होली का वास्तविक रंग
होली का वास्तविक रंग
आदित्य एक संपन्न परिवार से है, अच्छी नौकरी करता है। वह अपना कार्य से बचा हुआ समय परिवार के साथ बिताना पसंद करता है। समय के अभाव के कारण उसका बाहरी दुनिया से बहुत कम संबंध रहता है। परिवार तथा ऑफिस ही उसकी दुनिया है। होली से एक दिन पूर्व का दिन था, आदित्य को किसी अतिआवश्यक कार्य के लिए तुरंत ऑफिस बुलाया गया, वह अपनी कार से अपने ऑफिस के लिए निकला परंतु रास्ते में उसकी कार खराब हो गयी उसने तुरंत मेकैनिक को फोन किया और कार को किनारे पार्क करके मेकैनिक की प्रतीक्षा करने लगा, वह अपने चारों ओर का नज़ारा दे ख रहा था कि सहसा उसकी नजर पास ही रखे हुए एक कचरे के डिब्बे पर पड़ती है , कचरे के डिब्बे के पास दो बच्चे खड़े थे, जिनकी आयु 7-8 वर्ष होगी , दोनों बच्चों के पास प्लास्टिक के बड़े- बड़े थैले थे, जिनमें वे कचरे में से प्लास्टिक की बोतल आदि एकत्रित कर रहे थे। आदित्य को समझ में नहीं आया कि क्यों इतने छोटे बच्चे जिन्हें विद्यालय में होना चाहिए, वे हाथों में किताबों के स्थान पर कचरा बीन रहे हैं। वह सोच ही रहा था , तभी अचानक उसे पीछे से कोई आवाज़ देता है- अरे ये तो कार का मेकैनिक है, आदित्य उसे कार ठीक करने के लिए बोलकर उन बच्चों के पास जाने लगता है परंतु तब तक बच्चे कहीं जाने लगे, आदित्य भी उनके पीछे जाता है, वह उनके पीछे पीछे एक पुरानी खंडर नुमा बिल्डिंग में पहुँचता है, जहाँ उन बच्चों जैसे कई बच्चे थे और बड़े भी, उसने उनमें से कुछ बुजुर्ग व्यक्तियों से बात की उसे पता चला कि ये सब लोग प्लास्टिक भोजन के लिए एकत्रित करते हैं, क्यों कि यहाँ की एक दुकान पर प्लास्टिक के बदले खाना मिलता है। दुनिया का ये रूप आदित्य ने पहली बार दे खा था । वह वापस आ गया उसकी कार ठीक हो चुकी थी वह अपने ऑफिस के लिए निकल गया पर उसका मन वही उस खंडर में था। शाम को वह घर पहुँचा, पर उसका मन कहीं नहीं लग रहा था, क्योंकि आज उसने समाज का वह रूप दे खा था जिससे वह अब तक अंजान था। सुबह हुई, आज होली का त्योहार है आदित्य अपने माता- पिता से आशीर्वाद लेता है, आपस में रंग लगा कर सभी होली का आनंद लेते है, परंतु आज आदित्य ने अभी रंगो को छुआ भी नहीं , वह बहुत सारी मिठाई, खाना, खिलौने, और रंग लेकर घर पर थोड़ी देर में आता हूँ बोलकर कही जा रहा है, वह दरसल उस खंडर में जाता है जहां वो कल अपना मन छोड़ गया था, उसने सभी बच्चों, बुज़ुर्गों बड़ों को मिठाई रंग बांटे, और एक स्वयं सहायता समूह बनाकर सभी बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था भी की। बच्चों के चेहरे खिल उठे, मिठाइयाँ खाकर बच्चे होली खेलने लगे, उन सभी बच्चों ने आदित्य को रंग लगाया और धन्यवाद भी दिया, सभी बहुत खुश थे अब वे भी पढ़ने स्कूल जायेंगे, उन्हें खाना पाने के लिए कचरा नहीं बिन ना पड़ेगा। आदित्य भी उनके साथ होली खेल कर बहुत खुश हुआ। अब आदित्य हर साल होली को कुछ जरूरतमंद लोगों की मदद करता है और उनके खुशियों और आशीर्वाद के बरसते रंग में खुद को सराबोर कर अपने को पावन करता है। ।
होली की शुभकामनाएं
