इण्डियन फ़िल्म्स 1.9

इण्डियन फ़िल्म्स 1.9

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मैंने फ़ुटबॉल मैच देखा।

फ़ुटबॉल मैच चल रहा था। चैनल 1 पे, जैसा कि होता है, शाम को, प्राइम टाइम में। और क्या! स्पार्ताक और सेस्का (सेस्का - सेंट्रल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ आर्मी – रूस का बेहद पुराना क्लब) के बीच मुकाबला होने वाला था! हमारी रशियन चैम्पियनशिप का सबसे इम्पॉर्टेन्ट मैच!

“लुझ्निकी” स्टेडियम खचाखच भरा था।

मैच से आधा घण्टा पहले हर तरह के इण्टरव्यू दिखाते रहे, जर्नलिस्ट लोग मैच के रिज़ल्ट का अनुमान लगा रहे थे और टीमों की स्थिति पर चर्चा कर रहे थे – मतलब, मूड बिल्कुल फुटबॉल-फ़ेस्टिवल जैसा हो रहा था।

मैं बड़े गौर से टेलिकास्ट देख रहा था और मैच शुरू होने तक ये तय नहीं कर सका था, कि मैं किसका 'फ़ैन' होऊँगा। मगर फिर, मैंने 'स्पार्ताक' को चुना, क्योंकि बात ये थी, कि मैं 'स्पार्ताक' के एक पुराने, मशहूर खिलाडी – फ़्योदोर चेरेन्कोव को व्यक्तिगत रूप से जानता था। और जैसे ही मुझे याद आया कि फ़्योदोर कितना ग़ज़ब का इन्सान है, जैसा बिरला ही कोई होता है, तो मुझे लगा कि 'स्पार्ताक' का फ़ैन होना मेरा कर्तव्य है! और, ये इसके बावजूद कि वो पूरे देश में मशहूर है।

कमेन्टेटर ने टी।वी। के दर्शकों से 'हैलो' कहा, और खेल शुरू हुआ। ठीक तीसरे मिनट पे 'स्पार्ताक' के स्ट्राइकर ने 'सेस्का' के गोल-कीपर अकीन्फ़ेयेव को गहरी चोट पहुँचाई। अकीन्फ़ेयेव घास पे पड़ा था और दर्द से तड़प रहा था। स्ट्रेचर लाया गया। 'सेस्का' के गोल-कीपर को होश में लाने की कोशिश करने लगे। मगर स्पार्ताक का स्ट्राइकर पास ही में खड़ा-खड़ा देख रहा था, उसे अकीन्फ़ेयेव पे इत्ती सी भी दया नहीं आ रही थी। वो बस हँसने ही वाला था!

मैं भी ये ही सोच रहा था। जब 'स्पार्ताक' के स्ट्राइकर्स इतने बेरहम हैं, तो मैं 'स्पार्ताक' का 'फ़ैन' नहीं बनूँगा। बेचारे गोल-कीपर को इत्ती चोट पहुँचाई और इसके दिल में कोई हमदर्दी भी नहीं है!

मैं 'सेस्का' का फ़ैन बनूँगा।

मगर तभी एक और नाटक हुआ। हाइलाईट्स के साथ दिखा रहे थे कि कैसे ज़ख्मी अकीन्फ़ेयेव को स्ट्रेचर पे बाहर ले जा रहे हैं, और उसे चिल्लाते हुए सुनना भी अच्छा लग रहा था। वो चीख़-चीख़कर 'स्पार्ताक' के स्ट्राइकर से इतने ख़तरनाक लब्ज़ कह रहा था, कि मैं उन्हें यहाँ लिख भी नहीं सकता। किताबों में ऐसे लब्ज़ छापे नहीं जाते। 'सेस्का' का ज़ख़्मी गोल-कीपर बड़ी देर तक, ऊँची आवाज़ में और खूब कोशिश करके बता रहा था, कि वो, स्ट्राइकर असल में कौन है, जिसने उसे चोट पहुँचाई थी, और उसके सारे रिश्तेदार, दोस्त और जान-पहचान वाले लोग कौन हैं और उसने धमकी दी, कि सबको ज़िंदा गाड़ देगा!

