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Pallavi Pal

Inspirational Others

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Pallavi Pal

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खुद की खुद से मुलाक़ात

खुद की खुद से मुलाक़ात

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 "ज़िन्दगी की सबसे लंबी यात्रा, खुद तक पहुँचने की होती है"

 आईना हमेशा सच दिखाता है, चाहे हमें वो पसंद आए या नहीं। ज़िन्दगी भी कुछ ऐसी ही होती है — बिना लाग-लपेट के, बिना किसी फ़िल्टर के। रीमा ने जब अलमारी में रखा पुराना आईना निकाला, तो उस पर जमी धूल मानो बीते बरसों की चुप्पियों जैसी थी। उसने कपड़े से पोछा, और अपने चेहरे को नज़रों से टटोलने लगी। कुछ लकीरें, कुछ झुर्रियाँ — जो कभी दर्द की बारिश में भीगी थीं, और कभी मुस्कुराहटों की धूप में सुकून पाई थी। रीमा एक आम लड़की थी, छोटे शहर से आई थी बड़े ख़्वाब लेकर। कॉलेज की पहली नौकरी, पहली तनख्वाह, पहला प्यार... और फिर वही दुनिया की दौड़। वो भागती रही — पहले करियर के पीछे, फिर रिश्तों को बचाने के लिए। हर बार जब उसने खुद को आईने में देखा, तो बस एक “कामयाब और खुश” लड़की की छवि दिखी। पर अंदर कुछ खाली था, जो ना आईने में झलकता था, ना किसी ने पूछा। फिर एक दिन, जब उसका रिश्ता टूट गया, नौकरी छूट गई और दोस्त बस सोशल मीडिया तक सीमित रह गए — वो आईना, जो हमेशा सजा-संवरा दिखता था, अब सच्चाई बयाँ करने लगा। उस आईने ने उसे याद दिलाया कि वो कबसे दूसरों की नज़रों से खुद को देखती आई है, पर खुद की नज़रों में कभी झाँका ही नहीं। एक शाम, अकेले बैठे-बैठे उसने आईने से सवाल किया, "मैं कौन हूँ?" आईना चुप था, पर उसकी खामोशी में एक जवाब छुपा था — "तू वही है, जो अपने अंदर झाँकने से डरती है।" उस दिन के बाद, रीमा ने खुद को फिर से जीना शुरू किया। उसने अपने लिए लिखना शुरू किया, वो किताबें पढ़ीं जो कभी अलमारी में धूल खा रही थीं, उसने सैर करना शुरू किया बिना किसी मंज़िल के। उसे एहसास हुआ कि ज़िन्दगी सिर्फ़ उपलब्धियाँ नहीं होती, बल्कि वो लम्हे होते हैं जब हम खुद को महसूस करते हैं। अब जब रीमा आईने में देखती है, तो चेहरे पर वही लकीरें होती हैं, पर नज़रें शांत होती हैं। क्योंकि अब वो जानती है — ज़िन्दगी के आईने में जो दिखता है, वो सिर्फ़ चेहरा नहीं होता… वो आत्मा की परछाईं होती है। सीख: ज़िन्दगी का आईना हर किसी के पास होता है — कभी वो हमारे अनुभव होते हैं, कभी हमारी गलतियाँ, और कभी वो ख्वाब जो अधूरे रह गए। पर अगर हम रुककर उस आईने में सचमुच झाँकें, तो हम खुद को बेहतर समझ सकते हैं।

 स्वरचित डॉ पल्लवी पाल 


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