हिन्दी से मिली मुझे पहचान

हिन्दी से मिली मुझे पहचान

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बचपन में मैं सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ती थी वहाँ पर पढ़ाई और अनुशासन बहुत अच्छा था। वहाँ पर पढ़ने से मेरी हिन्दी तो बहुत अच्छी थी ही और मेरी संस्कृत पर भी पकड़ बहुत अच्छी थी। पर इंग्लिश कुछ खास नहीं थी। ऐसा नहीं था कि इंग्लिश भाषा मुझे अच्छी नहीं लगती थी पर मुझे बोलने में बहुत झिझक लगती। कभी-कभी तो माँ से लड़ जाती मुझे क्यों हिन्दी मीडियम में पढ़ाया। मम्मी कुछ नहीं कहती।

यूपी बोर्ड से पढ़ते हुये मैंने बारहवीं पास कर ली लेकिन इंग्लिश बोलने का डर वही का वही था। ग्रेजुएशन में थी तो मेरे एक प्रोफेसर हिन्दी में कहानियाँ लिखते थे। मुझे बहुत अच्छी लगती थी उनकी कहानियाँ फिर मैंने भी शौक में लिखना शुरू कर दिया। फिर शादी के बाद व्यस्त होने पर लिखने का समय ही नहीं मिला। बच्चों के बड़े होने पर कुछ समय मिला। एक दिन फेसबुक पर किसी ने माम्सप्रेसो की कहानी शेयर की थी। मुझे भी अच्छा लगा फिर क्या था मैंने भी प्रोफाइल बनाकर लिखना शुरू कर दिया। अब तो मेरा शौक मेरा जुनून बन गया। लोग जब भी लेखिका जी कहते हैं मुझे बहुत गर्व महसूस होता है।

पिछले वर्ष हमारी एन. टी. पी. सी टाउनशिप में हिन्दी दिवस पर निंबध प्रतियोगिता में मुझे द्वितीय पुरस्कार प्राप्त हुआ जो मेरे लिए तो बहुत भी सम्मान की बात थी। अभी कुछ दिन पहले ही हमारी टाउनशिप मे स्वच्छता पखवाड़ा प्रतियोगिता थी। उसमें हमारी टीम ने अपनी एक फाइल तैयार की थी जिसमें हमने अपना काम और एरिया लिखा था साथ में मैने अपनी कविता लिखी थी। जब हमने वो फाइल अपने सी. जे. एम सर को दी तो उन्होने अचानक बोला ये कविता आप लोगों में से किसी ने लिखी है, बहुत बढ़िया है। मेरी पूरी टीम और बाकी सब के हाथ मेरी तरफ थे। "सर श्रुति ने लिखी है।" हमारी मैम जो कि हमारी वाइस प्रेसिडेंट है बोली- "सर ये राइटर है।" मैं तो खुशी से झूम उठी। सर ने कहा- यहँ आइये और सभी को पढ़कर सुनाइये। वो पल मेरे लिए बहुत ही खुशी का था।

इस वर्ष भी हिंदी पखवाड़े में चित्र लेखन में मुझे द्वितीय स्थान मिला है जिसका पुरस्कार मुझे आज 14सितम्बर हिन्दी दिवस पर मिलेगा। सबसे ज्यादा खुशी जब होती है जब अपने मम्मी-पापा का आशीर्वाद मिलता है और मेरे पति देव कहते है- "बधाई हो लेखिका जी।"

दोस्तो, जिस मातृभाषा को बोलने में आज लोग इतना शर्माते हैं मुझे तो उसी मातृभाषा ने सम्मानऔर पहचान दोनो दिलायी है। मैं अपने पाठकों से इतना ही कहना चाहुँगी कि हमेशा माँ और मातृभाषा का सम्मान करिये।


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