नहीं, मैंने सोचा, ऐसी टीम का 'फ़ैन' तो मैं नहीं बनूँगा, जिसका गोलकीपर इतना दुष्ट है। मैं 'स्पार्ताक' का ही 'फ़ैन' बना रहूँगा। और चेरेन्कोव बढ़िया आदमी है, और वैसे भी, क्या कोई इस तरह से गालियाँ दे सकता है!

तभी 'स्पार्ताक' ने गोल बना लिया। और वेल्लितन, और दूसरे स्पार्ताकियन्स ग्राऊण्ड के किनारे पे ख़ुशी का डान्स करने लगे। आह, कितनी बदहवासी से वे डान्स कर रहे थे! बस, भयानक शोर और हल्ला-गुल्ला! बेहद बनावटी जोश से।

ख़ुशी पागलपन की हद तक पहुँच गई थी। उन्होंने अपने टी-शर्ट्स उतार कर फेंक दिए, शॉर्ट्स नीचे खिसका लिए – मतलब, बड़ी डरावनी बात हो रही थी। 'स्पार्ताक' के फ़ैन्स की गैलरी भी पागल हो गई, और फिर उन्होंने मशालें जला दीं, जिनसे इतना धुँआ निकलने लगा, कि ग्राउण्ड भी नहीं दिखाई देता था। कमेन्टेटर ने यही कहा: “ मैदान ठीक से दिखाई नहीं दे रहा है। कमेन्ट्री करना बेहद मुश्किल हो रहा है।”

फिर स्पार्ताकियन्स 'सेस्का' के फ़ैन्स की गैलरी के पास गए और नाक-मुँह चिढ़ाने लगे। ऐसा ऐसा होता रहा।

'नहीं', मैंने सोचा, बेहतर है कि मैं 'सेस्का' का ही फ़ैन बना रहूँगा। वैसे भी अकीन्फ़ेयेव को भी ज़ख़्मी किया गया था, और 'सेस्का' के खिलाड़ियों ने अपने शॉर्ट्स नीचे नहीं खिसकाए थे।

मगर बीस मिनट बाद ही कुछ और बात हुई। ख़ैर, सच्ची में कहूँ, तो कई सारे फुटबॉल-प्रेमियों की राय में, हो सकता है, कि कोई भी ख़ास बात नहीं हुई, मगर मुझ पर तो, जो मैंने देखा, उसका न जाने क्यों काफ़ी असर हुआ।

'सेस्का' के चीफ़-ट्रेनर को दिखा रहे थे। उसने बड़ी अच्छी तरह से देखा था, कि उसे टी।वी। पर दिखाया जा रहा है, मगर इससे कोई फ़रक नहीं पड़ा, और उसने कैमेरे के सामने पूरी ताकत से नाक छिनक दी, वो भी सीधे उस ख़ूबसूरत और ख़ास तरह से बनाई गई ट्रेडमिल पर, जिस पर वो खड़ा था। मैं ताव खा गया। क्या ऐसा करना चाहिए?! कम से कम रूमाल ही निकाल लेता! मगर, ये तो सीधे ट्रेडमिल पर! नहीं, मैंने सोचा। मैं 'सेस्का' का 'फ़ैन' नहीं बनूँगा। 'स्पार्ताक' का ही 'फ़ैन' बना रहूँगा। कम से कम उनका ट्रेनर तो साफ़-सुथरा है।।।

फिर 'सेस्का' ने भी एक गोल बनाया। और 'सेस्का' के खिलाडियों ने बेहद शराफ़त से अपनी जीत का जश्न मनाया। उन्होंने, मिसाल के तौर पर, अपनी जर्सियाँ नहीं उतार फेंकी। मगर 'स्पार्ताक' के 'फैन्स', ज़ाहिर है, 'सेस्का' के खिलाडियों से चिढ़कर, और ज़्यादा मशालें जलाने लगे और ऊपर से ग्राउण्ड पर टॉयलेट पेपर के रोल्स फेंकने लगे।

“आह, ये कितना भद्दा है,” कमेन्टेटर ने शिकायत के लहजे में कहा, “ ‘स्पार्ताक’ के 'फ़ैन्स' का ये काम! दोस्तों, ग्राउण्ड पर टॉयलेट पेपर के रोल्स फेंकना!”

