कहानी कुर्सी की
कहानी कुर्सी की


नेताजी के चरण दबाते हुए चमचा पूछने लगा कि हे सर्व-शक्तिमान ! आज मुझको कुर्सी - महिमा से अवगत कराइये। इस प्रकार के वचनों को सुनकर नेताजी कहने लगे कि हे प्रियभाजन , मैं 'कुर्सी - पुराण' में वर्णित कुर्सी महिमा तुमको सुनाता हूँ. पहले इस पुराण की महिमा जान--
"जो नेता शुद्ध चित्त होकर इस पुराण का पाठ करता है ,वह निश्चय ही कुर्सी माहात्म्य को जानकार परम कल्याणी कुर्सी को प्राप्त करता है।१।
"जो साक्षात हाथी सदृश तोंद वाले मंत्री जी के मुख से प्रगट हुआ है ,उसी कुर्सी पुराण का नित्य ध्यान करना चाहिए। २।
" संपूर्ण जनता गौ के सामान है और नेता रुपी जोंक ही उसका खून पीने का अधिकारी है , परम कल्याणी कुर्सी ही उस गौ का दूध है और चतुर नेता ही उसका भोक्ता है । ३।
" कुर्सी पुराण में जिस मार्मिक ढंग से कुर्सी महिमा का बखान है वैसा अन्यत्र नहीं , क्यूंकि अन्य ग्रंथों में कुछ न कुछ मिलावट अवश्य होती है । ४।
" इस पुराण पर नेता वर्ग का ही अधिकार है , चाहे वह किसी भी दल का हो , बस उसे कुर्सी में श्रद्धालु और भक्ति युक्त अवश्य होना चाहिए । ५।
" कल्याण की इच्छा रखने वाले नेताओं को उचित है कि देश प्रेम त्याग कर अतिशय श्रद्धा पूर्वक अपने बालकों को अर्थ व दांव-पेंच सहित इस कुर्सी -पुराण का ज्ञान कराएं । 6 ।“
नेता जी बोले कि हे भक्त ! मंत्री जी ने अपने चुनाव- विमुख पुत्र को किस प्रकार कुर्सी महिमा सुनाकर चुनाव लड़ने के लिए राजी किया , कुर्सी-पुराणोक्त वह कथा अब मैं तुमको सुनाता हूँ--
मंत्री - सुत अपने पिता से आकर बोला कि हे तात ! चुनाव - रण में खड़े स्वजनों को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जाते हैं,चुनाव में खड़े सभी व्यक्ति आपके साथी होने के कारण मेरे ताऊ चाचा ही लगते हैं। मैं माइक पर खड़ा होकर इन सबको गालियां कैसे बक सकता हूँ! हे तात मैं ये चुनाव जीतना नहीं चाहता , यदि मेरे जीतने से इनकी जमानत जब्त हुई तो करोड़ों के नुक
्सान के कारण इनकी हृदय - गति रुक जायेगी और मुझे इन सबकी हत्या का पाप लगेगा। मैं इस क़ुर्सी के लोभ में नेता कुल संहार को तैयार नहीं !
इस प्रकार हाथ पैर छोड़ कर बैठे पुत्र को देख मन्त्री जी ने ये वचन उसे सुनाये--
“ हे पुत्र ! चुनाव क्षेत्र में यह अज्ञान तुझे कैसे हुआ , न तो ऐसा कभी हुआ है और न ही श्रेष्ठ नेताओं के लिए यह कल्याणकारी है ,इसलिए हे पुत्र इन तुच्छ विचारों को त्याग कर माइक पर डट जा।“
मंत्री सुत बोला कि हे पिता ! ये सब मेरे पूज्य हैं , इनको अपशब्द कैसे कहूँ ! इसलिए सदाचार के प्रति मोहित चित्त होकर आपसे पूछता हूँ कि मेरे लिए जो कल्याणी साधन हो वह कहिये !
अपने धर्मांध पुत्र को समझाते हुए मंत्री जी कहने लगे, “ हे पुत्र! तू शोक नाहक करता है क्योंकि श्रेष्ठ नेता किसी के प्राण आने- जाने की चिंता नहीं करते ; यही नेता धर्म है , आत्मा कभी नहीं मरती इसलिए इसके लिए शोक करना सर्वथा अनुचित है.
“ कुर्सी के समक्ष सब कुछ तुच्छ जान और खड़ा होकर माइक पर आ जा। यदि अब तूने हथियार दाल दिए तो नेता धर्म का अपमान होगा। इस स्वाधीन भारत में कुर्सी के अलावा कुछ और मत जान। जिसके पास कुर्सी है उसके पास ही सब कुछ है। तू स्वयं सोच यदि मेरे पास कुर्सी न होती तो हम सब कैसे जीते ! हम कैसे इतनी बार विदेश यात्रा कर पाते, कैसे तेरे बंधू बांधव विदेशी शिक्षा पाते!”
पिता के इस प्रकार के वचनों को सुनकर पुत्र का रोम रोम पुलकित हो उठा। वह माइक पर आकर अगले ही क्षण अपने प्रतिद्वंदियों को गालियां देने लगा।
नेताजी कहने लगे क़ि हे प्रियभाजन इस प्रकार मंत्री जी ने जो कुर्सी महिमा अपने पुत्र को सुनाई वो मैंने तेरे लिए कह दी।
इतना जानकार चमचा गदगद हो गया और नेताजी के तलुए चाटने लगा।
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