STORYMIRROR

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Inspirational

3  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Inspirational

हरिवचन : भाग 4

हरिवचन : भाग 4

4 mins
111

तोड़ू फोड़ू संस्कृति के महानायकों को सलाम 


एक सलाम उन महानायकों को भी बनता है जिन्होंने इस देश को कोरोना की थर्ड स्टेज के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है। जब लॉकडाउन पूरी तरह सफल होता दिख रहा था तब ये महानायक किसी सिकंदर की तरह भारत पटल के मानचित्र पर उभरे और अपने साथ कोरोना संक्रमित लोगों को लेकर पूरे भारत में फ़ैल गये। जिधर देखो उधर इनके योद्धा यूथप यूथ में नजर आने लगे। न जाने अब तक किस किस धार्मिक भवनों में न जाने कब से छिपे हुए थे। ऐसे महानायकों का गढ़ दिल्ली बना हुआ था। यहां से प्रर्याप्त प्रशिक्षण लेकर देश के कोने-कोने में " कोरोना युद्ध" करने के लिए फैल गये। कुछ महानायक तो कोरोना बम बनकर फटने लगे। यहां वहां थूक थूक कर कोरोना बम फोड़ने लगे। इनके अतुल पराक्रम को देखकर पूरा देश कांप उठा। 


ये लोग कौन हैं ? थोड़ा इतिहास खंगालेंगे तो पता चलेगा कि ये लोग तोड़ू फोड़ू संस्कृति के महानायक हैं। सदियों से इस संस्कृति के ध्वज वाहक रहे हैं ये लोग। ये महानायक जिस जिस जगह पर गये हैं वहां-वहां इन्होंने केवल और केवल तोड़ फोड़ ही की और कुछ नहीं किया। इनका ध्येय वाक्य है " मेरी मर्जी ।" अर्थात मैं जो चाहूं वही करूंगा। कोई कानून कोई सरकार कोई प्रशासन मुझे रोके नहीं मुझे टोके नहीं। जिस तरह हमारे देश में सिंधु घाटी सभ्यता और हड़प्पा सभ्यता फली फूली उसी तरह ये तोड़ू फोड़ू संस्कृति भी खूब फली फूली। इस संस्कृति को फलने फूलने में हमारे राजनैतिक दलों ने भरपूर खाद पानी उपलब्ध कराया और अभी भी करा रहे हैं। ये संस्कृति अमर बेल की तरह लगातार बढ़ती जा रही है और जिस वृक्ष ने इसे आश्रय प्रदान किया था उस वृक्ष को लगभग समाप्त कर चुकी है। 


1995 में गोविंदा की एक मूवी आई थी " गैंबलर "। इस मूवी के दो गाने बहुत फेमस हुए थे। एक था " स्टोप दैट " और दूसरा " मेरी मर्जी "। मेरी मर्जी गाने के बोल कुछ इस प्रकार हैं : 


कोई मुझे रोके नहीं, कोई मुझे टोके नहीं। 

मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं, मेरी मर्जी।।


इस गीत ने इन महानायकों को इतना अभिप्रेरित किया कि इस गीत को इन्होंने अपना आदर्श गीत बना डाला और अब उसी के अनुसार सारे कार्य कर रहे हैं। इन्होंने इस गीत को अपनी सुविधा के अनुसार निम्न प्रकार बना दिया है : 


