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हमारी बहूरानी

हमारी बहूरानी

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रोशनी ने शादी के बाद जल्द ही सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। धीरे-धीरे सभी रोशनी पर निर्भर होते गए। वो जितना ज्यादा करती उतना ही उसका फायदा उठाया जाता, सास,ससुर,देवर और ननद हर छोटे-बड़े काम के लिए उसे ही पुकारते। उसे तारीफ तो मिलती पर उसे अपने खाने और आराम का भी न ख्याल रहता न वक्त मिलता। वो अंदर ही अंदर कमजोर हो गयी और एक दिन चक्कर खाकर गिर पड़ी। 

डाक्टर ने आराम करने को कहा,अब किसी से काम सम्मभलता न था तो सास ने अपनी बहन को बुलाया वो बहुत समझदार थी सारा माजरा उसकी समझ में आ गया था।

रोशनी को इस हालत में भी बार-बार उठना पड़ता था। मौसी ने सख्त हिदायत दे

दी कि रोशनी आराम करेगी और ये भी कहा कि मुझसे तो इतना काम होगा नहीं तो सब मिलकर काम करेंगे ।

सभी अपने कमरे की सफाई खुद करेंगे और रसोई में भी मदद करेगें।

सभी छोटे-मोटे काम से भी थके नजर आ रहे थे।

मौसी ने सबसे पूछा कि सभी बहुत थक गये है लगता है तो सबने कहा, ''हाँ'।

फिर मौसी ने कहा जब सब मिलकर कोई काम करते हैं तो एक और एक ग्यारह हो जाते हैं पर अकेला आदमी सिंर्फ एक होता है बहु की इस हालत के जिम्मेदार आप सभी हो।

सभी की नजर झुकी थी और उन्हें समझ में आ गया था कि हर काम को मिलजुल कर ही करना चाहिए,

तभी खुशी मिलती है और काम भी जल्दी होता हैं।


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