जन्नत और जेल भाग-1
जन्नत और जेल भाग-1
आज जन्नत में बड़ी मायूसी छाई हुई थी। चारों तरफ सन्नाटा पसरा पड़ा था। ऐसा लग रहा था जैसे वहां कोई बम फटा हो और सबके चेहरों के नूर को उड़ा ले गया हो। मुर्दनी सी छाई हुई थी। सबके चेहरे लटके हुए थे। हमेशा खिलखिलाने वाली हूरें जार जार रोये जा रहीं थीं। हूरों की रानी का तो रो रो कर बुरा हाल हो गया था। उसकी दासी बार बार उसके आंसू पौंछती मगर आंसू थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। बड़ा गमगीन माहौल था। हृदय विदारक दृश्य था।
बेचारी दासियों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्या हो गया है जिसके कारण यह जन्नत शमशान सी प्रतीत हो रही है। कोई कुछ बताने को तैयार ही नहीं था। बस, सब रोये जा रहे थे। अंत में एक दासी ने दूसरी दासी जो शक्ल सूरत से थोड़ी समझदार लग रही थी, से पूछा
"आज क्या हो गया है इन हूरों को ? ऐसी मुरझाई मुरझाई सी क्यों पड़ी हैं ? और दिन तो बड़ी खिलखिलाती रहती थीं। सजती संवरती रहती थीं। अपने हाव भावों से सबको आकर्षित करती रहती थीं। मगर आज तो ये लगातार रोये जा रही हैं। ऐसी अधमरी सी पड़ी हैं जैसे कुत्तों के द्वारा फफेड़ी गई कोई बछिया हो। कोई मर गया है क्या यहां जन्नत में" ?
समझदार दासी उसे डांटते हुए बोली " मरें तेरे दुश्मन ! ये जन्नत है यहां कोई मरता नहीं वरन यहां आकर तो मुर्दा भी जिंदा हो जाता है इन हूरों को देखकर। तू जन्नत को जानती नहीं है क्या" ?
"सच में नहीं जानती। आप ही बता दीजिए न कि ऐसा गमगीन माहौल क्यों है इस जन्नत में आज ? मैंने तो ऐसा उदासीन माहौल अपनी सर्विस में कभी देखा नहीं है"।
"अरी, तू तो नादान है। इतना भी नहीं जानती कि धरती पर क्या हो रहा है" ?
"क्या हो गया है धरती पर ? और धरती से हमें क्या लेना देना" ?
"अरी लेना देना कैसे नहीं है ? निर्दोष लोगों का खून बहाकर धरती से कुछ शांति दूत यहां पर आते हैं और 72 हूरों को पाते हैं। अब तू ही बता कि हमारा धरती से कनेक्शन है या नहीं" ?
"तो क्या कोई शांति दूत यहां आ रहा है" ?
" हां री। यही तो समस्या है" ?
"पर इसमें समस्या क्या है ? पहले भी तो शांति दूत यहां आते रहे हैं ? तब तो कोई समस्या नहीं हुई ? अब क्या समस्या हो गई" ?
"अब यह समस्या हो गई कि कोई एक या दो शांति दूत नहीं आ रहे , पूरे 38 शांति दूत आ रहे हैं। वो भी एक साथ ! एक शांति दूत जब आता है तो उसकी खिदमत में 72 हूरें पेश करनी पड़ती हैं। अब एक साथ 38 शांति दूत आयेंगे तो पता है कितनी हूरें परोसनी होंगी उनको" ?
बेचारी दासी अनपढ़ थी। हिसाब किताब से उसका कोई वास्ता नहीं था। दिमाग था नहीं। अगर होता तो दासी ही क्यों बनती ? मलिका नहीं बन जाती ? अपनी अज्ञानता की नुमाइश लगाते हुए वह बोली " अरी बहना , अगर थोड़ी बहुत अकल ही होती तो बॉलीवुड में हीरोइन ही नहीं बन जाती ? जिन हीरोइन की न शकल है और न ही कुछ और हैं जिनके पास, वे भी हीरोइन बन कर मस्त हैं तो मैं तो उनसे लाख दर्जा बेहतर हूँ। हां, अकल की कमी जरूर है इसलिए तो नहीं बन पाई। अब साफ साफ बता कि माजरा क्या है" ?
