ईमानदारी के साथ

ईमानदारी के साथ

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अशोक एक दुकान पर काम करता था । उसके पिता ६५ साल के एक बूढ़े वयक्ति थे, अशोक की आमदनी इतनी नहीं थी की वह अपने घर का खर्च सही तरीके से चला पाए । धीरे धीरे वह बहुत परेशान रहने लगा वह कुछ ऐसे व्यक्तियों के साथ रहने लगा जो गलत संगत में रहते थे । अशोक गलत तरीके से पैसे कमाने में लग गया । धीरे धीरे ज्यादा पैसे घर में लाने लगा । उसके पिता के पूछने पर उसने कहा की अच्छी नौकरी लगी है । उसके पिता ने कहा बेटा अच्छी बात है अशोक अपने पिता से आंखे नहीं मिला पा रहा था । उसके पिता ने कहा की बेटा मैंने आज तक बहुत ईमानदारी से पैसे कमाए थे । और में आशा करता हूँ की मेरी तरह तू भी ईमानदारी से पैसे कमायेगा । अशोक यह सुन कर चला गया । एक दिन उसे चोरी करते हुए दरोगा पकड़ लेता है और जब उसके पिता के पास आते है । तो उनकी आँखों में अंशु होता है और वह दरोगा (पुलिस) से कहते है की मेरे बेटे को छोड़ दो इसकी कोई गलती नहीं है इससे मैंने कहा था चोरी करने को । अशोक को अपनी गलती का एहसास होता है । वह अपने पिता से कहता है की मुझे माफ़ कर दो, और जो मेने किया है उसकी सजा में ही काटूंगा और सजा काटने के बाद ईमानदारी से काम करूँगा ।

अशोक ने सजा कटी और फिर ईमादारी से काम में लग गया । देर में ही सही लेकिन अशोक बहुत बड़ा इंसान बन गया । अशोक के पिता को अपने बेटे पर बहुत फक्र हुआ ।


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