हक की रोटी
हक की रोटी
एक राज्य में अर्जुन नाम का व्यक्ति रहता था। वह बड़ा ही विद्वान था। एक दिन उसी राज्य के राजा ने उसे अपने दरबार में बुलाया।
सभा में यूं ही बात चल पड़ी हक की रोटी की। राजा ने अर्जुन से पूछा, 'हक की रोटी कैसी होती है?' अर्जुन ने कहा, 'आप देखना चाहते हैं या सुनना?' राजा ने कहा-मैं देखना चाहता हूं। अर्जुन ने बताया, आपके नगर में एक गायत्री नाम की बुढ़िया रहती है। उसके पास जाकर पूछना चाहिए और उससे हक की रोटी मांगनी चाहिए।
राजा पता लगाकर उस बुढ़िया के पास पहुंचे और बोले "माता मुझे हक की रोटी चाहिए।" बुढ़िया ने कहा, 'महाराज मेरे पास हक की रोटी है पर उसमें आधी हक की है और आधी बेहक की।" राजा ने पूछा "आधी बेहक की कैसे?" बुढ़िया ने बताया, "शाम का वक्त था, मैं घर पर रोटी पका रही थी। अचानक ही मेरे घर की बिजली चली गई और अंधेरा हो गया। कुछ समय पश्चात मेरे घर के सामनेे से एक जुलूस निकला। उसमें मशालें जल रही थी।
उसी दौरान एक व्यक्ति मेरे घर पानी पीने आया। उसके हाथ में मशाल थी। वह बहुत प्यासा था। मैंने उसको आदर सहित पानी पिलाया। मशाल की रोशनी से उसने मेरे चूल्हे पर आधी पकी हुई रोटी देखी। वह समझ गया। उसने कहा, "माते जिस प्रकार आपने एक प्यासे को पानी पिलाकर बड़ा ही पुण्य का काम किया है। उसी प्रकार मैं भी एक पुण्य का काम करना चाहता हूं। आप मेरी मशाल की रोशनी से रोटी बना सकती हैं। जब तक आप की रोटी नहीं बनती मैं यहीं रहूंगा।"
उसकी मशाल की रोशनी से मैंने रोटियां बनाई, इसलिए आधे हाथ की रोटी उसकी है।" उस बुढ़िया की बात सुनकर राजा को उसके प्रश्न का उत्तर मिल गया और वह हक की रोटी की अहमियत समझ गया।