"माजरा बड़ा साफ है। धरती पर भारत नाम का एक देश है। वहां गुजरात नाम का एक राज्य है जिसमें अहमदाबाद नाम का एक शहर है। भारत में कुछ शांति दूत रहते हैं जो यह मानते हैं कि उनकी एक "आसमानी किताब" में यह लिखा है कि उनके मजहब को जो नहीं मानता वह "काफिर" कहलाता है। और वे ऐसा कहते हैं कि उस आसमानी किताब में ऐसा लिखा है कि ऐसे काफिरों को मारने का नेक कार्य हर शांति दूत को करना है। यह एक फरमान है जिसे हर शांति दूत को मानना ही है। इन 38 "लड़ाकों" ने उस आसमानी किताब के उस फरमान को मानकर ऐसे 56 निर्दोष लोग जिनमें बच्चे और औरतें भी थीं , को मारकर और 250 से अधिक लोगों को बुरी तरह घायल कर के वह नेक काम कर दिया है। और तो और, इन मासूम लोगों ने अस्पताल में भी बम फिट किये थे जिससे घायलों को अस्पताल ले जाते समय वहां पर मंत्री, अफसर और घायलों के परिजनों को भी मारा जा सके। ये आतंकी अपने मकसद में कामयाब भी हो गए।मगर भारत की निर्दयी न्याय व्यवस्था ने इन बेचारे भोले भाले मासूमों को फांसी की सजा सुना दी है। इसलिए फांसी के बाद उस आसमानी किताब के अनुसार इन सबको अब जन्नत नसीब होगी। और जन्नत में हर लड़के को 72 हूरें मिलेंगी। इसीलिए जन्नत में आज बड़ा गमगीन माहौल है। हूरों की रानी की समस्या यह है कि इन 38 लड़कों को 72 हूरों के हिसाब से कुल 2766 हूरें चाहिए। अभी जन्नत में इतनी हूरें हैं नहीं। जो भी हैं उनमें से बहुत सारी हूरें कोरोना पॉजीटिव पाई गई हैं। इसलिए वे कोरेंटाइन हो रही हैं। कुछ हूरें प्रसूति अवकाश पर चली गई हैं तो कुछ चाइल्ड केयर लीव पर हैं। बाकी बची कुछ हूरों की ड्यूटी इलेक्शन, सर्वे वगैरह में लगी हुई है। कुछ हूरें पिछले साल रिटायर हो गई थीं। जन्नत की सरकार ने अभी तक कोई नई भर्ती निकाली नहीं है। पहले भर्ती निकाली थी जिनकी परीक्षा भी हो गई थी, इंटरव्यू भी हो गए थे। मगर जन्नत की सरकार के के भर्ती मंत्री ने अपने खानदान की सब हूरों का उस परीक्षा में सलेक्शन करवा लिया था। मंत्री अगर ऐसा नहीं करेगा तो कौन करेगा ? मगर कुछ दुष्ट लोग हाईकोर्ट चले गये और वहां से स्टे ले लिया। बस, वो भर्ती वहीं पर अटकी पड़ी है। अब इस हालत में हूरों की रानी बड़ी परेशान है कि जब वे 38 लड़ाके यहां जन्नत में आयेंगे और उन्हें 72-72 हूरें नहीं मिलेंगी तो वे कितना कत्लेआम करेंगे यहां पर ? जिन निर्दोष लोगों ने जब उनका कुछ नहीं बिगाडा तब उन्होंने उन मासूमों को बम से उड़ा दिया तो यहां पर हूरें नहीं पाकर पता नहीं क्या क्या करेंगे वे ? बस, इसी बात से हूरों की रानी परेशान हैं"।
"और हूरें क्यों परेशान हैं" ?
