कहाँ हो नानी ?

कहाँ हो नानी ?

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बीते दिनों के रंग बड़े गहरे होते हैं,हों भी क्यों न ?

जिन्दगी अहिस्ता अहिस्ता उन्ही रंगों में रंग के ही कुन्दन होती है। कुछ पल के लिए हम भले ही उन्हें विस्मृत कर दें,किन्तु वो हमसे अलग नही हो सकतीं। मुझे जिन्दगी की हर खुशियाँ मिली, यह मेरा सौभाग्य है। मैं अपनी नानी को बहुत याद करता हूँ। मेरी नानी मुझ पर बहुत सारा वात्सल्य उड़ेलती थीं। उनकी हर बातें मुझे आज भी याद आती हैं। लगता है अभी कल की बात है,जबकि वो हमसे बहुत दूर चली गयीं हैं,जहां से कोई कभी वापस नही आता। जब भी उनकी फोटो देखता हूँ, मेरी आँखों में आँसू आ जाते हैं। ईश्वर क्यों उन्हें हमसे छीन ले गया ? पहले तो हमें यह भी समझ नहीं आता था।

अब तो हम खुद बड़े दार्शनिक हो गये हैं। सभी को जीवन मरण की दार्शनिकता का प्रवचन देते रहते हैं। किंतु जब भी नानी की याद आती है,सारी दार्शनिकता आंसुओं के सागर में बह जाती है। वो मेरी छोटी बड़ी सभी आवश्यकताओं को झटपट पूरा करती थीं। उनका लाड़ प्यार असीम था। मैं जब इलाहाबाद में पढ़ रहा था, तभी आचनक वो हम सबको छोड़ कर चलीं गयीं। मैं पहुंच भी नहीं पाया।

जब पहुंचा, खूब रोया खूब रोया आँखें रोती हीं रहीं। पता नही कब समय बीत गया, उसका भान भी नही हुआ। आज जबकि इतने वर्ष गुजर चुकें हैं, लगता है कि वो कहीं मेरे आस पास हीं हैं। कहाँ हो नानी ?

बड़बड़ाता रहता हूँ। मेरी आवाज दिशाओं से टकराकर वापस आती हैं और कटु सत्य का आभास कराती हैं। कटु सत्य तो यही है, वो अब स्मृति बन चुकी हैं। हमारे पास तो सिर्फ यादें हीं शेष हैं। संसार कितना निष्ठुर है ? पता नहीं ? सत्य और असत्य में आज भी जंग जारी है। ईश्वर की माया भी विचित्र है! मोह माया का संवरण छूटता नही और प्रकृति दया करती नही। प्रकृति तो बस न्याय करती है। शायद इसलिए बड़े बड़े दार्शनिकों ने कहा कि संसार मिथ्या है। भगवान कृष्ण भी गीता में कहते हैं कि निष्काम कर्म ही सबसे उत्तम कर्म है।

आत्मा अजर अमर है। इन्ही भावों में डूबता उतराता मैं अपनी नानी को आज भी याद करता हूँ। किन्तु समय का पहिया आगे बढ़ता ही रहता हैऔर मैं भी इस मायावी दुनिया में उलझा रहता हूँ।


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