अकेला 🤝
अकेला 🤝
मीडिया का एक साक्षात्कार चल रहा था, सारे पत्रकार अपनी अपनी पुस्तकें लिए आज के विशिष्ट अतिथि अखंड पांडे से उनकी आने वाली नई पुस्तक के विषय में प्रश्न कर रहे थे, तभी किसी पत्रकार के हाथ से एक किताब फिसलकर नीचे गिर गई, किन्तु किसी का ध्यान उस ओर नही गया, न ही किसी ने उस पुस्तक को उठाने की जहमत उठाई। अखंड जी को पुस्तक का जमीन पे गिरा होना ऐसे चुभ रहा था की उन्हें न तो पत्रकारों के प्रश्न सुनाई दे रहे थे, न ही व्हा मौजूद लोग दिखाई दे रहे थे, वे तुरंत अपनी कुर्सी छोड़ कर उठे और उस पुस्तक को उठाकर देखा, मुस्कराए और बोले, पुस्तक को देखते हुए ही बोले –
"माफ करना दोस्त, तुम्हे संभालने आने में थोड़ी देरी हो गई " और पुस्तक को उसके स्वामी को देकर वापस मंच पर आ गए।
सबको लगा ये एक लेखक है इसलिए पुस्तक उठाने चले गए, किन्तु जिसकी वो पुस्तक थी,वो एक बुर्जुग थे जो अकेलेपन की समस्या से जूझ रहे थे क्योंकि उनकी पत्नी का देहावसान हो गया था और बच्चे बाहर रहते थे।
उस बुजुर्ग ने अखंड की आंखों में एक विशिष्ट मित्रवत भाव देखा पुस्तकों के लिए और उत्सुकता वश एक दिन अखंड के दफ्तर पहुंच गए अपने प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए।
अखंड ने उन्हें सम्मान पूर्वक बिठाया, उनका हाल चाल पूछा जिससे वो ये समझ गया कि ये अकेलेपन और अवसाद से ग्रसित है।
अखंड ने उनसे पूछा , क्या बात है बाबा, आप केवल मुझसे मिलने इतना दूर आए है ये बात मुझे जम नी रही , बताइए बाबा किस बात से विचलित हैं आप।
बुर्जुग ने कहा – हां, यूं ही नहीं आया हूं बेटा, अपनी उत्सुकता को शांत करने की आशा लेकर आया हूं, शायद इससे मेरी समस्या का हल भी मिल जाए मुझे
। एक लंबी सांस लेते हुए बुर्जुग ने अपनी बात समाप्त की ।
अखंड ने उन्हें देखते हुए कहा – क्या जानने की जिज्ञासा है आपको बाबा?
बुर्जुग ने मुस्कराते हुए कहना शुरू किया –" बेटा, तुम्हें शायद याद न होगा, जब तुम बारहवीं कक्षा में थे, तो तुम्हारे विद्यालय के पास ही मेरी दुकान हुआ करती थी, मैंने तुम्हें रोज देखता था, अत्यंत ही शांत, डरा डरा सा रहने वाला, अकेलेपन से परेशान अखण्ड आज एक लेखक, और केवल लेखक नहीं अपितु अत्यंत सफल लेखक कैसे बना? "
इसे सुनकर अखण्ड मुस्कराते हुए बोला, आप मेरी स्कूल के सहमे सहमे से रहने वाले अखंड से आज के अखंड की यात्रा जानना चाहते है ।
तो सुनिए...........
