हम नहीं बनने वाले अप्रैल फूल
हम नहीं बनने वाले अप्रैल फूल
आज सुबह जैसे ही हम जगे , सामने श्रीमती जी चमकते चेहरे पर चार इंची मुस्कान लिये खड़ी थीं। सुबह सुबह से ऐसा चमकता चेहरा मुस्कान के साथ नजर आ जाये तो समझो दिन बन जाता है। हमने कहा "बड़ी खूबसूरत लग रही हो। सुबह सुबह ही कत्ल करने का इरादा है क्या ? कुछ खा पी तो लेने देती कम से कम" ?
मैडम जी की मुस्कान चार से आठ इंची हो गई। कहने लगीं "हम नहीं बनने वाले अप्रैल फूल। हमें पता है कि साल के 365 दिनों में से केवल आज ही के दिन आप ये शब्द कहते हो। बाकी 364 दिन तो पता नहीं क्या क्या कहते हो"।
हमने कहा "अच्छा एक बात बताओ , साल में दीवाली कितने दिन मनाती हो" ?
वो हमारे इस प्रश्न से एकदम से भौंचक रह गई। तुनक कर बोलीं "एक दिन ही मनाते हैं दीवाली। रोज रोज थोड़े ही मनाता हैं कोई"।
हमने कहा "तो हम भी एक ही दिन मनाते हैं यह दिन आपकी तरह। रोज रोज थोड़े ही मनाते हैं कोई" ?
यह सुनकर वो भड़क गईं। कहने लगीं "आप कितनी भी कोशिश कर लो , हम बनने वाले नहीं हैं अप्रैल फूल"।
हमने हंसकर कह दिया "जो पहले से बने बनाये हों , उन्हें कौन बना सकता है भला" ?
इस बात से वो इतनी खफा हो गई कि तबसे ही "कोप भवन" में बैठीं हैं। किचिन हमें संभालनी पड़ रही है।
कुछ गलत कह दिया क्या हमने, साथियों ? अब क्या किया जाये , थोड़ा क्लू वगैरह तो देना। आप सब ज्ञानी लोग हमारा उद्धार करें और इस मुसीबत से निकालें।

