Miss Bajpey

Others

3  

Miss Bajpey

Others

इंसानियत का फल

इंसानियत का फल

3 mins
288


 एक समय की बात है, मुसाफिर दलदल के रास्ते से जा रहा था, एक मुसाफिर राह में चलते चलते दलदल में फंस गया, तभी उसकी नजर पड़ी वहां से दूसरा मुसाफिर गुजर रहा था, परंतु उसके पास दलदल को पार करने के लिए एक लकड़ी का सहारा था, जिसके सहारे से वह आसानी से निकल सकता था। वह मुसाफिर अपना रास्ता पार करने के लिए अपने मार्ग पर आगे बढ़ रहा था, तभी उसने आवाज सुनी कोई सहायता के लिए उसे जोरों से पुकार रहा था। उससे मुसाफिर को दलदल में फंसे इस बुरी हालत में देखा नहीं गया, उसे यह देखकर बहुत ही दुख हुआ उसने बिना कुछ सोचे समझे अपनी लकड़ी उस दलदल में फंसे हुए मुसाफिर को दे दी, ताकि वह उसकी सहायता से दलदल से बाहर निकल पाए और खुद को बचा पाए लेकिन वह यह भूल रहा था, वह खुद भी दलदल में फंस जाएगा, यदि वह लकड़ी उसने दूसरे मुसाफिर को दे दी। तो वह खुद भी बिना लकड़ी की सहायता के उस दलदल से नहीं पार कर सकता परंतु उसकी यह दशा देखकर दूसरे मुसाफिर ने पहले मुसाफिर को अपनी लकड़ी दे दी अपनी लकड़ी उसे दे देने की वजह से पहला मुसाफिर दलदल से लकड़ी के सहारे तो निकल गया। दूसरा मुसाफिर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था, कि वह कब दोबारा लौट कर एक नई लकड़ी के साथ आएगा और उसे उसकी लकड़ी वापस देगा जिससे वह खुद को उस दलदल से बाहर निकाल पाए।

समय बीतता जा रहा था, और वह दलदल में और अंदर धंसता जा रहा था। लेकिन वह पहला मुसाफिर उसे उसकी लकड़ी लौटाने ही नहीं आ रहा था, और दलदल से बाहर निकल कर उसके दलदल में फंसने का नजारा देख रहा था। बहुत समय इंतजार करने के बाद उसने यह देखते हुए निर्णय लिया कि, पहला मुसाफिर यहां से उसकी लकड़ी की सहायता से आना-जाना कर रहा है परंतु एक नई लकड़ी अपनी ना लाकर वह उसी की लकड़ी से आना-जाना कर रहा है और उसे लकड़ी नहीं दे रहा जिससे कि वह बाहर निकल पाए, तब उसने निर्णय लिया कि वह उससे अपनी लकड़ी वापस मांगेगा क्योंकि यदि उसने ऐसा नहीं किया तो अब वह खुद ही उसमें फंस जाएगा और खुद को ही उसमें खो देगा जब उसने स्वयं को उसने उस दलदल से बाहर निकालने के लिए अपनी लकड़ी वापस मांगी तो उसने देने से इनकार कर दिया और कहा इतने समय से तो यह लकड़ी मेरे पास थी तब तुम्हें कोई परेशानी नहीं हुई तुम देख रहे थे, तब तुमने मुझसे कुछ नहीं कहा परंतु इतनी देर बाद अब तुम्हें इस लकड़ी की याद क्यों आ रही है? तुम अब अचानक इससे मुझसे वापस क्यों मांग रहे हो ? मैं तुम्हें अब यह वापस नहीं दे सकता यदि मैंने तुम्हें यह दे दिया तो फिर मैं इस दलदल को पार कैसे किया करूंगा ? दूसरे मुसाफिर ने कहा तुम तो पहले से ही बाहर निकल चुके हो अब तुम्हें बाहर से कोई भी लकड़ी मिल जाएगी। परंतु मैं तो इस दलदल के बीच में फंसा हूं यदि मुझे इसी समय यही लकड़ी नहीं मिली तो मैं स्वयं को खो दूंगा। परंतु पहले मुसाफिर का कहना था, यदि मैंने तुम्हें इसे दे दिया तो मैं कैसे पार किया करूंगा? मुझे फिर कोई दूसरी लकड़ी ढूंढनी पड़ेगी और इतना कह कर वह हंसते-हंसते वहां से चल पड़ा। वह बहुत खुश था। उसकी जान जो बच गई थी । दूसरा मुसाफिर यह समझ नहीं पा रहा था, मैंने उसे लकड़ी उसकी जान बचाने के लिए दी थी। और वह मुझे ही इस दलदल में इस हालत में छोड़कर हंसता हुआ चला गया। क्या यही इंसानियत का फल है ?


Rate this content
Log in