जुड़वाँ बहनों का आत्मविश्वास

जुड़वाँ बहनों का आत्मविश्वास

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एक गाँव में दो जुडवाँ बहनें रहती थी। वे दोनों बिल्कुल अनाथ थीं। गाँव वालों ने ही उनका पालन-पोषण किया। जैसे-जैसे वे बड़ी होने लगी तो उन्हें दूसरों से लेकर खाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। दोनों ने मिलकर लोगों के घर में काम करना आरंभ कर दिया। इस प्रकार लोगों ने उन्हें पैसे, कपड़े, भोजन आदि देकर उनकी सहायता भी की और उनके आत्मसम्मान को भी बनाए रखा।

धीरे-धीरे दोनों बहनें काम करने में इतनी चुस्त हो गई कि अब वे सिलाई-कढ़ाई भी करने लगी। गाँव के सभी लोग उनसे ही अपने कपड़े सिलवाते। दोनों बहनों की लगन, मेहनत व आत्मविश्वास ने बहुत जल्दी ही उन्हें धन-दौलत से परिपूर्ण कर दिया। मेहनत की कमाई हुई दौलत से उन्होंने एक सिलाई-सैंटर खोला और अपने ही गाँव की बहनों को अपने साथ काम सिखाया। अब उनके साथ अन्य ग्रामीण महिलाएँ भी थी। इस प्रकार उन दो अनाथ जुडवाँ बहनों ने हिम्मत न हार कर अपने ही गाँव में एक ऐसी मिसाल कायम की, जो भारत देश की हर बेटी को सिर ऊँचा करके समाज में जीने हेतु प्रेरित करती है।

उनके इस अथाह परिश्रम से हम सबको भी समाज में मिलकर रहने व एक-दूसरे की निस्वार्थ भाव से सेवा करने की प्रेरणा मिलती है। सच है कि ‘‘ स्वयं में हो यदि आत्मविश्वास ! पूर्ण होती है हर एक आस !’’


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