शादी, शिक्षा और स्वास्थ
शादी, शिक्षा और स्वास्थ
सुबह का समय था , अनुपमा आज का अखबार पढ़ रही थी और उसकी दृष्टी एक समाचार पर पड़ती है जिसे पढ़ते पढ़ते उसकी आंखे खुशी से नम हो जाती है , और वो वह समाचार बोलकर दोबारा पढ़ती है
" लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु 18 से 21 वर्ष करने के प्रस्ताव को सरकार ने संसद में पास कर दिया और अब 21 वर्ष से कम आयु में विवाह को बाल विवाह माना जाएगा |"
अनुपमा एक साधारण गृहणी है , जिसकी आंखों में नमी का कारण 27 वर्ष पूर्व के उस दिन में था जब उसके पढ़ने के , जीवन में अपने सपने सच करने के अधिकार को उससे छीन लिया गया था ।उसके सपने समाज की इस विचारधारा के आगे हार गए थे कि लड़कियां एक जिम्मेदारी हैं , और जैसे ही 18 की हो जाए तुरंत एक अच्छा लड़का देख कर उनके हाथ पीले कर देने चाहिए |
अखबार का ये समाचार पढ़ कर उसे अपना गुजरा हुआ समय याद आता है और वो अपने अतीत में खो जाती है ।उसका बचपन उत्तर प्रदेश के जिले राजौर के एक कस्बे में बीता था , उसके पिता का कपड़ो का व्यापार था , अच्छा और सम्मानित परिवार था ।
उसके परिवार में मां , पिताजी और एक बड़ा भाई था जिसकी आयु अनुपमा से ३ वर्ष ज्यादा थी ,दोनो भाई बहन पढ़ने में अच्छे थे ।बारहवी के बाद भाई का रुझान पढ़ाई से हट गया , पिताजी ने बहुत प्रयास किया उन्हें पढ़आने का , बाहर शहर भी भेजा की पढ़ जाए तो अच्छी नौकरी मिल जायेगी किंतु सब व्यर्थ रहा अंत ता पिताजी ने उन्हें व्यापार में ही लगा दिया ।समय गुजरता गया अनुपमा ने बारहवी अच्छे अंकों से पास कर ली और अब वो बीए करना चाहती थी हिंदी साहित्य विषय से , उसे यह विषय बहुत पसंद था ,वो महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी चौहान जी से काफी प्रभावित थी और उनकी भांति एक लेखिका बन्ना चाहती थी , पिताजी उसकी स्नातक की पढ़ाई में अधिक दिलचस्पी नही रखते थे , एक दिन जब अनुपमा विद्यालय से वापस आई तो उसे मां दिखाई नहीं दी इसलिए वो उनके कमरे मे जा रही थी अभी वो दरवाजे के पास ही थी कि उसे पिताजी की आवाज सुनाई देती है , उसने देखा मां पिताजी कुछ बात कर रहे हैं और वह वहा से जाने लगती है तभी उसके कानो मे पिताजी की बातों के कुछ शब्द पड़ते है
" अनुपमा अब 18 की हो गई है , इसलिए अब हमे उसकी शादी के बारें में चिंता हो रही है , बस अच्छा घर बार देख कर उसका ब्याह कर दें तो जिम्मेदारी कम हो फिर बेटे की शादी तो आराम से करेंगे , वैसे शर्मा जी ने एक लड़का बताया है ,कल में और रमेश (बेटा) लड़का देखने जा रहे हैं अगर सब ठीक ठाक हुआ तो पक्का ही कर देंगे , वर्ना घर बैठे अच्छा रिश्ता कहा ही मिलता है "
इतना सुन कर वो चुप चाप अपने कमरे मे चली गई ।कुछ देर बाद मां उसके कमरे मे आई
"अरे अनुपमा आ गई बेटा और ये क्या आज तुमने खाना क्यों नही खाया अनुपमा चुपचाप बैठी रही ये देख कर मां उसके पास आई और बोली
" क्या हुआ बेटा कॉलेज मे कुछ हुआ क्या तू इतनी उदास क्यों है "
