काश आ जाते
काश आ जाते
बहुत देर तक संजय से बात होती रही। संजय इस साल इंडिया नहीं आ पायेगा। इसकी सूचना फोन पर दे रहा था और इंडिया नहीं आने की कई वजह बता रहा था।
संजय की बातें सुनते सुनते सरला का दिल बैठा जा रहा था क्योंकि सरला बड़ी बेसब्री से बेटे के आने का इन्तजार कर रही थी। संजय नहीं आ रहा है सुनके उसके होश ही उड़ गए। संजय तीन साल के बाद माँ से मिलने आ रहा था इसलिये सरला एक महीने पहले से ही उसके आने की तैयारी में जी जान से जुटी थीं। तरह -तरह के अचार बन रहे थे, कई तरह के पकवान बनाने की रोज योजना बनाती रहती थीं। घर की सजावट बाग बगीचे सभी संवारे जा रहे थे। शायद इतना कुछ इसलिये की यहाँ की सुख सुविधा देखकर संजय का हृदय परिवर्तन हो जाय और वो शायद इंडिया में ही रहने का फैसला कर ले।
पर बेटा नहींं आ पायेगा सुनकर इतनी आहत हुई कि वहीं घंटों निष्क्रिय निःशब्द निढाल हो बैठी रही मानो शरीर में जान ही ना हो। संजय बोलते जा रहा था, "माँ तुम सुन रही हो न? मैं अपने दोस्त से रूपये भेज दूँगा। दोनो मेड काम कर रही है न? उनको कुछ और रूपये दे देना। तुम अकेले रहती हो ना? वो लोग खुश रहेंगे तो तुम्हारी देखभाल अच्छे से करेंगे। माँ ड्राइवर को भी ठीक से रखना भले ही तुम कहीं जाओ या नहींं जाओ किसी को भी लेने- देने में कंजूसी नहीं करना। माँ तुम सुन रही हो ना? माँ, माँ, शायद तुम मुझसे नाराज हो गई हो"
पर माँ तो जड़ हो चुकी थी। उसे कुछ भी सुनाई नहींं दे रहा था। उसके दिल पर एक ही आवाज दस्तक दे रही थीं, काश तुम आ जाते।