खेदारु…. एक छोटी सी कहानी…
खेदारु…. एक छोटी सी कहानी…
गंगा नदी के तट से कुछ दूर पे एक छोटा सा गाँव (चांदपुर) बसा है। जो उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थिति है, उस गाँव में (स्वामी खपड़िया बाबा ) नाम का एक आश्रम है, जहाँ बहुत से साधु-महात्मा रहते हैं।
उन दिनों गर्मियों का मौसम था, एक महात्मा आए हुए थे। जिनका नाम स्वामी हरिहरानंद जी महाराज है, बाबा हर शाम को उस आश्रम में सत्संग (प्रवचन) सुनाया करते थे। जिसे सुनने आस-पास के गाँव के लोग और दूर के गाँव के लोग भी आते थे।
उस दिन बाबा इंसानी प्रवृति और नशे की चीज़ों जैसे- गुटखा, खैनी, बीड़ी, सिगरेट, जर्दा, शराब आदि जैसी नशीली चीज़ो पर (जो कितना बुरा असर करते हैं इंसानी शरीर पर ) इसके बारे में लोगों को बता रहे थे,(प्रवचन दे रहे थे)।
सभी लोग बड़े ध्यान से बाबा का प्रवचन सुन रहे थे। तभी बाबा की नज़र उस इंसान पे पड़ी जो बिल्कुल उनके सामने (सबसे आगे चौकी के नीचे ) बैठा था। सभी लोग तो बड़े ध्यान से बाबा का प्रवचन सुन रहे थे, पर वो इंसान बड़े ही लगन से अपने हथेली में खैनी (तंबाकू) रगड़ने (बनाने) में व्यस्त था। अचानक से बाबा की नज़र पड़ी उसपे, बाबा ने उसे अपने पास बुलाया और उससे उसका नाम पूछा।
वो बोला बाबा…..हमरा नाम खेदारु है बाबा, इहे पास के गाँव का रहने वाला हूँ।
बाबा बोले ठीक है, ये बताओ तुम खैनी (तंबाकू) कब से खा रहे हो। वो बोला बाबा ई त हम बचपन से जब ८-९ साल का रहा, तब से खा रा हूँ। फिर बोला बाबा हमरा से कवनो ग़लती हो गया का, माफ़ी चाहता हूँ बाबा। बहुत दिन से हमहु चाहता हूँ, ई का (खैनी) को छोड़ना पर का करूँ बाबा ई (खैनी) हमरा को छोड़ती ही नहीं। बहुतई कोशिश किया हूँ, बाबा पर ई (खैनी) हमका नहीं छोड़ती।
उसकी बातें सुनने के बाद, बाबा बोले- लाओ दिखाओ वो (खैनी) जो तुम्हें नहीं छोड़ती, ज़रा हम भी देखें वो क्यों नहीं छोड़ रही तुम्हें। फिर खेदारु ने अपनी पेंट की जेब से चीनौटी (एक छोटी सी डब्बी जिसमें खैनी रखते हैं) निकाली और बाबा को दे दिया।
बाबा चीनौटी को अपने बगल में रख के खेदारु को बोले जाओ और अपनी जगह पे बैठ जाओ, और हाँ जब तुम्हें इसे (खैनी) खाने का मन करे तो इसे अपने पास बुला लेना। तुम मत आना इसके पास चल के इसे खाने के लिए। फिर देखते हैं कि ये तुम्हारे पास चल के जाती है या तुम खुद चल के इसके पास आते हो।
अगर ये (खैनी) तुम्हारे पास चल के गई तो हम मानेंगे कि ये तुम्हें नहीं छोड़ रही, अन्यथा तुम ही इसे नहीं छोड़ रहे हो, बस बाबा की बात खेदारु के भेजे में समझ आ गई।