अनुपमा कुछ कहना चाहती थी लेकिन उसके मुंह से शब्द नही निकल रहे थे वो मां से गले लगकर रोने लगी , मां ने प्यार से उसके सर पर हाथ फिरात हुए कहा
"क्या बात है मेरी बच्ची , आज तू इतनी परेशान क्यों है और रो क्यों रही है "
उन्होंने अनुपमा को बिठाया, उसे थोड़ा पानी पिलाया और उसके आंसू पोंछते हुए कहा बता बेटा
अनुपमा ने सिसकते हुए कहा मां आप लोग मेरी शादी कर दोगे , ये सुनकर मां ने हस्ते हुए कहा
अरे पगली इसमें रोने की क्या बात है , हर लडकी को एक न एक दिन अपने ससुराल जाना ही पड़ता है और अब तुम बड़ी हो गई हो तो शादी तो करनी ही है
अनुपमा ने कहा "मां मैं पढ़ना चाहती हूं मुझे दो तीन साल का समय दे दो कम से कम मेरी ग्रेजुएशन तो पूरी कर लेने दो मुझे । कभी अगर भविष्य में मौका मिला तो में अपना सपना तो पूरा कर लूंगी । मां आप जानती हो में लेखिका बनना चाहती हू , अगर में बीए में अच्छे से पढ़ लूंगी तो शादी के बाद एम करने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी, मां ने बीच में ही टोकते हुए कहा , हम नारियों के सारे सपने सच नहीं होते बेटा । इस पर अनुपमा ने कहा नही मां ये गलत है , जब लडको की शादी २१ से पहले नही होती तो लड़कियों की उम्र १८ क्यों है , अगर लडकी के लिए भी शादी की उम्र 21 होती तो मैं अपनी ग्रेजुएशन तो कर पाती बिना किसी रुकावट के और शायद कोई नौकरी भी मिल जाती । इतना कह कर वो कमरे से बाहर चली गई
इधर अगले दिन उसके पिता लड़का देखने गए और रिश्ता पक्का कर आए , घर पर सब खुश थे, बस कोई खुश नही था तो वो थी अनुपमा
कुछ दिन बाद लडके वाले इंगेजमेंट के लिए उसके घर आए काफी बड़ा फंक्शन हुआ , उस दिन अनुपमा ने लडके को पहली बार सामने से देखा था , पहले तो बस फोटो ही देखी थी।
इंगेजमेंट से कुछ समय पूर्व उसे लडके से बात करने का मौका मिला , और उसने लडके से एक ही बात बोली " मैं आपकी हर बात मानने को तैयार हू लेकिन बस मेरी एक बात मान लीजिए मैं पढ़ना चाहती हू , प्लीज आप शादी के बाद मेरी पढ़ाई बंद मत कराना"। लडके ने उसे पढ़ाई जारी रखने की इजाजत दे दी ।
अब अनुपमा बहुत खुश थी । इंगेजमेंट के बाद जल्दी ही उसकी शादी हो गई और वो अपने ससुराल आ गई । शादी के बाद उसका जीवन बहुत बदल गया , उसकी उम्र अभी 19 वर्ष ही तो थी , उसे न तो रिश्तों की ज्यादा समझ थी और ना ही पूरे परिवार की जिम्मेदारी संभालने की समझ , होती भी कैसे 19 वर्ष की आयु इतनी ज्यादा भी तो नही , इस आयु में बच्चो में भावनात्मक ठहराव नही आ पाता अभी तो उन्होंने दुनिया को समझना बिल्कुल शुरू किया होता है , यही अनुपमा के साथ भी था , दुनिया को समझने और जानने से पहले ही उसे जिम्मेदारियों में बांध दिया गया ।
