गरीबो का गंगाजल
गरीबो का गंगाजल
मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव रामनगर में हुआ था। मेरे पापा शहर में रहकर नौकरी किया करते थे। मैं , मेरा भाई, दादा जी और मेरी मम्मी गांव में रहा करते थे। हम दोनों भाइयों की इच्छा भी शहर मैं रहने की थी। हम दोनों भाई पापा और दादाजी से शहर जाने की जिद्द भी करते थे, पर हर बार एक ही जवाब मिलता था कि शहर बहुत महंगा है । वहां हम जैसे गरीब नहीं रह सकते। इस जवाब के बाद हम भी हमेशा की तरह चुप हो जाया करते थे। हालांकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं था कि गांव हमे पसंद नहीं था। हम अपने गांव से बहुत प्यार करते थे पर यहां के लोगो की सोच से परेशान होकर हम शहर जाना चाहते थे।
मेरा परिवार मल्लाह था। हमारे गांव में आज भी जात-पात छुआछूत का प्रचलन था। गांव की ऊँची जात वाले लोग हमें हमेशा नीचा दिखने का प्रयास करते थे। कोई भी हमारे साथ बैठ कर खाना नहीं खाता था। इन्ही ऊँची जाति के लोगो में से एक थे ठाकुर जयदेव प्रताप सिंह। ये गांव के मुखिया भी थे और दबंग भी थे। गांव के छुआछूत के कई नियम तो इनके बनाये गए थे। इनके दरवाजे पे एक कुंआ है जिसपे गांव के किसी भी छोटी जाति वाले की जाने की हिम्मत नहीं है। हमारे गांव के बगल से गंगा नदी बहती है। गंगा नदी का गांव में 2 घाट है एक रामघाट एक शिवघाट। रामघाट अच्छा घाट है वहां पानी साफ़ आता है और बैठने नहाने की अच्छी व्यवस्था है। शिवघाट गांव से थोड़ा दूर है और वहां पे बारिश के दिनों में बहुत ज्यादा पानी लग जाता है। रामघाट ऊँची जाति वालो के लिए था और शिवघाट नीची वालो के लिए। इस बार की गर्मियों के बाद से ही दादाजी की तबियत बहुत ख़राब हो गयी थी। बारिश शुरू होने के साथ-साथ और बिगड़ती चली गईं। हमने सभी डॉक्टर से इलाज करवा लिया पर कोई फायदा नहीं हुआ। अब दादाजी अपनी आखिरी सांसे गिन रहे हैं। आज शाम से दादाजी की तबियत बहुत ख़राब है। पापा भी छुट्टी लेकर शहर से आ गए। दादाजी के सबसे अच्छे दोस्त मनोहर चाचा भी आ गए। दादाजी की हालत देकर मनोहर चाचा बोले " इनको गंगाजल और तुलसी खिलाओ, ये हमे छोड़कर कभी भी जा सकते हैं "। घर में गंगाजल ढूंढा जाने लगा पर नहीं मिला। पास पड़ोस में भी मांगने गये पर नहीं मिला। इसका एक ही कारण था बारिश के दिनों में शिवघाट से गंगाजल नहीं लिया जा सकता और रामघाट पर हम लेने नहीं जा सकते थे।
पर अब कुछ तो करना था । मम्मी ने बोला नल के पानी के साथ तुलसी पिला दीजिये। मैं बोला, "रुकिए मैं कुछ करता हूं। मैं घर से सीधा रामघाट जाने को निकला । रास्ते भर सोचता रहा कैसे लूँगा गंगाजल। ऐसा भी क्या जीवन है कि गंगाजल भी चुराना पड रहा है। वहां पहुंचा तो देखा की घाट पे कोई नहीं है, बगल की मंदिर से थोड़ा प्रकाश आ रहा है। मैं चुपके से सीढियो के पीछे से गया और अपना लोटा धीरे से डूबा दिया। लोटे में गंगाजल भरने के बाद मैं सरपट अपने घर की ओर भागा। घाट के पुजारी जी ने मुझे भागता देख लिया था। मैं डर गया था कही वो ये बात सबसे ना बता दे। वो मुझे बुलाये और बोले, " अब मत डरो ,अब कानून आ गया है सरकार का। छुआछूत बंद कर दिया है सरकार ने अबसे ये गैरकानूनी है"। मै बोला, "धन्यवाद पुजारी जी, पर मै थोड़ा जल्दी में हूँ आप किसी से कुछ मत बताइयेगा।" मै किसी तरह दौड़ते भागते घर पंहुचा तो देखा दादाजी का शरीर शांत पड़ चुका था और उनके बगल वो लोटा रखा था जिसमें उन्होंने तुलसी के साथ नल का पानी पिया था।