंचवायी ,उन्हीं लकीरों मे आज तक सिमट के रह गयी दुनिया' सोचते हुए मे अपनी चेयर पर एक तस्वीर को लेकर बैठा था और अपने बीते दिनों के धूल झाड़ने लगा,'जब मैं दूसरी में था तो ऐसे ही सरकारी स्कूल की कमरे के टूटे फर्श और मैली सी चटाई पर बैढते थे,और मास्टरजी हमें कायदा(छोटी किताब)पढ़ना और लिखना सिखाते,मुझे ये सब सीखने मे तीन बरस लग गए,थोड़ा ढीला जो था इन अक्षरों को समझने में ।

उस दिन से लेकर आज तक कलम ही चलाई है मैंने,कभी कलम से छापा तो कभी लिखा। कलम की छपाई  मुझे पसंद न थी, मैंने लेखन को चुना ,आज कलम से समाज के उन तस्वीरों को उकेरता हूँ ,जो दुनिया जानती तो है पर समझती नहीं,मैंने पत्रिकाओं में लेखनी करते -करते अनेक लकीरों को बदलने की कोशिश की,पर अभी मैं पूर्णतया सफल नहीं हुआ,उन रूढिवादियों की सोच से परदा हटाने में।

लेखनी में लाखों बार मैंने रूदन किया इस समाज की दर्रिंदगी पर ,उन्हें रोकने की कोशिश की ,इस समाज की सोच को मैं इतना प्रभावित न कर पाया,शायद उन्हें सामाजिक गंदगी से अत्यंत लगाव हो।

एक बार तो मैंने किसी अवैध खनन और भ्रष्टाचार पर लिखा प्रतिक्रिया में मेरी ही कलम सर कलम चला दी गई।इस समाज की तार्किक क्षमता पर मैंने अपनी कलम को गौण नहीं होने देने का वचन लिया। आज भी मैं वचनबध्द उस कलम को पकड़े समाज की लकीरें बदलने में कार्यरत हूँ।(सुरीली अपने आँसू पूछंते हुए)

वे हमेशा एक बात कहते थे ,'हमेशा ईमानदार का साथ देना'।आज खून सिर्फ़ उनका नहीं हुआ, मेरा और उन सभी का हुआ है जिसने बुराईयो का परदा छूने की कोशिश की,क्यूँकि अब कोई उन्हें छूने का साहस दिखाने में कतराएगा।

(अब कलम दृढ़निश्चयी तरीक़े से) 

नहीं। अब और नहीं,अब श्याम बाबू जैसे लोगों की कदर उनकी मृत्यु के बाद उनकी तस्वीर पर मोमबती लगाकर नहीं,बल्कि उनके कामों से,उनके विचारों से,प्रेरित होकर एक नयी पीढ़ी ,नयी सोच का सृजन होगा,जो विश्व में शांति का परचम लहरा सकें।

"श्याम बाबू !मैं आपकी सुरीली कसम खाती हूँ कि मैं अपने अंत तक आपके विचारों को बढ़ावा दूँगी।"

(और सुरीली रोते-रोते ही सो गई)


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