लेकिन धीरे धीरे उसने खुद को इस नए माहौल और अपने नए जीवन मे ढाल लिया , घर के सारे काम , करने के बाद रात को वो इतना थक जाती थी कि पढ़ने की ओर ध्यान ही नही जाता ओर दिन में उसे बिलकुल समय ही नहीं मिलता था , ऐसा ही चलता रहा और उसकी परीक्षा आ गई , चूंकि वह पूरे साल ढंग से एकाग्र होकर पढ़ ही नहीं पाई थी इसलिए परीक्षा में उसके अंक पहली वर्ष की तुलना में काफी कम आए, उसके पति ने उसका रिजल्ट देखकर कहा , इतने कम नंबर क्यों आए हैं , अनुपमा ने कुछ कहना चाहा पर चुप रह गई , क्योंकि अनुपमा बहुत भावनात्मक स्वभाव की थी , वो अपने पति से कहना चाहती थी कि कामआदि वजह से वह सही से पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाई किंतु उसे कुछ दिन पहले की बातयाद आ गई जब उसके पति ने किसी बात पर यह कहा था कि घर मे भला काम ही क्या होता है , महिलाएं ज्यादा फुरसत में रहती हैं वर्ना हम पुरुषो से पूछो पूरे दिन पसीना बहाते हैं तब जाके घर चलता है आज की मंहगाई में। इन बातों से वह बहुत दुखी हुई थी कि उसके काम की, त्याग की कोई कीमत नहीं है ठीक है कि नौकरी करने में मेहनत होती हे लेकिन घर का सारा काम संभालना भी बहुत मेहनत का काम है। अन्त ता उसने सोचा कि अगले वर्ष की परीक्षा में अच्छे अंकों से पास होना है, खूब मेहनत करेंगे लेकिन अगले वर्ष तो वह परीक्षा ही नहीं दे पाई ।
दरअसल फाइनल ईयर की परीक्षा से एक महीने पूर्व ही उसके घर एक पुत्री का जन्म हुआ और उसके बाद अनुपमा का स्वास्थ्य इतना बिगड़ गया कि उसे 2=3 महीने अस्पताल में भर्ती रखा गया , डॉक्टर्स का कहना था कि अनुपमा जैसे कई केसेस होते हैं ,20 वर्ष या 22,23 वर्ष तक हर लडकी का शरीर इतना परिपक्व नहीं हो पाता कि वो बच्चे को जन्म दे सके । अनुपमा के केस में भी वही है , उसके शरीर में रक्त की बहुत कमी थी और इस कारण से ही उसकी कंडीशन बिगड़ी थी , अब तो सब नॉर्मल है और जल्दी डिस्चार्ज कर देंगे अनुपमा को । वर्ना कई केसेस में तो महिला की मृत्यु तक हो जाती है ।
भगवान के आशीर्वाद और सही इलाज से अनुपमा शीघ्र स्वस्थ हो गई और अपनी पुत्री के साथ घर आ गई , ये अनुपमा के जीवन की एक और नई शुरुआत थी , उसकी पुत्री के साथ साथ आज अनुपमा का भी नया जन्म हुआ था एक मां का जन्म ।
चूंकि उसकी पुत्री का जन्म के समय वजन काफी कम था इसलिए डॉक्टर ने बहुत ध्यान देने की सलाह दी थी , अनुपमा अपनी पुत्री के प्रति पूर्ण समर्पण से लग गई , हर समय उसकी चिंता में खोई रहती थी शीघ्र ही उसकी पुत्री भी स्वस्थ होने लगी । एक दिन जब घर में सब सो रहे थे तो अनुपमा जाग रही थी , आज बीए फाइनल का रिजल्ट आया था , और उसे अपनी पढ़ाई याद आ गई थी , जो वह पिछले कुछ महीनों से बिल्कुल भूल गई थी , उसके मन में कुछ बेचैनी थी इसलिए उसने एक कागज और कलम ली और एक पत्र लिखा , वह पत्र किसी और के लिए नही बल्कि उस चुलबुली अनुपमा के लिए था जो वह शादी से पहले हुआ करती थी ।
" अनुपमा मुझे माफ कर दो , आज मैने एक फैसला लिया है कि मैं अब अपनी पढ़ाई छोड़ रही हूं, अपने सपने छोड़ रही हूं , आज से मैं खुद को पूरी तरह से अपने परिवार , अपने पति ओर बेटी को समर्पित करने जा रही हूं , अब से उनके सपने ही मेरे सपने है , अब यही सच्चाई है , अगर में पढ़ाई में ध्यान देने की कोसिस करूंगी तो शायद अपनी बच्ची और परिवार पर उतना ध्यान नही दे पाऊंगी और मैं अपनी बच्ची के लालन पालन में कोई कमी नहीं छोड़ सकती इसलिए अब आज से मेरी बेटी ही मेरा सपना है । लेकिन आज मैं ये कसम भी लेती हूं कि अपनी तरह अपनी बेटी के सपने टूटने नहीं दूंगी जब तक उसकी पढ़ाई पूरी नहीं हो जाती और वह अपने पैरों पर खड़े होने लायक नहीं हो जाती तब तक मैं उसकी शादी नहीं करूंगी ।"
