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Kishor Srivastava

Tragedy Inspirational

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Kishor Srivastava

Tragedy Inspirational

होली की गुजिया

होली की गुजिया

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कल तक एक दूसरे की जान के प्यारे आज एक दूसरे की जान के प्यासे बने हुए थे। दोनों धर्मों के बीच घृणा और नफ़रत की भावना अपनी चरम सीमा पर थी। मोहसिन और रमन का एक दूसरे के घर आना-जाना, उठना बैठना सब कुछ पिछले हफ्ते से ही बन्द था। पर रमन और मोहसिन कहाँ मानने वाले थे। वे अभी भी छिप-छिप कर एक दूसरे से मिल-जुल रहे थे।

जिस दिन इलाके में हिन्दू-मुस्लिम एक दूसरे की खून के प्यासे बने हुए थे उस दिन भी दोनों छिप कर खेल-कूद में मस्त थे। इधर घर वाले परेशान से उन्हें इधर उधर ढूंढने में लगे हुए थे।


अचानक एक दंगाई पिस्टल लिए उनकी ओर लपका और अंधा धुंध उन बच्चों पर गोलियाँ चला दीं। हालांकि उसके टारगेट पर रमन था पर गोली लगने से जान ग़लती से मोहसिन की गई थी।

मोहसिन की मौत से दोनों घरों के बीच नफ़रत की खाई और गहरा गयी थी।


एक हफ्ते बाद होली थी। रमन की माँ को कुछ खटक रहा था। उसे लगा आज फिर मोहसिन गुजिया खाने की आस लिए उसके घर आएगा और रमन उसकी नज़रें बचा कर उसे ढेर सारी गुजिया ले जाकर खिलायेगा पर इस बार ऐसा नहीं हुआ। कोई मोहसिन रमन से लेकर गुजिया मांग कर खाने नहीं आया। आज रमन भी बहुत उदास था।


होली के अगले दिन किसी ने घर का दरवाज़ा खटखटाया तो रमन की माँ ने ही दरवाज़ा खोला। सामने मोहसिन की माँ को देखकर वह भौचक्की रह गयी थी। अभी वह कुछ समझ पाती कि मोहसिन की माँ उसके आगे अपना पल्लू करते हुए भर्राए गले से बोली, "बहन जी, माफ़ करना आपको डिस्टर्ब किया।दरअसल कल रात मोहसिन मेरे सपने में आया था और आपके घर की गुजिया खाने की इच्छा जता रहा था, अगर आपके पास दो-चार गुजिया बची हो तो प्लीज़ मुझे दें दें आपका बहुत एहसान होगा। मैं गुजिया मोहसिन की कब्र पर जाकर रख आऊंगी। शायद उसकी रूह को शांति और तसल्ली मिल जाये और गुजिया की मिठास दोनों कौमों में घुली ज़हर को भी धो डालें।


मोहसिन की माँ की बातें सुनकर रमन की माँ फफक कर रो पड़ी थी। उधर से भी आंसूओं की सैलाब फूट पड़ा था। गुजिये का डब्बा मोहसिन की माँ को थमाते हुए रमन की माँ ने उसे गले से लगा लिया था। वह दोनों एक दूसरे के गले लगकर घण्टों रोती रही थीं।



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