ख़ैरात
ख़ैरात
ज़िंदगी घुटती रही,
शरीर पर चोट के निशान,
उससे भी गहरे थे उसकी मन की पीड़ा।
नासूर बनी ख़ूबसूरत मुस्कान,
बेपनाह मोहब्बत ख़ैरात में डाल
सारे रिश्ते-नाते तोड़ लिए।
मायूसी ज़हर घोल रही थी।
जीवन घाव की पीप की तरह रिस रहा था।
बिंदास एनजीओ की मुस्कान बन गई।