अगले दिन से अनुपमा अपनी बच्ची के उज्जवल भविष्य के सपने के साथ उसके पालन पोषण में संलग्न हो जाती है, उपर से हमेशा खुश दिखने वाली अनुपमा के मन में भी एक दर्द हो सकता है किसी को इसका आभास नहीं था । धीरे धीरे अनुपमा की बेटी बड़ी होने लगी, वह पढ़ने में बहुत अच्छी थी , अनुपमा को उसमें अपना बचपन दिखाई देता था , समय बीतता गया और अंत ता वह दिन भी आया जब अनुपमा की बेटी की सरकारी नौकरी लग गई , वह एक इंटर कालेज में अध्यापिका के पद पर नियुक्त हुई थी , उस दिन अनुपमा की खुशी का ठिकाना नहीं था , मानो उसे दुनिया की हर खुशी मिल गई थी ।
कुछ महीने बाद उसकी पुत्री की शादी हो गईं उस समय उसकी बेटी 25 वर्ष की थी और अनुपमा को खुशी थी कि अब उसकी बेटी आत्मनिर्भर है और उसके स्वास्थ की भी अधिक चिंता नहीं रहेगी क्योंकि 25 वर्ष तक मानसिक और शारीरिक परिपक्वता प्राप्त हो जाती है । उसने अपनी बेटी के सपने तो बचा लिए थे लेकिन अपने आस पास रोज ही न जाने कितनी लड़कियों के सपने टूट ते देखती थी , समाज के कुछ बुद्धिजीवी कहते हैं ऐसा हमेशा नहीं होता । उनकी बात सही भी है ऐसा हमेशा नहीं होता शहरों में और कुछ एक ग्रामीण अंचल में लड़कियों को जल्दी व्याहने की सोच इतनी हावी नहीं है , लेकिन इसका प्रतिशत बहुत कम है , बमुश्किल 30% लड़कियों को ही अवसर मिल पाता है और बाकी 70% की कहानी कुछ ऐसी ही होती है जैसी की अनुपमा की ।
आज जब अनुपमा ने अखबार में यह समाचार पढ़ा , तो उसे बहुत खुशी हो रही थी कि अब कई लड़कियों के सपने पूरे हो सकेंगे , उन्हें भी शिखा और रोजगार के लिए समान अवसर मिल सकेगा , और मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर भी कम होगी ।
लेकिन आज यह कानून बन जाने के बाद भी प्रश्न यह है की क्या समाज इसे स्वीकार करेगा , क्यों माता पिता को बेटी इतनी बड़ी जिम्मेदारी लगती है की उससे जल्द से जल्द बस मुक्ति मिले। शायद दहेज एक कारण हो सकता है लेकिन लोग यह क्यों नहीं समझते की जो दहेज शादी में देते हैं वही पैसा लगा कर यदि बेटी को काबिल बना दें तो दहेज देने की आवश्यकता ही क्यों पड़ेगी , भला ऐसा कौन सा परिवार होगा जो खुद कमाने वाली बहु के लिए भी दहेज मांगे या शादी के बाद दहेज न लाने के कारण उसे परेशान करे ।
आज हमारा समाज बदल तो रहा है लेकिन कहीं न कहीं वो बदलाव केवल शहरों तक सीमित है आज भी हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में कई अनुपमा मिल जायेंगी ।
इन सब बातों को सोचते हुए अनुपमा ने एक लंबी सांस ली और अखबार रखते हुए बोली
" आशा है इस कानून से समाज में कुछ परिवर्तन आए " और वह अपने रोज के कार्यों में व्यस्त हो गई।।
