झुमके
झुमके
केसर जैसा नाम वैसी ही खूबसूरत, केशर का केशरी रंग कमर तक लहराते हुए बाल, श्यामा हिरणी सी आँखें और उसी की तरह चंचल, कोमल हृदय वाली।
माधव के साथियों को बड़ी जलन होती इतनी सुंदर बींदणी कैसे मिली, "मोती दान कर्या लारलै जन्म में",,
लेकिन माधव भी कम नहीं था, मजबूत कद काठी, सजीला जवान उस पर चार चांद लगाता धीर गंभीर स्वभाव।बस थोड़ा हठीला था, माँ का लाडला जो था।
केसर नई नवेली दुल्हन बनी हर समय गहनों से लदी रहती, चांदी का बडा सा हार, बड़ी सी रखड़ी, चूड़ा, करधनी, चोटी बंद, औऱ बड़े बड़े चाँदी के झुमके, जेठ महीने की गर्मी और ये गहने रात में उतारती सुबह उठते ही क़ीमती जंजीरों में ख़ुद को जकड़ लेती।
गर्मी बढ़ती जा रही थी, सासूजी को भी बहू की परेशानी समझ आ रही थी, आखिरकार आज़ादी मिली कि गहने हरदम न पहने तो चलेगा पर रखड़ी और कानों के ना उतरेंगे। रखड़ी तो ठीक पर झुमके, बापू ने सारा लाड़ जैसे झुमकों में ही डाल दिया था, इत्ते लंबे और भारी थे की कनोतियाँ भी वजन नहीं संभाल पाती।
केसर चक्की पिसती तो झुमके इतना हिलते की सर दर्द होने लगता, रोटी बेलती तो छन छन आवाज करते, झाड़ू लगाती तो लटक कर गालों को छू जाते।
"हाय कित्ती फूटरी लागे म्हारी केसू जद झूमर गालां पर आवे।" माधव मन ही मन इतरा जाता पर केसर झुंझला जाती।
जब माधव से गले लगने से झूमर उसी की आस्तीन में उलझ जाते कमबख्त, उस समय केसर को झुमकों पर प्रेम उमड़ आता, कैसे पिया को बांध कर रख लेते हैं लेकिन झुमकों के ज़ुल्म भी कम न थे तीस पर केसर का नाजुक जीव ही जाने इतने भारी झुमके कैसे पहनती है और दूसरी कोई जोड़ी भी नही थीं उसके पास जो बदल लेऔर सासुजी को कैसे कहे कि दूजी दिलवा दे, लाज आ जाती है।
आज तो हद हो गई, झुमका ओढनी में ऐसा फंसा की कान चिक गया और लहूलुहान हो गया, माधव को बड़ा गुस्सा आया और कहा "अब के अब उतार झुमर।"
अरे बावलो हो ग्यो सुहागण कान खाली कोनी करे सम्झयो" सासूजी ने रोब जमाया।
कानां में बोझ लटकाने से शिंगार नि होवे, न पति की उम्र बढ़े, माँ बस कर इत्तो खून निकलग्यो, खोलने दे झूमर।"
कह कर माधव ने केसर के झुमके जेब में डाल लिए।" अब की घड़ी कुआँ में फेंकर आऊं,देखूं काईं कयामत आवे। "
माधव बाहर निकल गया, सासूजी ताने देती रहीं, केसर थोडी देर आँसू बहाकर चूल्हे चौके में लग गई, शाम ढली, दीया-बत्ती का समय हो गया पर माधव नहीं आया, सब लोग खा पी लिए ,रात गहराने लगी पर माधव का कोई पता नहीं था।
सासूजी क फिर तानों की बरसात कर रही थी, "छोरो हाल कोनी आयो, मैं कहयो झूमर नि खोलना चाहिजै, पर डोकरी की कुन सुणे, कुतां की आवाज से दिल औऱ बैठा जा रहयो है।"
रात के 11 बजे, मोटरसाइकिल की आवाज सुनाई दी, माधव आ गया था। "कठे थो रे, घणी टेम लगा दी। "माँ ने पूछा
"बस कोई काम से शहर ग्यो हो, दोस्त के सागे, रोटी भी वठै ही ख़ाली।" माधव माँ को तसल्ली दे कर खुश करने के बाद कमरे में आया।
केसर कमरे में इंतज़ार कर रही थी आते ही बरस पड़ी, "कठे गया, कित्ती देर लगा दी, एक तो झूमर खुला दिया ऊपर से साहबजी रा पता ठिकाना कोनी, म्हारो तो काळजो फट्यो जावे हो औऱ मां भी कित्ती परेशान हो री थी....
"थारे काळजै ने फटन से बचावण ने ही गियो आ ले थारी अमानत, थारा झूमर, कुआँ में कोनी फैंकया।" माधव ने केसर की हथेली पर एक डिब्बी रख दी। केसर का चेहरा चमक गया दोनों क़ीमती चीज़े माधव और झुमके सुरक्षित थे।
"बिना कानां के शिंगार के लुगाई अधूरी है, माना थोड़ा भारी है झूमर पर थारे खातिर इत्तो भी न कर सकू के,अब के बापू जी से हल्की सी बालियां बनवाऊँगी।" कह कर केसर झुमके पहनने के लिए डब्बी खोलती है और आश्चर्यचकित रह जाती हैं, उसके झुमकों के साथ छोटी-छोटी चमचमाती सोने की बालियां भी थी।
ये पेर ,बहुत फुटरो लागगी, बिल्कुल थारे रंग जैसी है सुनहरी, डॉक्टर बहनजी जैड़ी दिखेगी, थारे कान की दवाई लेवण ग्यो तो देखी उनके पेरेड़ी थी, बता पसंद आई तन्ने।" माधव का प्रेम और परवाह देख केसर के चंचल नेण सजल हो गए। बहुत फूटरी बालियाँ है।" कह कर केसर, माधव के गले लग गई।