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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Classics Inspirational

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Classics Inspirational

हरियाणा की पहलवान छोरी

हरियाणा की पहलवान छोरी

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हरियाणा की तो बात ही निराली है । इसकी हाजिर जवाबी का कोई जवाब नहीं और इसकी "रंग बदलने की प्रवृत्ति" का भी कोई जवाब नहीं है । भारत की "राजनीति का नटवर लाल" भी तो हरियाणा से ही आता है जो गिरगिट से भी तेज रंग बदलता है । इसीलिए तो कहते हैं कि हरियाणा "अजब" है और हरियाणा वाले "गजब" हैं । 

हरियाणा को विश्व स्तर पर पहचान सबसे पहले हरियाणा के "लाल" भजन लाल ने दिलाई थी । जब वह अपनी पूरी पार्टी को लेकर दूसरी पार्टी में जाकर मिल गया था और सरकार बना ली थी । उसने ऐसा करिश्मा किया कि पूरा देश ही नहीं विश्व भी देखता ही रह गया था । 

उस दिन से हरियाणा में एक नए "युग" का सूत्रपात हुआ जिसे "दल बदलू युग" के नाम से जाना जाता है । राजनीति को भी तब एक नया शब्द "आयाराम गयाराम" मिल गया था और इस शब्द से राजनीति सोलह श्रृंगार करने वाली दुल्हन की तरह सजने लगी थी । 

दल बदलू भजनलाल के नेतृत्व में हरियाणा को एक नई सरकार मिली थी । तब से "आयाराम गयाराम" का जो सिलसिला राजनीति में चल रहा है वह आज भी बदस्तूर है । ये अलग बात है कि इसका रूप अब बदल गया है ।

अभी हाल ही में तेलंगाना में जिस तरह बी आर एस के कुछ विधायकों को रेवंत रेड्डी ने दल बदलवा करके अपने दल में मिलाया है , वह भजन लाल "युग" की याद दिला देता है । 


हरियाणा एक ऐसा राज्य है जो पूरे देश के लिए मानक निर्धारित करता है । राजनीति में तो हरियाणा ने नए नए मानक निर्धारित किये ही हैं ।

अब ओमप्रकाश चौटाला को ही देख लो । हरियाणा लोक सेवा आयोग की संस्तुतियों को रद्दी की टोकरी में फेंक कर रिश्वत खाकर अपने लोगों को नौकरी देने पर जेल जाते हुए उसे पूरे देश ने देखा है । हालांकि बिहार के लोग भी कह सकते हैं कि उन्होंने भी चारा चरते हुए एक मुख्यमंत्री को देखा है । बिहार वाले भी कम नहीं हैं किसी से । किसी मुख्यमंत्री के द्वारा चारा चरने की घटना बिहार जैसे "तेजस्वी" राज्य में ही घट सकती है । 


अब प्रश्न यह उठता है कि क्या हरियाणा के सिर्फ छोरे ही प्रतिभाशाली हैं ? नहीं , बिल्कुल नहीं ! "म्हारी छोरियां छोरां से कम हैं क्या" ? हरियाणा वालों को तो फख्र ही इसी बात का है । वैसे, वे गलत भी नहीं हैं ।

अब सपना चौधरी को ही देख लो । कमर से ऊपर और नीचे के अंगों को हिला हिला कर वह विश्व प्रसिद्ध "डांसर" बन गई । सपना चौधरी के "डांस" को देखकर बेचारी कई नृत्यांगनाएं तो शर्म से डूबकर ही मर गईं । 

ऐसा नहीं है कि हरियाणा की छोरियां नितंब हिलाने में ही एक्सपर्ट हैं , वे कुश्ती में भी छोरों पर भारी पड़ती हैं ।

अब एक पहलवान को ही देख लो । वह अपनी दादागिरी से बिना ट्रायल दिए ओलंपिक टीम में चुन ली गई और ओलंपिक में फाइनल तक पहुंच भी गई । 

लेकिन "अहंकार का वजन" उस पर भारी पड़ गया । उस "अहंकार के वजन" के कारण वह ओवरवेट हो गई ।

कभी कभी लगता है कि "ईश्वरीय न्याय" अवश्य है वरना तो यहां की अदालतें कैसा न्याय करती हैं यह एक जज के यहां नोटों में लगने वाली आग ने सिद्ध कर दिया है । 

अब लाख टके का सवाल ! वह ओलंपिक से लेकर क्या आई ? जवाब एक ही है , बाबाजी का घंटा ! और क्या ! वह तीन तीन बार ओलंपिक में गई थी । किसके पैसों से ? खुद के पैसों से ? नहीं । उस सरकार के पैसों से जिसे वह दिन रात पानी पी पीकर गालियां दे रही थी । मनमर्जी का कोच , मनमर्जी का निजी स्टाफ । सब कुछ मनमर्जी का । वह भी उसी सरकार के पैसों पर जिसे वह रात दिन गरियाती थी । उसके बावजूद उसे मिला क्या ? वही बाबाजी का ... ?

