Hukam Singh Meena

Inspirational

1.8  

Hukam Singh Meena

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किसान की दुर्दशा

किसान की दुर्दशा

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गाँव, राज्य, देश, समाज और विश्व की रीढ़ प्राचीन समय से किसान को माना जाता रहा है। हिन्दुस्तान अपने आप में कृषि प्रधान कहा जाने वाला देश रहा है। देश के विकास को एक नूतन रूप देने हेतु किसान को ही सबसे अहम भूमिका में माना जाता है। जिस तरह एक पिता अपने पूरे परिवार का ख्याल रखता है, उसी तरह एक किसान पूरे देश का ख्याल करने के लिए अन्न उगाता है। अजीब-सी विडम्बना है विघ्ना की, लोग भी मुख्यतः २ वर्गों में विभक्त हो गए, एक कड़ी मेहनत कर रहा है और एक पंखे के नीचे आराम फरमा रहा है। ज़नाब पंखे वाले क्षीण प्रवृति वाले लोग होते हैं, जिन्हें अपने स्वंय से मतलब है। उनके लिए किसान या गरीब व्यक्ति एक अलग धर्म का हो जाता है,वो उसे नीचा समझते हैं लेकिन कम्बख्त भूल जाते है कि वो जिन्हें नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं वही उनका पालनहार है जो उन्हें अन्न दे रहा है। यदि हम बात करें एक किसान की तो भारतीय किसान को दो वक्त का खाना भी ठीक से नसीब नहीं हो पाता, एक किसान मेहनत करके फसल उगाता है उसकी फसल को खाने के लिए पूरा देश होता है लेकिन तब कोई उसका साथ नही देता जब वही किसान मेहनत से कम में फसल को बेचता है तब भी ये... ये जो बड़े लोग बैठे हैं ना ये ही कीमत तय करते हैं, साहिब। सच कहा जाये तो जो इंसान मुसीबत में किसी का साथ देता हो वो सबसे ज़्यादा मुर्ख होता है। किसान सरकार व देश के साथ उसकी हर सम्भव परिस्थिति में देश का साथ देता आया है। उदाहरणार्थ हाल ही में कालेधन को वापस मंगवाने के लिए नोटबन्दी जो चली थी, वैसे प्रधानमंत्री की मुहिम अच्छी थी, भारतीय भोले भाले किसानों ने सरकार की इस खतरनाक परिस्थिति में जिस तरह से मदद की वो वाक़ई सराहनीय है। किसान की ज़रूरत होती है कि उसका बेटा पढ़ लिख जाये जिससे कि वो भी एक भिन्न प्रकार के लोगों की श्रेणी में शामिल हो जाये, समय परिवर्तन के साथ-साथ समाज, देश के हालात सब बदल चुके हैं, एक लड़का सुबह ४:००बजे उठता है और लग जाता किताबों के पन्नो मे जॉब ढूंढने फिर उसके बाद निकल पड़ता है गाँव की सड़कों पर क्योंकि वो एक किसान का बेटा है उसे तुम्हारी तरह राजनीति को गन्दीनीति नहीं बनाना है। देश के लिए मर-मिटना, देश की सेवा करना ही उसे सिखाया जाता है। आज का यदि वक़्त देखा जाये तो किसान की मेहनत व्यर्थ सिध्द होती है, अपने बच्चे को शिक्षित बनाने के लिए एक किसान कर्ज़े में डूब कर मर जाता है एक उम्मीद "मेरा बच्चा कोई बड़ा आदमी बनेगा", लेकिन उसका वो बच्चा जो वर्षों से गाँव की सड़कें तोड़ रहा होता है किताबों के पन्ने पलट रहा होता है बड़ा होकर फेसबुक या व्हाट्स एप के ग्रुप का एडमिन पद सम्भाल रहा होता है। भारतीय आर्थिक परम्परा में  किसान अपनी मेहनत, कर्मठता से अपनी पहचान बरकरार रखता है। आज उसी किसान को तुम नज़रंदाज कर अपना जीवन सुरक्षित करने तथा भविष्य को उज्ज्वल बनाने में लगे हुए हो। किसान और उसके जीवन की ओर या उसके बारे में ना तो कोई सोचता है और न ही कोई ध्यान देता है। सरकार द्वारा भी किसान की स्थिति-परिस्थिति के सम्बन्ध में किसी की कोई सहयोगात्मक भूमिका नही निभाई जाती। वैसे किसान को प्राकृतिक विषमताओं के चलते कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, कभी अतिवृष्टि तो कभी अल्पवृष्टि और सूखे की स्थिति तो अब लगता है हमेशा के लिए ही आ गयी है। इनसे किसान को अपने परिवार की दैनिक आवश्यकताओं के उपार्जन में खासी मशक्कत करनी पड़ती है, वहीं सरकार उस स्थिति में भी किसान की सहायता करने की अपेक्षा उसके सिर महंगाई जैसे भीषण डाइनामाइट का प्रहार कर उसके आत्मघाती बनने में सहायक की भूमिका अदा करती है। यही कारण है कि आज देश के कोने-कोने से किसान की आत्महत्या करने सम्बन्धी सूचनाएँ/समाचार सुनने को मिलते हैं। वो आत्महत्या राजनीति वाले अपने विपक्षी दलों पर थोंपते हैं। समाज में पैसे की सबसे ज़्यादा इज़्ज़त है ये आज का वक़्त बताता है, साहिब।

लोगों कि जुबान कहती है किसान देश की नींव है कभी किसान की तरफ़ भी देखो तो प्यारे। क्या? आज नोट इतना बड़ा हो गया जो तुम उसकी समस्याओं को भूल गए अपने सम्बन्धियों को परेशान करने की बजाय तुम किसान के जेब कुरेद रहे हो क्या यह् ठीक है? ज़रा सोच कर देखो। वैसे तुम्हारी "प्राइवेट संस्था खोलकर किसान को शिक्षा देने लग जाओ वो भी पैसों में" मुहीम एक काम ये भी करेगी। बैंक वाले तुम्हारे आराम कर रहे हैं। ई-मित्र घूंस खा रहे है, ना जाने कैसी लिंक बना रखी हो जाने कहां तक हो किस सीट तक हो, कुछ इंसानियत बाकि रह गयी है... यदि है और जो निकलने को बेकाबू हो तो किसान की दुर्दशा पर ध्यान ज़रूर देना मित्र।

             जय किसान


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