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Miss Bajpey

Drama Tragedy Fantasy

4.1  

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Drama Tragedy Fantasy

इंसानियत का फल

इंसानियत का फल

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 एक समय की बात है, एक मुसाफिर राह में चलते चलते दलदल में फंस गया था, तभी उसकी नजर पड़ी वहाँ से दूसरा मुसाफिर गुजर रहा था। परंतु उसके पास दलदल को पार करने के लिए एक लकड़ी भी थी जिसके सहारे वह आसानी से वहाँ से निकल सकता था। वह मुसाफिर अपना रास्ता पार करने के लिए अपने मार्ग पर आगे बढ़ रहा था। तभी उसने आवाज सुनी उसे कोई सहायता के लिए कोई जोर जोर से पुकार रहा था। उससे मुसाफिर को दलदल में फंसे इस हालत में देखकर बहुत ही दुख हुआ उसने बिना कुछ सोचे समझे अपनी लकड़ी और दलदल में फंसे हुए मुसाफिर को दे दी ताकि वह उसकी सहायता से दलदल से बाहर निकल पाए। और खुद को बचा पाए, लेकिन वह यह भूल रहा था, वह खुद भी दलदल में फंस गया है अपनी लकड़ी उसे दे देने की वजह से, पहला मुसाफिर दलदल से लकड़ी के सहारे निकल गया और अपनी मंजिल की ओर चल पड़ा। दूसरा मुसाफिर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था कि वह कब दोबारा लौटकर एक नई लकड़ी के साथ आएगा और उसे उसकी लकड़ी वापस देगा जिससे वह खुद उस दलदल से बाहर निकल पाए। समय बीतता जा रहा था और वह दलदल में और अंदर धंसता जा रहा था। लेकिन वह पहला मुसाफिर उसे उसकी लकड़ी लौटाने ही नहीं आ रहा था। बहुत समय इंतजार करने के बाद उसने निर्णय लिया कि अब वह अपनी लकड़ी वापस मांगेगा क्योंकि यदि उसने ऐसा नहीं किया तो अब वह खुद ही उसमें फंस जायेगा जब उसने स्वयं को उसने दलदल से बाहर निकालने के लिए अपनी लकड़ी वापस मांगी तो उसने देने से इनकार कर दिया और कहा इतने समय से तो या लकड़ी मेरे पास थी तब तो तुम्हें कोई परेशानी नहीं हुई तो अचानक तुम इसे मुझसे वापस क्यों मांग रहे हो, मैं तुम्हें अब वापस नहीं दूंगा यदि मैंने तुम्हें यह दे दिया तो फिर मैं इस दलदल में से पार कैसे हुआ करूंगा। दूसरे मुसाफिर ने कहा यदि तुम मुझे यह नहीं दोगे तो मैं इस दलदल में फंस कर स्वयं को खो दूंगा। परंतु पहले मुसाफिर का कहना था यदि मैंने इसे तुम्हें दे दिया तो मैं कैसे पार किया करूंगा। और इतना कहकर वह हंसते-हंसते वहां से चल पड़ा वह बहुत खुश था उसकी जान जो बच गई थी। दूसरा मुसाफिर समझ नहीं पा रहा था मैंने उसे लकड़ी उसकी जान बचाने के लिए दी थी और वह मुझे ही दलदल में छोड़कर यहां से हँसते हुए चला गया क्या यही इंसानियत का फल होता है। 


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