फिर भी उसका एक खानदानी दल ने जो स्वागत किया था , वह सब कुछ बयां कर गया । 

पर इस छोरी ने बता दिया कि वह हरियाणा की है । क्यों ? क्योंकि जिस थाली में खाओ, उसी में छेद करो , यही तो आदर्श वाक्य है हरियाणा का । "रंग बदलना" जहां के खून में रचा बसा है । इसी प्रवृत्ति के कारण वह "आंदोलन" में व्यस्त रही और अपना "अहंकार का मुटापा" कम नहीं कर पाई । 

मना करने के बावजूद वह कुश्ती के उस इवेंट में उतरी जिसमें वह उतर ही नहीं सकती थी । क्योंकि उसके लिए वह अनफिट थी । लेकिन छोरी तो हरियाणा की थी ना ! उसे पता था कि सरकार को किस तरह अपनी उंगली पर नचाया जा सकता है ! कोई जमाने में एक "ताऊ" ने भी पूरी सरकार को ऐसे ही चलाया था तभी तो बेईमान विश्वनाथ प्रताप सिंह को "मंडल आयोग की रिपोर्ट" को लागू करना पड़ा और देश को युवाओं के बलिदान का हब बनना पड़ा था । मजा तो तब आया जब 56 इंची छाती भी उसके इशारों पर भांगड़ा करने लगी थी । 

ये अलग बात है कि वह "छोरी" भी किसी और के इशारों पर नाच रही थी । हरियाणा की छोरी किसके इशारों पर नौ नौ हाथ कूद रही थी , अब तो सबको पता चल गया होगा । अब वह छोरी अखाड़े में नहीं राजनीति में दांव चल रही है । 

"छोरी हूं , कुछ भी इल्ज़ाम लगा सकती हूं" । यही ब्रह्म वाक्य है ऐसी छोरियों का जो हमारे कानून ने उन्हें दिया है । खानदानी दल के इशारों पर हरियाणा की छोरियों ने अपने पिता तुल्य व्यक्ति पर ऐसे घिनौने इल्ज़ाम लगाए कि इल्जामों को भी लाज आ गई लेकिन इन छोरियों को नहीं आई । ऐसे घिनौने इल्ज़ाम हरियाणा की पहलवान छोरियां ही लगा सकतीं हैं । 

इन्होंने न केवल इल्ज़ाम लगाए बल्कि इन छोरियों ने जमकर नौटंकी भी की थी । वैसे भी नौटंकी करने में हरियाणा की छोरियों का कोई जवाब नहीं है । दूर दूर तक झंडे गाड़ रखे हैं इन्होंने । वह चाहे सपना चौधरी हो या फिर मल्लिका शेरावत या कोई और ! 


तीन तीन ओलंपिक में भाग लेने वाली इस पहलवान की उपलब्धि क्या है ? शून्य पदक । लेकिन इसके बावजूद बेशर्मी से उसे "ईनाम" भी चाहिए । किसलिए ? इसलिए कि वह हरियाणा की छोरी है । अपनी इज्जत का दीवाला खुद निकलवाती है । मीडिया के सामने कहती हैं कि फलां ने मेरे साथ ऐंया किया , वैंया किया । यहां हाथ लगाया , वहां हाथ लगाया । 

जब जांच हुई तो पता चला कि जिस पर आरोप लगा रही है वह उस दिन वहां था ही नहीं , कहीं और था । झूठ की पोल खुल गई । लेकिन बेशर्मी की चादर ओढ़कर धरने पर बैठने वालों पर ऐसी बेशर्मी का कोई असर होता है क्या ? 

खुद की ग़लती से भारत को पदक से वंचित होना पड़ा लेकिन इसने आरोप किस पर लगाया ? यही तो कमाल है हरियाणा की छोरी का । 

 अब हरियाणा की सरकार ने जब इससे ईनाम का विकल्प मांगा तो इसने झट से 4 करोड़ रुपए मांग लिए । उस "बलात्कारी पार्टी" की सरकार से जिसे वह हरियाणा की छोरियों की आन बान शान की दुश्मन सिद्ध करने के लिए जंतर-मंतर पर महीनों बैठी रही । मेडल लौटाने का नाटक भी किया । और अब नाक कटवा कर उसी दल की सरकार से सरकारी सहायता भी प्राप्त कर ली ।

तो क्या अब वह केस खत्म हो गया है ? नहीं ! बिल्कुल नहीं । बल्कि स्थिति यह है कि हरियाणा की छोरियां जिन्होंने इल्ज़ाम लगाया था कि उनके साथ ऐसा किया गया था, वैसा किया गया था । वे अब अपने बयान देने कोर्ट ही नहीं जा रहीं हैं ? क्यों ?

क्योंकि वहां उनकी पोल पट्टी खुलने वाली है । 

ऐसी झूठी , मक्कार छोरियों को मीडिया ने भी अपने सिर पर बैठाकर खूब नंगा नाच किया था । मगर अब सब शांत है । क्यों ? क्योंकि अब वह छोरी हरियाणा की विधायक बन चुकी है । 

क्या उसकी यही मंजिल थी ? क्या उस छोरी ने इसी के लिए ड्रामा रचा था ? अब तो 4 करोड़ रुपए भी मिल गये । किस बात के ? सिल्वर मेडल के और किस बात के ! क्या सिल्वर मेडल आया ? नहीं । फिर 4 करोड़ ₹ किस बात के लिए उसने सरकार से ? उसने स्वीकार भी किए और क्यों ? 

लेकिन हरियाणा की पहलवान विधायक छोरी से ईमानदारी , सत्यता , नैतिकता की अपेक्षा करना मूर्खता ही है और कुछ नहीं । तो आगे आगे देखिए होता है क्या ।‌ 

श्री हरि 

14.4.2025 


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