नीलम पारीक

Inspirational

5.0  

नीलम पारीक

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खुशियों के दीपक

खुशियों के दीपक

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"चलो न पापादीपावली की ख़रीददारी करने",गुड़िया सुबह उठते ही ज़िद पर अड़ गई।"बिटिया रानीअभी कहाँ बाज़ार खुले हैं? अभी कुछ नहीं मिलेगा",पापा ने कोशिश की समझाने की। "लेकिन पापा घर तो सुबह ही खुल जाते हैं न हम दीपावली के दीपक तो खरीदकर ल ही सकते हैं न।"

"घर से? किसके घर से?" पापा ने पुछा। "पापावो मेरी क्लास में सोनू पढ़ता है न, उसके पापा मिट्टी के बर्तन बनाते हैं दीपक और गुल्लक भी हम लोग उनके यहाँ से दीपक भी खरीदेंगे और गुल्लक भी हमारी टीचर जी ने कहा था कि बच्चों को पैसे फ़िज़ूल खर्च नहीं करने चाहिये बल्कि गुल्लक में इकट्ठे करने चाहिये और जब काफ़ी पैसे इकट्ठे हो जाएं तो बैंक खाते में जमा करवा देना चाहिये।"

"लेकिन गुड़िया रानी, हम लोग तो आज शहर जाने ही वाले हैं, तो वहीं से और चीजों के साथ-साथ दीपक और गुल्लक भी ले आएँगे मॉल में एक से बढ़कर एक सजावटी चीजें मिल जाएंगी। यूँ भी मिट्टी के दीपक की जगह सजावटी लड़ियाँ ज़्यादा खूबसूरत लगेंगी न और वहाँ तरह-तरह के पिग्गी-बैंक भी मिल जाएंगे। हम क्यों खरीदें मिट्टी के दीपक और गुल्लक?"

"पापा सोनू बहुत ही ग़रीब लेकिन स्वाभिमानी बच्चा है। उसके पास यूनिफार्म के जूते नहीं हैं क्योंकि उसके पापा के पास जूते खरीदने के लिये पैसे नहीं हैं। हमारी टीचर जी ने भी कहा था कि वो उसे जूते दिलवा देंगी लेकिन उसने लेने से इंकार कर दिया। तभी हम सभी बच्चों ने सोच लिया था कि सोनू के यहाँ से ही दीपक तो खरीदेंगे ही साथ में गुल्लक भी ताकि वो लोग न सिर्फ त्यौहार अच्छे से मना सकें बल्कि अपनी सामान्य ज़रूरत की चीजें भी आराम से खरीद सकें।"

"अरे वाह!!हमारी बिटिया रानी तो बहुत सयानी हो गई है। ठीक है, हम ऐसा ही करेंगे और अभ्म सिर्फ शगुन के सात दीपक ही नहीं बल्कि बिजली की लड़ियों की जगह दीपमाला के लिये मिट्टी के दीपक ही खरीदेंगे। चलो, जल्दी करो कहीं हम किसी की खुशियों के दीपक जलाने के योगदान में पीछे न रह जाएं।"

पापा और बिटिया को मुस्कुराता देख माँ भी मुस्कुरा दी।


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