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PreetiSuman Gupta

Drama

4.6  

PreetiSuman Gupta

Drama

ख्वाब

ख्वाब

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खुशी तो उस दिन भी बहुत हुई थी,

जब मैं पैदा हुई थी। बाकायदा पाँच किलो मिठाई भी मोहल्ले में बाँटी गईं, फर्क भी कभी नहीं किया मेरे घर वालों ने, परवरिश में कमी न थीं कोई, फिर भी न जाने क्यूँ जिन्दगी में कमी खल रही है।

माँ-बाप ने अपनी जिंदगी लगा दी, लेकिन अब भी हमारी जिंदगी सँवरी ही नहीं, और हम ख्वाब बुन रहे माँ-बाप की बेहतर जिंदगी के।


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