Reena Kakran

Inspirational

4.1  

Reena Kakran

Inspirational

जहाँ चाह वहाँ राह

जहाँ चाह वहाँ राह

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मेरी कहानी मेरी जुबानी।

रीना ने शिक्षक बनने की ठानी।।

शुरू हुई संघर्ष की राह।

पूरी करनी थी मन की चाह।।

पुस्तकों को बनाया मित्र।

शिक्षिका बनी आदर्श मेरी।

भर डाला ज्ञान का इत्र।।

कक्षा 11 में असहनीय दुःखद क्षण आया।

भगवान ने इकलौते भाई को अपने पास बुला लिया।।

तीन बहने और माँ रोती बिलखती रह गई।

पापा पुलिस सेवा में अति दूर पुत्र को अंतिम विदाई न दी गई।

8 दिन बाद पापा आए हताश और दुःख भरे मन में नकारात्मक भाव लाए।

लड़कियाँ ही लड़कियाँ है घर में मेरा कुलदीपक नजर न आए।।

पापा ने अर्ली रिटायरमेंट ले लिया।

अपने आप को निराशा में डुबा लिया।।

बेटा गया अब किसके लिए जीऊ,

बेटियाँ ही घर में रटते बस यही जुबानी।

मेरे मन में भी निराशा थी आगे न पढ़ने की ठानी।

मेरी शिक्षिका श्रीमती रंजना मैंम ने मुझे बुलवाया मेरे मन की बात जानी।

आशा और उत्साह जगाया, मेरे कानों में ऐसी डाली वाणी।।

मैंने पापा की निराशा को आशा में बदलने की ठानी।

पापा आपका बेटा बनूँगी लगी हर काम में उनका हाथ बटानी।

साथ में खेती की, भैंस पाली, भैसा- बुग्गी चलाई साथ-साथ की भी पढ़ाई।

हर कोशिश की पापा के मन में बेटे वाली जगह बनाने की पर अभी भी निराशा पाई।

बोले पहले खेती और घर का काम बाद में होगी पढ़ाई।

आगे जाकर रोटी ही पोनी है ना खावे कोई तेरी कमाई।

सारा काम करने के बाद भी चुपके से पढ़ती तो पापा किताबों को चूल्हें में फेंकने की कहते गुस्सा करते।

स्कूल में जाने से पहले खेती के कामों की लिस्ट दे देते।

मैंने भी सोलुशन सोचा बोली पापा मुझे कितना काम करना है।

पापा के जागने से पहले मम्मी के साथ बहुत ही सुबह जाकर स्कूल से पहले पापा का बताया खेत का काम कर आती।

बस पापा की चाह पूरी करनी थी।

वो बेटे को सरकारी नौकरी में चाहते थे। और मैं वो सपना पूरा करना चाहती थी। बेटी में ही बेटे की छवि दिखाना चाहती थी।

12 वी मैं विद्यालय कम जाकर भी 69% नम्बर पायी।

श्रीमती रंजना मैंम ने प्रिंसिपल मैंम से एक प्रेरणा के रूप में मिलवाई।

आदरणीय मैंम की छवि मन में छायी।

पापा के चेहरे पर फिर भी खुशी न पाई। उन्होंने न दी कोई बधाई।

उन्होंने पढ़ाई में हमेशा बाधा लगाई।और मैंने पापा के मन में जगह बनाने को रात में छुप-छुपकर की थी पढ़ाई।

अब बीए की बारी आई पापा ने शर्ते लगाई बाधा लगाई। मैंने भी सभी शर्ते पूरी करने की जान लगाई।

पापा का बेटा जो बनना था बीए हुआ पर पापा से बेटी के प्रति निराशा पाई न पाई बधाई।

बोले आगे न होगी पढ़ाई अब होगी सगाई। मुझे अपना चाहे दुश्मन समझिए। नसीब में हुआ तो ससुराल में आगे की होगी पढ़ाई।

शादी हुई हो गई विदाई। ससुराल में भी तिरस्कार पाई। बी० एड० में नम्बर आया पति देव ने कराई आगे की पढ़ाई। मन की चाह के साथ संघर्ष करते हुए सफलता की राह पाई। बेटी भी बेटे के समान पापा ने बात मन में बसाई।

पापा गाँव में बोले मेरी बेटी सोना है।

सरकारी मास्टरनी बन गई। गाँव के लिए प्रेरणा बनी कि अपने पापा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खेतों में कमाया घर का काम किया और पढ़ाई में मेहनत और लगन से सफलता पाई।

ससुराल में भी फिर अच्छी बहु का नाम पाई।

जहाँ चाह है वहाँ राह है।

अड़चनों की न परवाह है।।

संघर्ष का सफर अभी भी जारी है।

कभी न हिम्मत हारी है।।

पापा के मन में जगह पाई पापा के मन से निराशा हटाई।

अपने जीवन संघर्ष की छोटी सी झलक दिखाई।


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