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क़लम-ए-अम्वाज kunu

Drama Romance Others

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क़लम-ए-अम्वाज kunu

Drama Romance Others

खिड़की

खिड़की

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शहर के पुराने हिस्से में एक छोटा सा कमरा था,

जिसमें तीन लोहे की रॉड और सेजवान की लकड़ी से बनी खिड़की हमेशा शांत खड़ी रहती थी। उस खिड़की के बाहर पत्थर की गली थी और सामने एक अधूरा सा आसमान। कमरा एक कवि का था, जिसका नाम था विहान।


विहान के लिए वह खिड़की सिर्फ हवा या रौशनी आने का रास्ता नहीं थी, बल्कि यह उसके भीतर की सारी कहानियों का एकमात्र गवाह थी। उसकी कविताएं, उसका प्रेम, उसकी उदासियों की बूंदें—सब उस खिड़की के सामने बैठकर कागज़ों पर उतरतीं।

सब कुछ ठीक चल रहा था 

फिर एक दिन

उसकी ज़िंदगी में प्रेम आया ठीक बसंत की तरह 

और इसका स्पष्ट प्रमाण उस खिड़की पे 

चढी नव कोपल से साफ़ पता चल रहा था ।

स्मृति जब भी उससे मिलती तो लगते शब्द ज़िंदा हो गए। विहान की कविताओं के अधूरे छंद, उसकी उदास खामोशी को स्मृति की हंसी ने एक नई धुन दी।


 वह अक्सर उस खिड़की के पास आकर बैठती और कहती, "विहान, यह खिड़की बहुत खूबसूरत है। इससे झांकने पर ऐसा लगता है कि दुनिया कहीं दूर छूट गई है और हम दोनों... बस यहीं ठहर गए हैं।"


विहान मुस्कुरा देता, क्योंकि खिड़की की तरह वह भी ठहरा हुआ था (ऐसे मानो कोई ग्रह ब्लैक हॉल के होराइजन पॉइंट पे स्थिर हो) —बस स्मृति के होने की रौशनी में।


देखते देखते 

समय बीतता गया

 स्मृति व्यस्त होती गई, 

विहान अकेला होता गया। 

वह खिड़की अभी भी पहले जैसी थी, मगर विहान नहीं। 

अब उसकी कविताओं में सन्नाटा घुल गया था। 

वो दिन आ गया जब विहान सब बता देना चाहता था मगर कैसे ? कविता .......

हाँ स्मृति वो मैं न 

विहान झिझकते हुए होठों से 

 स्मृति - हाँ विहान 

विहान डरा था मगर सब बताने की ज़िद में 

होंठ कुचलते हुए कविता कह गया ....


" प्रेम में झुक कर 

तुम्हारे पाँव में पायल पहनाने से इतर 

मैं होना चाहता हूॅं 

वो कलाई जिसे पकड़

तुम लाँघ जाओ

घर की चौखट ,

ताकि इतिहास की किताब में दर्ज हो 

चौखट से चांद तक की दूरी ।"


स्मृति मुस्कुराई हालाँकि ये मुस्कुराहट थोड़ी सी शर्मीली थी 

फ़िर दोनो हँसे मगर अचानक से स्मृति ने कहा ।

 "विहान, मेरे रास्ते अलग हैं।

 मैं ठहरना नहीं चाहती। मुझे उड़ान भरनी है

दूर आकाश में जहां से मेरी आंखें देख सके 

हर ख्वाब पूरे होते हुए । "

मुस्कुराते हुए 

विहान ने सिर्फ इतना कहा,

"खिड़की तो वही रहेगी, स्मृति।

लौट आओगी तो वह तुम्हें झांकती मिलेगी।"


एक आखिरी आलिंगन और फ़िर 


स्मृति चली गई।


अब खिड़की पर बारिश के मौसम में कुछ बूंदें गिरतीं, 

जो ऐसा लगता मानो खुद स्मृति के छुए हुए आंसू हों। 

कवि ने अपने दर्द को शब्दों में पिरोया। 

खिड़की वही थी, सिर रखने का ठिकाना बनी रही। 

कितने बोझ फिर उतारे गए, 

कितनी कविताएं उस चौखट से झांकती रहीं।


आखिरी कविता में विहान ने लिखा:

"खिड़की के पार लौट आने की संभावनाएँ थीं,

पर वह लौटकर न आई,

कवि वहीं ठहरा रहा,

कविता पूरी होती रही ,

प्रतीक्षा की अनंत पराकाष्ठा पे 

क्षितिज के पार ।"


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