मैं दिखने में कुछ कम अच्छा था, पढ़ने में भी ख़ास रुचि नहीं थी, इसलिए मुझे कोई अपना मित्र नहीं बनाता था। मैं सबसे बोलने का प्रयास करता था किन्तु अंत न ही होता था।
इसलिए मुझे हमेशा अकेलापन महसूस होता था, बहुत सहमा रहता था मैं।
एक दिन एक नई अध्यापिका आई थी हमें पढ़ाने, उन्होंने हालाँकि १ महीने ही पढ़ाया विद्यालय मे लेकिन मेरा जीवन बदल दिया, शायद ईश्वर ही आए थे उस रूप में मेरे लिए ।
वे हिंदी विषय पढ़ाती थी, उनकी सुनाई कहानियां मुझे खूब भाती थी और मैं धीरे धीरे हिंदी में अव्वल विद्यार्थी बन गया, किन्तु अन्य विषय मे मेरावही हाल था और दूसरा कोई मित्र न होने के कारण में अकेला महसूस करता था कि मैं किससे बातें करूँ, किससे पूछूं, किसके साथ समय बिताऊँ? ऐसे ही एक महीना समाप्त हुआ और वो मैडम जाने लगी । मैं उनके पास गया और मेरी आंखों में आंसू थे वे मैडम भी मुझे समझने लगी थी इसीलिए उन्होंने मुझे रोते देख ऐसे गले लगा लिया जैसे एक मां अपने बच्चे को। उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा –"तुम्हारी समस्या है की तुम्हें अकेलापन महसूस होता है, लेकिन तुम्हें किसी और की जरूरत ही क्यों है बेटा। इंसान को अकेले खुद को संभालना सीखना चाहिए ताकि अगर कभी ऐसी स्थिति आए तो अवसाद न हो, जीवन बाधित न हो।"
मैं मैडम को देख रहा था लेकिन समझ नहीं आया था कुछ।
मुझे असमंजस में देख मैडम हंसते हुए बोली बड़े हो जाओ सब समझ जाओगे। उन्होंने हंसते हुए एक पुस्तक मुझे दी और बोलीं आज से ये पुस्तक तुम्हें पूरी पढ़नी है ईमानदारी से इसके बाद तुम्हें तुम्हारा मित्र स्वयं मिल जायेगा । मुझे लगा कि किताब जादुई है और में खुश होकर पुस्तक ले के घर आ गया
मैं बहुत खुश था की मेरी सारी बातें कोई सुनेगा लेकिन मैडम के कहे अनुसार पहले मुझे पुस्तक को पूरा पड़ना होगा तो मैंने पुस्तक को जल्दी पढ़ के समाप्त करने का निर्णय लिया।
मैंने पुस्तक शुरू तो की थी ताकि जल्दी खत्म करूं और मेरा नया मित्र मुझसे जल्दी मिलने आए किंतु उस पुस्तक को पढ़ते पढ़ते मुझे हिंदी साहित्य से इतना प्यार हो गया की मेरे पास खाली समय का अभाव हो गया और अब तो मैं खुद समय बचाने के प्रयास में रहने लगा ताकि पुस्तक पढ़ सकूं।
बाबा ने जिज्ञासा वश पूछा कौन सी पुस्तक थी ?
अखंड ने पुस्तक अपनी अलमारी से निकालकर बुजुर्ग के हाथ में रखते हुए कहा "ये है वो पुस्तक, महान कवियों का परिचय, इसमें हिंदी के कई महान कवियों। का जीवन चरित और उनकी रचनाएं वर्णित है"
अखण्ड आगे बताता है कि इस पुस्तक को पढ़ना शुरू किया तो काफी दिलचस्प लगा और फिर पुस्तक पूरी पढ़ने के बाद मैं इन्ही कवियों की ओर अन्य रचनाओं का अध्यन करने लगा यही करते करते मैं खुद भी थोड़ा बहुत लिखना सीख गया और आज यहां आपके सामने खड़ा हूं। वो डरा सेहमापन धीरे धीरे कॉलेज में मंच कार्यक्रम करते करते समाप्त हो गया किन्तु कॉलेज के मंच तक जाने का साहस मुझे पुस्तकों से ही मिला पहले इन्ही कवियों की कविताएं सुनाता था। धीमे धीमे स्वयं थोड़ा थोड़ा लिखना शुरू किया और आज आपके सामने खड़ा हूं जो भी थोडा बहुत लिख पाता हूं किंतु जीवन में संतोष अवश्य मिल गया।
उसके बाद अखण्ड ने बाबा को सलाह दी की वे पुस्तको से निकटता बढ़ाए उनका अवसाद दूर होगा और उन्हें स्वयं पुस्तक पढ़ के सुनाने और उनसे रोज मिलने स्वयं जाने लगा।
सीख –पुस्तकें बहुत अच्छी मित्र होती है बस उनके साथ समय बिताने की आवश्यकता है वे आपका जीवन बदलने की क्षमता रखती है।