" अरी बावली , इतना भी नहीं जानती है ? इन "उन्मादी लड़कों" को यहां की 72 हूरों का प्रलोभन दे देकर ही तो नरसंहार करने के लिए प्रेरित किया जाता है। ये यहां पर इन 72 हूरों के लोभ के कारण ही आते हैं। ये लोग भूखे भेड़िए की तरह से इन बेचारी नाजुक सी कोमल सी हूरों पर टूट पड़ते हैं। इन्हें नोंच खसोट कर इनका बुरा हाल कर देते हैं। किसी किसी का तो अंग भंग भी कर देते हैं। इन उन्मादियों के लिए तो ये हूरें केवल "माल" हैं और लूटने का इन्हें बड़ा अच्छा प्रशिक्षण मिला हुआ है। इसलिए इनके आतंक से ये हूरें भी थर थर कांपती हैं। इसी कारण से यहां पर सन्नाटा पसरा हुआ है" .
बेचारी दासी सोचती ही रह गई। समस्या तो बड़ी विकट थी पर इलाज क्या है , ये समझ नहीं आ रहा था। वह दासी सोचने लगी। सोचते सोचते अचानक उसकी आंखें चमक उठीं। कहने लगी
"चिन्ता की कोई बात नहीं है।"
सब दासियाँ एकदम से चौंक पड़ी। सबने उस दासी की ओर देखा। वह दासी उन सबके चेहरे देखकर समझ गई कि वे क्या जानना चाहतीं हैं। वह कहने लगी "देखो , अभी तो यह फैसला ट्रायल कोर्ट का है। इसे कन्फर्म करने के लिए इसे हाईकोर्ट भेजा जायेगा। हाईकोर्ट में जज कहाँ से आते हैं ? वकीलों में से ही तो आते हैं ना। और वकील कहाँ से आते हैं ? समाज से ही ना ? और समाज की क्या स्थिति है, यह बताने की जरूरत है क्या ? तो बाकी आप सब समझदार हो, मुझे बताने की जरूरत नहीं है।
और हाईकोर्ट का फैसला कोई दो चार दिन में तो होगा नहीं ? बरसों में होगा। फिर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ऐसे बहुत सारे वकील बैठे हैं जो केवल आतंकवादियों की ही पैरवी करते हैं। उनका दबदबा इतना तगड़ा है कि वे अपने प्रभाव से रात के बारह बजे भी अदालत खुलवा सकते हैं। पैसे के लिए दीन, ईमान, देश सब कुछ बेच सकते हैं। ऐसे वकील इनको फांसी होने ही नहीं देंगे। फिर इस देश में ऐसे अनेक राजनीतिक दल भी हैं जो इन आतंकवादियों से ही चल रहे हैं। वोटों के लिए ऐसे राजनीतिक दल इन आतंकवादियों को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। आप शायद भूल गए कि इसी देश के एक गृह मंत्री ने कुछ आतंकवादियों को छुड़वाने के लिए अपनी बेटी का झूठा अपहरण करवाकर आतंकवादियों को छुड़वा लिया था।
इन आतंकवादियों के लिये कोई बड़ी नेता नौ नौ आंसू रोती है। कोई इन्हें मासूम बताता है तो कोई भटके हुए नौजवान। कोई मास्टर का बेटा कहता है तो कोई गरीब आदमी कहता है। सेकुलर जमात, बुद्धूजीवी, मोमबत्ती गैंग, दलाल मीडिया और बॉलीवुड , सबके सब लोग इनके बचाव में आ जाएंगे और इन्हें फांसी होने ही नहीं देंगे। यदि हाईकोर्ट से भी ये लोग हार जाएंगे तो सुप्रीम कोर्ट भी तो है न ? वहां भी बरसों लगेंगे। जो सुप्रीम कोर्ट शाहीन बाग और तथाकथित किसानों द्वारा दिल्ली को बंधक बनाने पर साल भर तक फैसला नहीं दे पाया वह 38 की फांसी पर फैसला करने में कम से कम 38 साल तो लगायेगा ? अगर ये लोग बदकिस्मती से वहां पर भी हार जाएंगे तो महामहिम राष्ट्रपति महोदय भी तो हैं न। तब तक क्या पता इन आतंकवादियों की हितैषी सरकार ही आ जाए और इन्हें माफी दे दे। अरे , एक याकूब मेमन को फांसी देने में नानी याद आ गई थी तो ये तो 38 लोग हैं। ऐसे कैसे होने देंगे फांसी ? इसलिए न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी। अत : मेरे हिसाब से तो कुछ नहीं होगा। सब लोग मस्त रहो। मौज करो"।
और जन्नत में फिर से बहार आ गई।
