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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Inspirational

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Inspirational

हरिवचन : भाग 5

हरिवचन : भाग 5

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घृणा वीरों को सलाम

कोरोना वीरों से इतर योद्धाओं को सलामी देने की श्रृंखला में आज अंतिम कड़ी में घृणा वीरों को सलामी दी जायेगी।

हमारे शास्त्रों और दर्शन में कहा गया है कि आत्मा अजर अमर है। यह कभी नहीं मरती है। मरता तो केवल शरीर है। यही आत्मा चोला बदलकर किसी दूसरे शरीर में प्रवेश कर लेती है। जब आत्मा अमर है तो प्रेम भी अमर है। इसलिए सभी सुधीजनों ने कहा है कि मानव मात्र से प्रेम करो। प्रकृति से प्रेम करो। सभी जीव जंतुओं से प्रेम करो।‌ महाभारत धारावाहिक में भगवान श्रीकृष्ण एवं रामायण धारावाहिक में भगवान श्रीराम की मोहक मुस्कान देखकर महसूस होता है कि भगवान ने तो केवल प्रेम बनाया है। उस मुस्कान‌ को देखकर किसे प्रेम नहीं होगा भगवान से ? और भगवान ने कहा है कि हर प्राणी में जो जीव है वह भगवान का ही अंश है। इसलिए हर प्राणी परमात्मा का ही रूप है। जब हर प्राणी परमात्मा का रूप है तो हर मनुष्य को हर प्राणी से प्रेम होना स्वाभाविक है , प्राकृतिक है। लेकिन क्या ऐसा है ?

प्रेम रूपी सागर को बांधने के लिए चार महाविकार सामने आये। काम , क्रोध , मद , लोभ। इन चारों महाविकारों ने ऐसा तांडव मचाया कि बेचारा प्रेम डर कर किसी कोने में दुबक गया। जब जब भगवान पृथ्वी पर अवतरित हुए तो प्रेम की फसल फिर से लहलहाने लगी। वो चाहे भगवान श्रीराम , श्रीकृष्ण हों या भगवान बुद्ध अथवा महावीर।प्रेम की अविरल धारा पुनः बहने लगी।

जब प्रेम का स्रोत सूख जाता है तो घृणा का जन्म होने लगता है। चार महाविकार घृणा के जन्मदाता हैं। किसी को जब मनवांछित प्राप्त नहीं होता है तो वह घृणा की आग में जलने लगता है। इसी घृणा के कारण कोई कैकेई अपने पुत्र के राजतिलक के लिए श्रीराम को वनवास दिलवा देती है तो कोई दुर्योधन अपने ही भाइयों को लाक्षागृह में मरवाने का षड्यंत्र रचता है। कोई तथाकथित प्रेमी अपनी प्रेमिका पर तेजाब फेंक देता है तो किसी अलाउद्दीन के कारण हजारों क्षत्राणियां जौहर करके अपने शरीर की आहुति दे देती हैं।

ऐशो आराम का मतलब होता है सत्ता और सुंदरी। आजकल यही परिभाषा रह गई है ऐशो आराम की। जिसको ये दोनों चीजें नसीब नहीं हो वो तो केवल घृणा की आग में जलने के सिवाय और क्या कर सकता है ? जो लोग वर्षों से सत्ता सुख भोग रहे थे और यह मान बैठे थे कि सत्ता तो उनकी दासी है। उसको तो आना ही है। ये समझ बैठे थे कि उनका जन्म तो केवल सत्ता सुख भोगने के लिए ही हुआ है। पीढ़ियां हो गई सत्ता सुख भोगते भोगते , लेकिन ये भूख है कि मिटती नहीं। या यों कहें कि यह भूख दिन पर दिन और तीव्र होती जा रही है। सत्ता पाने के लिए क्या क्या नहीं किया ? कितने झूठ बोले ? कितने प्रोपोगेंडा किये ? ऐसी कौन सी संवैधानिक व्यवस्था है जिसका दुरुपयोग नहीं किया ? झूठे वादे , झूठी कसमें। सब कुछ किया। लेकिन सत्ता सुंदरी ऐसी रूठी कि मानने का नाम ही नहीं लेती। अब आप ही बताओ , घृणा नहीं करें तो और क्या करें ? ऊपर से नीचे तक घृणा से जल रहे हैं। ये घृणा को नहीं पालते हैं घृणा इनको पाल रही है। खाते घृणा, पीते घृणा। पहनते घृणा, ओढ़ते घृणा, बिछाते घृणा। मतलब घृणा के सिवाय कुछ नहीं। हर काम का विरोध। हर निर्णय का विरोध। हर बात का विरोध। हर पल , हर दिन केवल और केवल विरोध। देश की प्रतिष्ठा का प्रश्न हो या महामारी। हर बार विरोध।

इन लोगों ने अपने भक्तों की एक मंडली भी बना रखी है। इस मंडली में नौकरशाह, पूर्व न्यायाधीश, नामचीन पत्रकार, बालीवुड एवं अन्य कलाकार , तथाकथित सेकुलर्स , बुद्धिजीवी, नारीवादी, जातिवादी और न जाने कौन कौन से वादी इस मंडली की शोभा बढ़ाते हैं। ये भी घृणा से उतने ही सने हैं जितने इनके आका। मालिक के इशारे पर झूठे आरोप लगाना , फेक न्यूज फैलाना , दंगे करवाना इनके बाएं हाथ का खेल है। घृणा के वशीभूत होकर देश के खिलाफ ही षड्यंत्र करने में जुटे हैं। इच्छा केवल एक ही है। सत्ता सुंदरी के दर्शन हो जायें। लेकिन सत्ता सुंदरी है कि न जाने कहां छिपी बैठी है। सामने आती ही नहीं।

दशकों से ये लोग घृणा फैला रहे हैं। लोग थक चुके हैं इनको झेल झेल कर। लेकिन ये अनवरत अपने कार्य में मशगूल हैं। ऐसे घृणा वीरों को मेरा कोटि कोटि नमन।



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