मैं सरकारी आदेश ना मानूं, मेरी मर्जी।

मैं सुप्रीम कोर्ट को भी ना जानूं, मेरी मर्जी।

मैं पुलिस पे भी पत्थर बरसाऊं, मेरी मर्जी।

मैं डॉक्टर को भी मार भगाऊं, मेरी मर्जी।

मैं कोरोना सब जगह फैलाऊं, मेरी मर्जी।

मैं लॉकडाउन में भी ग्रुप में जाऊं, मेरी मर्जी।

मैं नर्सों को भी छेड़कर आऊं, मेरी मर्जी।

मैं यहां वहां गंदगी फैलाऊं, मेरी मर्जी। 

मैं फल सब्जियों पे थूक लगाऊं, मेरी मर्जी।

मैं नोटों को भी थूक चटाऊं, मेरी मर्जी। 

मैं सब लोगों पर थूकता जाऊं, मेरी मर्जी। 

मैं कोरोना बम से सबको डराऊं, मेरी मर्जी।

मैं कोई कागज़ ना दिखलाऊं, मेरी मर्जी। 

सरकारी सब सुविधा पाऊं, मेरी मर्जी। 

मैं मीडिया को धमकी दिलवाऊं, मेरी मर्जी। 

मैं बीच सड़क तंबू लगवाऊं, मेरी मर्जी। 

मैं चाहे जो करूं, मैं चाहे ना करूं, मेरी मर्जी।।


आज सारी सरकारें इन महानायकों के प्रबल प्रताप से थर थर कांप रहीं हैं और इनसे गिड़गिड़ाकर प्रार्थना कर रही हैं कि हे वीरों, हे सेनानियों, तुम जहां भी छिपे हुए हो, सामने प्रकट हो जाओ। हम सब आपके दर्शनों को बहुत लालायित हैं। ये लुकाछिपी की लीला बहुत कर ली भगवन। अब तो हम असहाय सरकारों की विनती सुन लो प्रभु। हमने आपके लिए श्रेष्ठतम पकवान जैसे बिरयानी, चिकन, मटन, फिश और न जाने क्या क्या पदार्थ बनवाये हैं भक्त वत्सल। एक बार दर्शन दे दो नाथ। और नेपथ्य में एक गीत चलता है : 


जरा सामने तो आओ छलिये, 

छुप छुप छलने में क्या राज है। 

यूं छुप ना सकेगा परमात्मा, 

मेरी आत्मा की ये आवाज़ है।।


कहते हैं कि भगवान जब भक्त की भक्ति से प्रसन्न होते हैं तभी दर्शन देते हैं। अभी शायद सरकार रूपी भक्तों की भक्ति में कोई कमी रह गई है इसीलिए ये महानायक रूपी भगवान दर्शन नहीं दे रहे हैं। 


हमारे देश में एक नारद मुनि भी हुए हैं। कहते हैं कि वे दुनिया के सर्वप्रथम पत्रकार थे। अब तो पत्रकारों का अथाह रेला आ गया है। कुछ इलैक्ट्रोनिक मीडिया के पत्रकार, कुछ प्रिंट मीडिया के पत्रकार और बाकी सोशल मीडिया के पत्रकार हैं। बहुत प्रसिद्ध, नामचीन पत्रकार इन तोड़ू फोड़ू संस्कृति के महानायकों के पक्ष में कमर कसकर उतर आये हैं। पर इसमें मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। क्योंकि हमारा देश तो वो है जिसमें अगर पृथ्वीराज चौहान पैदा होता है तो उसी समय जयचंद भी पैदा होता है। अब अगर ये नामचीन पत्रकार इन महानायकों के पक्ष में रिपोर्टिंग नहीं करेंगे तो महान जयचंद का नाम मिट्टी में नहीं मिल जाएगा ? एक एक लेख के हजारों डालर मिलते हैं। हम लोग तो देवी लक्ष्मी के उपासक रहे हैं। ऐसे कैसे छोड़ दें भला हाथ आयी हुई लक्ष्मी को। इसलिए जी जान से इनके बचाव में कूद पड़े। जमात की तुलना इस्कॉन मंदिर से कर दी। वाह जी वाह। क्या शानदार पत्तलकारिता है। एक सलाम ऐसे झूठनचाटू पत्तलकारों को भी। 


ये देश 14 अप्रेल तक ही लॉकडाउन में रहता अगर ये तोड़ू फोड़ू संस्कृति के महानायक अपना पराक्रम नहीं दिखाते। अब न जाने कब तक लॉकडाउन में रहना होगा ये तो अब भगवान भी नहीं जानते हैं। पूरे देश को अनंत काल तक लाॅकडाउन में झोंकने वाले इन तोड़ू फोड़ू संस्कृति के महानायकों को मेरा सलाम। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Comedy