बहस का सवाल ही नहीं, मैं कमेन्टेटर से पूरी तरह सहमत था! नहीं, मैं 'सेस्का' का ही “फ़ैन' बनूँगा। उनके फ़ैन्स कम से कम टॉयलेट पेपर तो ग्राउण्ड पर नहीं फेंकते!

मगर दूसरी तरफ़, फ़्योदोर चेरेन्कोव – कितना अच्छा इन्सान है।।।और हो सकता है, कि 'स्पार्ताक' का स्ट्राइकर, मैच के शुरू में, 'सेस्का' के गोल कीपर को चोट पहुँचाना नहीं चाहता हो।।।फिर भी 'स्पार्ताक' का ही 'फ़ैन' रहूँगा।।।

या 'सेस्का' का?

इसके बाद 'सेस्का' ने एक और गोल बनाया। 'स्पार्ताक' ने ये गोल फ़ौरन उतार दिया, और मैच 2:2 के स्कोर से ख़तम हुआ।

थैन्क्स गॉड! आख़िर ख़तम तो हुआ! थैन्क्स कि लाज रख ली। वर्ना तो मैं तय ही नहीं कर पाता, कि मुझे किसका 'फ़ैन' होना चाहिए, और आख़िर में ख़ुश होना चाहिए या अफ़सोस करना चाहिए!

जैसे ही मैच ख़तम हुआ, मुझे न्यू क्वार्टर्स वाले तोल्या लूकोव ने फ़ोन किया। न्यू क्वार्टर्स हाल ही में बनाए गए हैं, ट्राम वाले स्टॉप के पीछे।

“सेरी, तू किसका 'फ़ैन' था?” उसने पूछा।

और वो तो फुटबॉल का इत्ता शौकीन है, कि उसके अलावा उसे कुछ और दिखाई ही नहीं देता। बड़ा होकर फुटबॉल प्लेयर बनना चाहता है और वो स्पोर्ट्स स्कूल 'स्मेना' में पढ़ता है।

“तोल्यान,” मैंने ईमानदारी से कहा, हालाँकि मैं ये भी समझ रहा था, कि इसका नतीजा कुछ भी हो सकता है, “प्लीज़, मुझे ये बताओ, कि वो सब वहाँ थूक क्यों रहे थे, टॉयलेट पेपर क्यों फ़ेंक रहे थे, पतलूनें क्यों उतार रहे थे? क्या फुटबॉल में ये सब होता है?”

“तू क्या कह रहा है!!!” तोल्या गुस्से से चीख़ा। “क्या बढ़िया खेल था! ये थूकना कहाँ से हुआ? क्या तेरा दिमाग चल गया है? अब तो मैं तुझसे कभी बात भी नहीं करूँगा। तुझे तो सिर्फ बैले देखना चाहिए, फुटबॉल नहीं!” और उसने रिसीवर रख दिया।

और मैं सोच रहा हूँ, कि वाकई में बैले देखना ज़्यादा अच्छा रहेगा। वहाँ कोई धुँआ तो नहीं पैदा करेगा। बैले, शायद, अच्छी चीज़ है। बस एक ही बात, जो मुझे वहाँ अच्छी नहीं लगती, वो ये है, कि सारे लड़के कसी हुई पतलूनों में छलाँगें लगाते हैं। वो अच्छा नहीं लगता। और छैला बाबू भी! जैसे मामूली पतलूनें पहन ही नहीं सकते !


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