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Pallavi Pal

Children Stories Comedy Drama

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Pallavi Pal

Children Stories Comedy Drama

मेरा डर और मैं बनाम छिपकली

मेरा डर और मैं बनाम छिपकली

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 कभी-कभी सबसे छोटे जीव भी हमें सबसे बड़ी कहानियाँ दे जाते हैं। पेश है मेरी एक छोटी-सी रात की लड़ाई —

 "मेरा डर और मैं बनाम छिपकली" पढ़िए, मुस्कुराइए और बताइए, क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है?

 कभी-कभी ज़िन्दगी में सबसे बड़े युद्ध हम उन्हीं से लड़ते हैं, जो आकार में हमसे बहुत छोटे होते हैं। मेरे लिए वो एक रात थी — और मेरा दुश्मन था... एक छिपकली!

 रात के करीब 2 बजे थे। घर में सन्नाटा पसरा था। चाँद की हल्की रोशनी बालकनी से कमरे में झाँक रही थी। मैं, अपने बिस्तर की ओर बढ़ रही थी, आँखों में गहरी नींद लिए। पति और बेटी तो सपनों की दुनिया में चले गए थे, और मैं... बस थोड़ी ही देर में सोने वाली थी... तभी! अचानक मेरी नज़र शोकेस पर गई। कुछ हिलता-डुलता दिखा। दिल की धड़कन एकदम बढ़ गई — "ये क्या था? कोई भूत? कोई परछाई?"

 नज़दीक से देखा तो पता चला, जनाब एक छिपकली थीं! छोटी सी, मगर मेरी नींद और सुकून की सबसे बड़ी दुश्मन! वो कभी किताबों के पीछे छुपती, कभी स्पीकर के नीचे दौड़ती, फिर फुर्ती से दीवार पर चढ़ जाती। मैं एक कोने में खड़ी, साँस रोके, उसे देखती रही। मन किया झाड़ू पकड़ूँ, या चप्पल फेंकूँ, पर हिम्मत कहाँ थी! वो इधर-उधर घूमती रही, जैसे पूरा घर उसका हो। मैं बस भगवान से दुआ कर रही थी, "हे प्रभु! बस इसे बिस्तर की तरफ मत भेजना!"

 समय बीतता गया, मेरी नींद गायब हो गई, दिल की धड़कन म्यूजिक फेस्टिवल की तरह बजने लगी। कमरे का दरवाज़ा भी खोला, उम्मीद थी कि छिपकली महारानी बाहर चली जाएँगी, पर वो तो जैसे घर छोड़ने को तैयार ही नहीं थीं!

 आखिरकार सुबह के 4 बजने लगे। जब उनका पूरा घर का भ्रमण पूरा हुआ, तब जाकर वो दरवाज़े की तरफ बढ़ीं और बाहर चली गईं। मैंने फौरन दरवाज़ा बंद किया और भगवान का शुक्रिया अदा किया। थके दिल से बिस्तर पर गिरी और सोचने लगी —

 "छोटी-छोटी चीजें भी कितनी बड़ी जंग लड़वा देती हैं!" सीख: डर चाहे छोटा हो या बड़ा, उसका सामना करना ही असली बहादुरी है। और सबसे प्यारी बात — हर डर के बाद एक सुकून भरी मुस्कान हमारा इंतज़ार करती है।

 पल्लवी पाल







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